दिल्ली – जब टैंकर देख आँखों में अश्क लेकर बोले डाक्टर, “हे प्रभु तूने आज नर्क का मंज़र देखने से बचा लिया”

हर्मेश भाटिया/ एडिटेड बाई तारिक़ आज़मी

दिल्ली। स्थान दिल्ली का जीटीबी अस्पताल। वक्त आधी रात को पार कर चूका था। घडी बता रही थी कि कलेंडर बदल दो क्योकि मंगलवार खत्म हो चूका है और बुद्धवार आ गया है। मंगलवार को गुज़रे हुवे एक घंटे से अधिक समय गुज़र चूका था। सफ़ेद कोट पर पहले चिकित्सक टकटकी लगाये दरवाज़े की तरफ देख रहे थे। आक्सीज़न आने की उम्मीद थी। कुछ अस्पताल के कर्मचारी कभी बाहर जाते तो कभी अन्दर आते। एक अजीब बेचैनी वाला इंतज़ार था। तभी एक चीख रात एक बजकर 22 मिनट पर सुनाई दी। हे राम……!, मेरी मां मर गई………!, डॉक्टर साहब…….! मेरी मां मर गई……। टैंकर नहीं आया डॉक्टर साहब….!, मेरी मां मुझे छोड़कर चली गई……। 35 वर्षीय सीमा का बेटा चीख चीख कर रो रहा था। सीमा का बेटा रवि रात 10 बजे से चक्कर लगाते हुए जीटीबी अस्पताल पहुंचा था। यहां ऑक्सीजन न होने की वजह से डॉक्टरों के पास भी भर्ती न करने का विकल्प बचा था। सभी लोग टैंकर आने का इंतजार कर रहे थे लेकिन इसी बीच सीमा ने दम तोड़ दिया।

डाक्टर रवि को समझाने और धीरज रखने की सलाह दे रहे थे। रुआंसी आवाज़े डाक्टरों की भी समझ साफ़ साफ़ आ रही थी। यहां ऑक्सीजन खत्म होने की वजह से इस कदर स्वास्थ्य कर्मचारी डरे और सहमे थे कि कोविड वार्ड में दम तोड़ चुके मरीज को मोर्चरी तक ले जाना भूल गए। यह शव अस्पताल परिसर में ही एक तरफ स्ट्रेचर पर रात तीन बजे तक पड़ा रहा। हालांकि बाद में देर रात ऑक्सीजन रिफिल होने के बाद जब कर्मचारी वहां आए तो शव को हटा लिया गया लेकिन इस बीच वहां मौजूद हर कोई ऑक्सीजन खत्म होने की चर्चा और शव को देख डरा-सहमा सा था।

एक तरफ तीमारदार अपने मरीजों के लिए डाक्टरों के हाथ-पैर जोड़ रहे थे। वहीं दूसरी ओर सफेद कोट पहन डॉक्टरों की पूरी भीड़ जमा थी। हर कोई हाथ जोड़े खड़ा था। पूछने पर पता चला कि अस्पताल में ऑक्सीजन तो खत्म हो गया लेकिन अभी तक टैंकर नहीं आया।  डॉक्टरों ने बताया कि अब जो भी ऑक्सीजन बचा है उसे कम प्रेशर में दे रहे हैं। इससे ज्यादा हम कुछ नहीं कर सकते। आज की रात हमारे जीवन की सबसे अंधेरी रात है जो शायद हमें जीवन भर चैन से जीने नहीं देगी। डॉक्टरों की आंखें और आवाज में डर व अगले कुछ पलों बाद होने वाले तांडव की स्थिति को महसूस कर रही थी।

तभी गेट से एक जोर की आवाज़ आती है। आवाज़ में ही ख़ुशी दिखाई देती है। जोर की आवाज़ थी कि आ गया……….! रात करीब एक बजकर 35 मिनट का वक्त था, अचानक से गेट की ओर से आई आवाज आ गया…आ गया…आ गया….! साथ में पुलिस के सायरन की आवाज और टैंकर के पहियों की चाल अस्पताल में मौजूद हर किसी को सुनाई और दिखाई पड़ने लगी थी। 19 हजार लीटर ऑक्सीजन से लदे इस टैंकर को देख अब सफेदकोट में मौजूद डाक्टर भी भावुक हो उठे। आंखों में आंसू और दोनों हाथ जोड़ इनके मुख से निकला, हे प्रभु आज तूने बचा लिया। आज तू नहीं होता तो सबकुछ खत्म हो जाता, तूने नरक देखने से बचा लिया। अब टैंकर रिफिल स्टेशन तक पहुंच चुका था और उसके पीछे पीछे कर्मचारियों की दौड़ भी दिखाई दे रही थी। कुछ रिफिल करने के लिए दौड़े तो कुछ खाली सिलेंडर लेकर दौड़ पड़े। बाकी डॉक्टर भी तेजी से छलांग लगाकर कोविड वार्ड की ओर लपके। ताकि मरीजों को समय पर ऑक्सीजन मिल सके।

बेशक हर एक डाक्टर के चेहरे पर एक सुकून दिखाई दे रहा था। उनके आँखों में नमी साफ़ झलक रही थी। मगर ये गम की नमी नहीं थी बल्कि ख़ुशी के अश्क थे। डाक्टर लगभग दौड़ कर कोविड वार्ड के तरफ जा रहे थे। उनको जल्दी थी कि मरीजों को आक्सीजन देना है। अन्य स्टाफ सिलेंडर लेकर लगभग दौड़ रहे थे। उसनके चेहरों पर ख़ुशी के साथ जल्दी और मेहनत के पसीने थे। दिल पसीजा देना वाला ये मंज़र हमारे सहयोगी ने हमारे साथ शेयर किया है। जिसको लफ्जों में हमने बया किया है।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *