तारिक़ आज़मी की मोरबतिया – “गांडीव” का कहे है खुद को “क्राइम चीफ”, काम करे इतना चीप, पूरी खबर ही चुरा डाली पाडे जी………!

तारिक आज़मी

वाराणसी। हिंदी पत्रकारिता में सांध्य कालीन अखबारों में अपनी एक अलग ही पहचान बनाया था समाचार पत्र “गांडीव” ने। संध्या कालीन दैनिक का नाम आते ही इस अख़बार का नाम जुबां पर आ जाता था। हाल कुछ इस तरह थी कि शाम को अख़बार खरीदने निकले हर एक शख्स कहता था कि “एक ठे गांडीव दे दा।” ये एक हकीकत है कि इस अख़बार ने कई नामी गिरामी पत्रकारों को जनपद में परिचित करवाया। एक प्रतिष्टित संस्थान के तौर पर “गांडीव” का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता था। अख़बार के सस्थापक भगवान दास अरोड़ा से लेकर राजीव अरोड़ा तक ने अपनी जी जान लगा कर इस अख़बार के गुलशन को सीचा और हिंदी पत्रकारिता की लम्बे समय तक सेवा किया।

समय के साथ प्रतिस्पर्धा के इस दौर में अख़बार आज भी किसी न किसी प्रकार चल रहा है। एक समय था कि नामचीन पत्रकारो से सुसज्जित इस अखबार में काम करना एक उपलब्धी हुई करती थी। लिखने पढने की शैली सिखाने वाले इस संस्थान की लम्बे समय तक सेवा राधा रमण चित्रांशी ने भी किया था। कलम की जान लेकर अखबार के संवाददाता शहर में किसी मुद्दे पर बड़े बेबाकी से लिखते थे। ऐसे नामचीन अखबार की अब स्थिति क्या है हम यह तो नही बता सकते मगर उसके नाम पर बट्टा लगाने वाले एक सज्जन के कृत्यों से आपको अवगत करवा रहे है।

नाम अशोक कुमार पाण्डेय। वो खुद को गांडीव अख़बार का “क्राइम चीफ” बताते नही थकते है। कभी मुलाकात होने पर उनके पास अपनी उपलब्धियों की पूरी लिस्ट होती है। “फलनवा के गुरु अईसे समाचार लिखली, ढीमकान वाला समाचार ऐसी रगड़ के लिखली” सबसे पंचिंग डायलोग रहता है कि “का बताई गुरु, हम उहे लिखे वाला रहली मगर सुबहिये देखली कि तू लिख देहला, हमार कुल मेहनत ख़राब हो गयल। चला भइये लिखलस न और कहे नाही न।” ये वाला डायलाग सुनते सुनते हमारे बुढ़ापा आने लगा है। मगर माननीय “क्राइम चीफ” जी आज तक वो पहले नही लिख पाए जो हम पहले लिख देते है।

बहरहाल, भाई “क्राइम चीफ” है तो उनके पास काम बहुत रहता होगा। वैसे ऐसी घटना तो इसके पहले भी हो चुकी है, मगर हम नज़रअंदाज़ कर जाते थे। इस बार सभी हद पार हो गई और कहे तो बनारसी भाषा में “बर्र गयल गुरु” तब सोचा तनिक हम भी लिख कर देखे उनसे बढ़िया लिखिला कि नाही। तो हुआ कुछ इस तरीके से कि अपने को “गांडीव अख़बार का क्राइम चीफ बताने वाले पाण्डेय जी ने हमारी एक खबर कई साँसे इसके पहले भी रुक चुकी है जेल के चारदीवारी में, अन्नू त्रिपाठी से लेकर बजरंगी तक हुवे है इसके शिकार, सबसे दर्दनाक मौत मारा गया था मोनू पहाड़ी को पूरा का पूरा कापी किया और ऊपर से हमारा नाम हटा कर अपना नाम के साथ “क्राइम चीफ” चेप डाला और चुन चुन कर उन व्हाट्सअप ग्रुप में वायरल कर डाला जहा हम न हो।

कई साँसे इसके पहले भी रुक चुकी है जेल के चारदीवारी में, अन्नू त्रिपाठी से लेकर बजरंगी तक हुवे है इसके शिकार, सबसे दर्दनाक मौत मारा गया था मोनू पहाड़ी

अब हमको देख कर वायरल करने का कारण था भाई। हमारी नज़र पड़ जाती तो फ्री की हम उनकी तफरी ले डालते। मगर हमारे चाहने वाले भी कम नही है। उन्होंने स्क्रीन शॉट मार कर भेज दिया। कहा देखा देखा पाण्डेय तोहर खबर के चुरा लेलन। अब पाण्डेय जी ने पूरी खबर कापी पेस्ट मार तो दिया। भले उन्होंने मोनू पहाड़ी का नाम न सुना हो मगर खबर कापी किया तो नाम सुनने का क्या मतलब बनता है। बस नाम अपना चेप डालो और वाह वाही लुट लो। सब्जेक्ट क्या है ? क्या लिखा है इससे कोई मतलब नहीं बस चेप डालो।

अब जब स्थिति ऐसी है कि एक प्रतिष्ठित अखबार गांडीव के खुद को क्राइम चीफ बताने वाले ऐसा कर रहे है तो फिर बकिया उनकी टीम जो क्राइम रिपोर्टर है वो क्या करते होंगे समझा जा सकता है। वैसे क्राइम चीफ साहब को शायद ये न पता होगा कि भले वो क्राइम चीफ है मगर जो कृत्य या कहे कुकृत्य उन्होंने किया है वह क्राइम है। वैसे अख़बार को भी इस बात पर तवज्जो देना चाहिए कि उनके क्राइम चीफ साहब उनका नाम कितना रोशन कर रहे है।

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