National

घर को आग लग गई घर के चराग से, अपनी ही पार्टी में अलग थलग पड़े चराग पासवान, पशुपति परस बने लोकसभा नेता, स्पीकर ने दिया मंजूरी, पढ़े सियासत की बड़ी खबर

आदिल अहमद/तारिक खान

पटना/ नई दिल्ली: दिवंगत नेता रामविलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस लोकसभा में लोक जनशक्ति पार्टी के नेता बन गए हैं। पारस चिराग पासवान की जगह लोजपा के लोकसभा में नेता बनाए गए हैं। स्पीकर ओम बिरला ने उन्हें मान्यता दे दी है। पार्टी सांसदों ने महबूब अली कैसर को उपनेता चुना है। चंदन सिंह को पार्टी का मुख्य सचेतक बनाया गया है। यह सूचना लोकसभा स्पीकर को दी गई थी। अब अपनी ही पार्टी में चिराग पासवान अलग थलग पड़ गए है। सियासत के धुरंधरो के बीच चराग पासवान की ये “शह और मात” दिखाई दे रही है।

सियासत के धुरंधर चाल के बीच नवजवान नेता और सांसद चराग पासवान अबकी बार “शह और मात” वाली स्थिति में दिखाई दिए है। कुछ दिनों से लोक जनशक्ति पार्टी में टूट की खबर आ रही थी। चिराग पासवान के खिलाफ बगावत हुई। पार्टी के 6 में 5 सांसदों ने राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद चिराग पासवान के खिलाफ बगावत की थी। चराग पासवान के चाचा पशुपति पारस पासवान, चराग के चचेरे भाई प्रिंस राज सहित चंदन सिंह, वीणा देवी और महबूब अली केसर ने बगावत की थी। माना जा रहा था कि ये पांचों जेडीयू के संपर्क में थे। बिहार विधानसभा चुनाव के समय से ही ये सभी सांसद असंतुष्ट थे। सांसद चिराग पासवान के कामकाज के तरीके से आहत थे। आखिर पार्टी में चराग पासवान के खिलाफ बगावत का सुर फुका गया और चराग पासवान अलग थलग पड़ते दिखाई दे रहे है।

लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को अलग-थलग करते हुए उनके चाचा पशुपति पारस के नेतृत्व में पांच सांसदों जिसमें बिहार इकाई के अध्यक्ष प्रिन्स राज भी शामिल हैं ने अलग होने की मुहर हासिल कर लिया है। माना जा रहा है कि इस विभाजन को अंजाम देकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चिराग पासवान से पिछले विधानसभा चुनाव में अपने उस अपमानजनक परिणाम का बदला लिया है जब उनके नेतृत्व में लड़ने के बाद उनकी पार्टी जेडीयू तीसरे नम्बर की पार्टी रही और राष्ट्रीय जनता दल एक और भाजपा विधायकों की संख्या के मामले में दूसरी नम्बर की पार्टी बनी।

माना जा रहा है कि सियासत के पुरोधा हो चुके नीतीश ने इस परिणाम के बाद चिराग से हिसाब-किताब बराबर करने का फ़ैसला किया था। इसलिए पहले उनके दल के एकमात्र विधायक को अपने पार्टी में शामिल कराया और विधान परिषद में अब मंत्री नीरज बबलू की पत्नी भाजपा में शामिल हुईं, इसके बाद कहा जाता है कि संसदीय दल में सेंध लगाने का ज़िम्मा नीतीश ने अपने सबसे विश्वसनीय सलाहकार और लोकसभा में संसदीय दल के नेता राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को सौंपा था। लोजपा में आई इस फूट में महेश्वर हजारी की भी अहम भूमिका मानी जा रही है, जो पशुपति पारस के संबंधी यानी रिश्ते में ममेरा भाई भी हैं। नीतीश कुमार ने लोजपा को तोड़ने खासकर पासवान परिवार को खंडित करने में हजारी की योग्यता को ही आंका होगा।

पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की मृत्यु के 4 दिन भी नहीं बीते थे कि पशुपति पारस ने सीएम नीतीश कुमार की तारीफ कर दी यह बात चिराग पासवान को इतनी चुभी की उन्होंने परिवार वालों के सामने चाचा पशुपति पारस को पार्टी से निकालने की धमकी दे डाली। कहने वाले तो यहाँ तक दावा करते है कि इसके जवाब में पारस का कहना था कि तुम भी समझो की तुम्हारा चाचा मर गया। पारस ने विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद अलग होने का फैसला कर लिया था। सांसद प्रिंसराज को अपनी तरफ करने में पारस को इसलिए भी ज्यादा दिक्कत नहीं आई क्योंकि पारस की पत्नी और प्रिंस की मां सगी बहनें हैं।

ललन सिंह के लिए पूर्व सांसद सूरजभान सिंह के मार्फ़त नवादा के सांसद चंदन सिंह को तैयार करना उतना मुश्किल नहीं था क्योंकि उनके पुराने सम्बंध रहे हैं और चंदन की कुछ महीने पूर्व बीमारी के दौरान नीतीश कुमार ने ख़ुद मॉनिटरिंग भी की थी। जिसके कारण वो बग़ावत करने के क़तार में आ गये। इसके अलावा वैशाली की सांसद वीणा सिंह और उनके पति दिनेश प्रसाद सिंह जो फ़िलहाल जनता दल यूनाइटेड से निलम्बित विधान पार्षद है ने नीतीश कुमार से अपने सम्बंध फिर से क़ायम करने के लिए आतुर थे और उन्होंने इस अभियान में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।

एकमात्र मुस्लिम सांसद चौधरी महबूब अली कैसर शुरू में पशोपेश में ज़रूर दिखे, लेकिन वो सियासत के एक मंझे खिलाड़ी हैं और जब उन्होंने अपने बेटे को राष्ट्रीय जनता दल से विधायक बनवाया तब से लग रहा था कि वो नीतीश के साथ जाने का मौक़ा नहीं गंवाना चाहेंगे। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान जब उनकी उम्मीदवारी पर पेंच फंसा था तब नीतीश ने रामविलास पासवान को आग्रह कर उनका टिकट पक्का करवाया था।

पशुपति पारस जिनका चिराग़ से शुरू से छत्तीस का आंकड़ा रहा, पार्टी में अपने आप को नज़रअंदाज किये जाने से दुखी चल रहे थे। उनको मालूम था कि भाई (रामविलास पासवान) के जाने के बाद राजनीतिक महत्व तो दूर शायद परिवार में भी उनको अलग थलग किया जा सकता है और नीतीश कुमार के प्रति उनका नरम रवैया किसी से छिपा नहीं था।

पशुपति जब लगातार दो चुनाव हारे थे तो नीतीश ने उनको विधान परिषद का सदस्य बनाने से पहले मंत्री पद की शपथ दिलवायी थी। इसलिए जैसे पारस को केंद्र में मंत्री बनने का न्योता संसदीय दल तोड़ने के बदले मिला होगा तो वो तैयार हो गये होंगे और रही बात प्रिन्स तो उनको भी मनाया चाचा पारस ने क्योंकि उनके अपने व्यक्तिगत कुछ ऐसे मामले थे जिनका समाधान सरकार में बैठे लोगों की मदद से ही हो सकता है। अब देखना होगा कि चाचा द्वारा मिली इस “शह और मात” पर चराग पासवान का क्या रुख रहता है क्या पार्टी में जिस तरीके से वह अलग थलग पड़ गये है अपनी पार्टी को खड़ा रख पायेगे या फिर नही क्योकि अपने पिता रामविलास पासवान की तरह सियासी सुझबुझ उनके पास भी है ये साबित करना अभी बचा हुआ है।

pnn24.in

Recent Posts

ड्रामा-ए-इश्क, सेक्स और फिर ब्लैकमेलिंग बनी रेशमा के खौफनाक क़त्ल की वजह, जाने कैसे आया राशिद पुलिस की पकड़ में

तारिक आज़मी डेस्क: बेशक इश्क खुबसूरत होता है। मगर इश्क अगर ड्रामा-ए-इश्क बने तो खतरनाक…

8 hours ago

गर्लफ्रेंड ने शादी से किया इंकार तो BF ने रस्सी से जकड़कर किया रेप… दोनों गालों पर लोहे की गर्म रॉड से लिखा अपना नाम AMAN

फारुख हुसैन लखीमपुर-खीरी: खीरी जनपद से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है,…

9 hours ago