अरशद आलम की कलम से : अहसास तो कीजिये हुजुर, पुलिसवालो को भी दर्द होता है जनाब

अरशद आलम

बहुत कम ऐसे लोग होंगे जिन्हें पुलिस कर्मियों द्वारा उठाई जा रही परेशानियों के बारे में पता हो। कितने लोगों को पता है की पुलिस वालों की ड्यूटी का कोई निश्चित समय नहीं होता। बारह घंटे की ड्यूटी करने के बाद भी जरुरत पड़ने पर उन्हें फिर से ड्यूटी पर वापिस बुला लिया जाता है। उन्हें ना तो कोई ओवरटाइम मिलता है और ना ही उन्हें भोजन उपलब्ध कराया जाता है। इन से अधिकतर को सरकारी मकान के न मिल पाने पर बैरकों में ही रहने को मज़बूर होना पड़ता हैं।

यातायात पुलिस कर्मियों की अपनी ड्यूटी के स्थान पर घंटो सड़क पर प्रदूषित वातावरण और खराब मौसम में भी खड़ा रहना पड़ता है। ऐसे ही जब भी कोई त्यौहार आता है, कोई जलसा, रैली या प्रदर्शन होता है तो सुचारू क़ानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए पुलिस के जवानों को लगातार भूखे प्यासे घंटों खड़े रहने पर मजबूर होना पड़ता है। असामाजिक तत्वों या उग्र प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई करने पर कई बार उनकी जान भी खतरे में पड़ जाती है।

देश में अधिकतर पुलिस कर्मी तो नेताओं और उनके घरवालों को कई चक्रों की सुरक्षा प्रदान करने, धरनों और विरोध के जलूसों या दंगों को रोकने  में लगे हुए  हैं। ऐसे में पुलिस चाहते हुए भी आम आदमी की सुरक्षा  पर अधिक ध्यान नहीं दे पाती। पुलिस अफ़सरों पर राजनेताओं का बहुत दबाव रहता है जिसके होते वो अपनी खीज मतहतों पर और मतहत कर्मचारी जनता पर उतारते हैं। भ्रष्टाचार तो सर्वव्यापी बन चुका है उसके लिये अकेली पुलिस को दोष देना कहाँ तक उचित है।

हाल में ऐसी कितनी दुखद घटनाएं हुईं जिनमे बदमाशों  ने बैरिकेड के पास चेकिंग करते या चालान काटे जाने पर पुलिस कर्मी को गाडी के नीचे कुचल दिया। परन्तु किसी भी टीवी चैनल पर इन अभागों के परिवार के सदस्यों के सर पर टूटे दुःख के पहाड़ को अपनी ख़बरों में स्थान नहीं दिया। सब महकमों की तरह पुलिस में भी अधिकतर नेकदिल और ईमानदार कर्मचारी हैं। उनके द्वारा किये जा रहे अच्छे कामों की तरफ न तो लोगों और न ही मीडिया का ध्यान जाता है। परन्तु कुछ भ्रष्ट पुलिस कर्मचारिओं द्वारा रिश्वतखोरी, पद का दुरूपयोग, लोगों पर बेमतलब रौब झाड़ना  या अपनी ड्यूटी में लापरवाही बरतने की खबरों पर ही सबका ध्यान केन्द्रित रहता है।

देश में अपराध पुलिस की लापरवाही या ढीलेपन के कारण नहीं बढ़ रहे।  इसका मुख्य कारण समाज में अमीरों और गरीबों में बढ़ रही खाई, टीवी और फिल्मों में फूहड़ अमीरी, हीरो द्वारा क़ानून को अपने हाथ में लेना, अपराधियों के विलासतापूर्वक जीवन दिखाना या हेराफेरी और आसानी से पैसा कमाने के तरीके बताना हैं। अपराधीयों को प्राप्त राजनैतिक संरक्षण और नेताओं द्वारा उनपर अनुचित दबाव भी पुलिस के काम में बड़ी बाधा उत्पन्न करता है।

देश में कानूनों की तो कमी नहीं है। कमी केवल जघन्य अपराधियों को मिलने वाली कम सज़ा और उसमे से भी सब सबूत और गवाहियाँ के होते हुए भी हत्यारों को फांसी की सज़ा तो क्या कोई दूसरी सज़ा मिलने में भी सालों का वक्त लग सकता है। यदि ऐसे अपराधों में तुरंत और कठोर सज़ा दी जाए तो दुसरे अपराधी प्रवृति  वाले लोगों के दिल में भी कानून का खौफ पैदा होगा और जब तक लोगों के दिल मे कानून के प्रति खौफ और अमीरों द्वारा पैसे के बल अपराध कर कानूनी दाव पेंच लगा उस से बच निकलना जारी रहेगा पुलिस भी अपराधों पर काबू नहीं पा सकेगी। पुलिस को कितना भी आधुनिक बना दिया जाए वह बदला लेने, श्रणिक क्रोध में आपा खो देने, और सुपारी किलर द्वारा होने वाली हत्याएं को रोक नहीं पाएगी। कारण पुलिस प्रत्येक आदमी की निगरानी नहीं कर सकती। परंतु पुलिस द्वारा आम आदमी के प्रति रौबपूर्ण व्यवहार और छोटे कर्मचारियों द्वारा गरीब लोगों को सताये जाने की आदत मे सुधार लाना पुलिस के अपने हित मे ही होगा।

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