एक नज़र इधर भी साहब – भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा रहा ये अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी बनारस में चाय बेच कर करता है जीवन यापन

तारिक आज़मी

वाराणसी। ओलम्पिक खेलो के समापन और भारत के खिलाडियों द्वारा हुवे शानदार प्रदर्शन के बाद खेल पर सियासी खेला जारी है। कोई अपने प्रदेश की उपलब्धी बता रहा है तो कोई अपने प्रदेश की उपलब्धी बता रहा है। सभी मिलकर अपने अपने प्रदेश की सियासी वाहवाही लुट रहे है। मगर खिलाड़ी किस जद्दोजहद के बाद पदक तक खुद का सफ़र पहुचाता है इसके ऊपर न कोई डिबेट आपको कभी दिखाई देगी और न ही कोई खबर।

दरअसल होता ये है कि पॉजिटिव न्यूज़ के पीछे जनता भी कुछ इस कदर दीवानगी के हद तक पहुच रही है कि कडवी सच्चाई अब हज़म ही नहीं होती है। मगर इस सबके बीच आज भी सच दिखाने का प्रयास मीडिया करते रहते है। अमूमन क्रिकेट को लोग अमीर खेल मानते है। वैसे बेशक ये अमीर खेल है भी। इसके खिलाड़ी भले ही अपना सफ़र गरीबी से शुरू करे, मगर मुकाम हासिल करने के बाद पैसो की बारिश होने लगती है। मगर इसी क्रिकेट खिलाडियों में एक खिलाड़ी ऐसा भी है जो भारतीय टीम का हिस्सा बनकर इंग्लैंड के खिलाफ तीन अंतर्राष्ट्रीय एक दिवसीय मैच खेल चूका है। आज आजीविका चलाने के लिए वह चाय की दूकान पर चाय बेच रहा है।

वाराणसी के भदऊ चुंगी पर लबे सड़क चाय बेचता ये विकलाग भारतीय टीम का हिस्सा रह चुका है। नाम है शाहिद खान मंजू। शाहिद खान मंजू भारतीय विकलांग टीम का हिस्सा रहते हुवे वर्ष 2005 में भारत दौरे पर आई इंग्लैंड टीम के खिलाफ बतौर हरफनमौला खिलाड़ी तीन एक दिवसीय मैच खेल चुके है। इन तीनो मैच में भारत ने विजय प्राप्त किया था। इस जीत में शाहिद खान मंजू का भी बड़ा योगदान गेंद और बल्ले से रहा। आज वह भारतीय विकलांग क्रिकेट टीम का खिलाड़ी अपनी आजीविका चलाने के लिए चाय बेचता है।

बताते चले कि अजय समझी जाने वाली इंग्लैंड की टीम वर्ष 2005 में भारत दौरे पर आई थी। तीन एकदिवसीय मैचो के इस दौरे का मैच फरीदाबाद, केडी सिंह बाबू और मुम्बई में खेला गया था। भारतीय टीम में उस समय के चर्चित हरफनमौला खिलाड़ी वाराणसी के शाहिद खान मंजू को भी स्थान मिला और सभी तीनो मैच उन्होंने खेला। जहा मंजू ने गेंद से कमाल दिखाया था वही उन्होंने बल्ले से रन भी बनाये थे। इन तीनो मैच को इंग्लैंड एकतरफा हार गया था और उस समय अजय समझी जाने वाली इंग्लैंड टीम तीनो मैच हार कर वापस अपने देश लौटी थी।

इस भारतीय जीत ने अखबारों में सुर्खियाँ बटोरी थी। जमकर शाहिद खान मंजू की भी तारीफ वाराणसी के खेल पेज पर हुई थी। मगर वक्त की धुंध कुछ इस तरीके से शाहिद खान मंजू के ऊपर पड़ी कि उनका खेल जीवन ही जिम्मेदारियों के बोझ तले दब कर खत्म हो गया। वक्त गुज़रता गया और लोग शाहिद खान मंजू को भूलते गये। पुरे परिवार की ज़िम्मेदारी के बोझ तले दबे मंजू ने क्रिकेट को अलविदा कहा और सरकारी दफ्तरों का खूब चक्कर काटा। बहुत कोशिश किया मगर सरकारी इमदाद के नाम पर विकलांग पेंशन पास हुई और 1500 रुपया तीन महीने में यानी 500 प्रति माह के दर से पेंशन उनको मिलने लगी।

पाँव से माज़ूर मंजू ने नियति से समझौता कर लिया और आज सबके झूठे गिलास धोते है। शानदार हरफनमौला खिलाड़ी के खेल जीवन का अंत शांति के साथ हो चूका है। आज कोई उनका पुरसाहाल नही है। मंजू ने हमसे बात करते हुवे बताया कि तीनो अंतर्राष्ट्रीय स्तर का मैच खेलने के बाद भी एक पैसे हम लोगो को मैच फीस का नही मिला था। परिवार की जिम्मेदारियां थी। काफी कोशिश किया कि खेल कोटे से कोई एक नौकरी मिल जाए। मगर नही मिली। आखिर इस चाय के दूकान से परिवार का पालन पोषण कर रहे है। जीत हासिल करके वापस आने पर मीडिया के काफी लोग आये थे। हमसे बात किये थे। शायद उस वक्त मैं उनके लिए खबर था। मगर आज मैं जिस मुकाम पर हु, कोई सरकारी इमदाद नही है। एक अदद चपराशी की भी नौकरी मिल जाती तो आंसू पूछ जाता। आज कोई मीडिया वाला मुझसे मिलने मेरा हाल लेने नहीं आता है। आप पहले हो जो 15 साल बाद भी हमारी जानकारी रखे है और मुझसे इस मुताल्लिक बात कर रहे है।

मंजू ने कहा कि उस समय वाराणसी के दो खिलाड़ी भारतीय टीम का हिस्सा था। एक मैं और दूसरा मुर्दाहा का कुलदीप जायसवाल। उसकी भी यही स्थिति है। वह पूजा सामग्री का सामान बेच कर अपने परिवार का खर्च चला रहा है। आज खेल के ऊपर इतनी बाते हो रही है। क्या कोई हम लोगो का भी हाल जानेगा कभी। क्या कभी कोई सरकारी इमदाद बतौर खिलाड़ी मिलेगी ? इसी उम्मीद पर हम आज भी रोज़ सुबह जागते है। देखते है कब हमारी दुआओं का असर होगा और किसी अधिकारी की नज़र हमारे ऊपर पड़ेगी।

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