अवैध पानी प्लांट व निजी समर्सिबल से हो रहा भू-जल दोहन
सरताज खान
गाजियाबाद (लोनी)। नगर पालिका परिषद क्षेत्र में जहां एक तरफ अवैध रूप से संचालित पानी प्लांटो द्वारा भारी मात्रा में भूजल दोहन किया जा रहा है। वही दूसरी ओर एक बड़ी संख्या में लगे समर्सिबल उसे चार चांद लगाने का काम कर रहे हैं। नतीजन कभी 20 फुट पर रहने वाला जलस्तर घटकर 100-150 फुट या कहीं-कहीं इससे भी अधिक गहराई तक नीचे पहुंच चुका है। संदर्भ में संबंधित विभाग द्वारा समय रहते कोई ठोस कार्यवाही अमल में नहीं लाई गई तो आने वाले समय में इसके कितने भयंकर परिणाम भुगतने पड सकते हैं, अंदाज लगाना मुश्किल है।
सूत्रों की माने तो क्षेत्र में लगातार गिरते जा रहे जल स्तर के दृष्टिगत कहने को तो प्रशासन ने बिना अनुमति समर्सिबल (बोरिंग) कराने पर प्रतिबंध लगा रखा है। मगर यहां क्षेत्र की विभिन्न कॉलोनियों में गैर कानूनी रूप से सैकड़ों स्थानों पर पानी के प्लांट धड़ल्ले से संचालित है, जो संबंधित विभागीय अधिकारियों कर्मचारियों की लाचार कार्यप्रणाली को उजागर करता है, जो सब कुछ जानते हुए भी न जाने क्यों इस ओर से अंजान बने बैठे हैं। नतीजन पानी प्लांट संचालक अपनी मोटी कमाई के चक्कर में भारी मात्रा में जल दोहन कर जल स्तर को दिन प्रतिदिन एक खतरनाक स्थिति में पहुंचाने का काम कर रहे हैं।
निजी समर्सिबलो से बर्बाद किया जा रहा जल
गांव हो या शहरी क्षेत्र यहां हजारों लोग ऐसे है, जिन्होंने जरूरत न होने के बावजूद अपने आराम के लिए घरों में समर्सिबल की व्यवस्था करा रखी है। जिनमें अधिकांश संख्या ऐसे दंपतियों की है, जिन्हें जरूरत से कहीं अधिक पानी बर्बाद करते हुए देखा जा सकता है। यही नहीं क्षेत्र में एक बड़ी संख्या दूध डेयरी संचालकों की है, जो अपने पशुओं के नहलाने-धोने के अलावा गोबर को नालियों में बहाने आदि के लिए जरूरत से कहीं अधिक पानी बर्बाद करते हैं। इस तरह लगातार गिरते जा रहे भूजल स्तर का ही नतीजा है कि लोगो को आए दिन अपने समर्सिबल बोरिंग को और अधिक गहराई तक कराते हुए देखा जा सकता है। अफसोस की बात तो यह है कि भूजल स्तर की निरंतर अतिसंवेदनशील बनती जा रही है। इस स्थिति के बावजूद लोग पानी की अनावश्यक रूप से बर्बादी करने से बाज नहीं आ रहे हैं।
उक्त संदर्भ में नागरिकों का आरोप है कि भूजल स्तर कि लगातार बिगड़ती जा रही स्थिति के तमाम कारणों की जानकारी रखते हुए भी पुलिस प्रशासन अपने निजी स्वार्थ के चलते जानबूझकर इस ओर से अंजान बने बैठे है। जिनकी इक्का-दुक्का कार्यवाही के दौरान यदि किसी अवैध प्लांट को बंद भी करा दिया जाता है, कुछ दिन बाद ही वह पुन: संचालित हो जाता है जो उनकी कार्यप्रणाली को संदिग्ध बनाता है। यदि समय रहते उक्त अवैध मामले में एक ठोस रणनीति के तहत कार्यवाही अमल में नहीं लाई गई तो यह तय है कि आने वाली पीढ़ी को एक- एक बूंद के लिए तरसना होगा।