हिजाब प्रकरण: सुप्रीम कोर्ट में हुई बहस में बोले दुष्यंत दबे “हिजाब मुसलमानों की पहचान है”

आफताब फारुकी

डेस्क: हिजाब मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। आज इस प्रकरण में याचिकाकर्ताओ के वकील ने ज़बरदस्त दलील सुप्रीम कोर्ट में पेश किया। आज हिजाब प्रकरण की सुनवाई जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच में हुई। आज सुनवाई का 8वां दिन था। हिजाब बैन को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है कि हिजाब मुसलमानों की “पहचान” है।

वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने सोमवार को अदालत को बताया कि कर्नाटक राज्य के अधिकारियों की चूक और कमीशन के विभिन्न कृत्यों ने “अल्पसंख्यक समुदाय को हाशिए पर डालने का पैटर्न” दिखाया है। दवे ने कहा कि धार्मिक अभ्यास वह है जो समुदाय अपने धार्मिक विश्वास के हिस्से के रूप में करता है। पीठ ने कहा कि परंपरागत रूप से, जब भी कोई व्यक्ति किसी सम्मानित स्थान पर जाता है, तो वह अपना सिर ढक लेता है।

दवे ने कहा, “मेरे नजरिए में, स्कूल सबसे सम्मानित स्थान है। यह पूजा की जगह है,” यहां तक ​​​​कि प्रधानमंत्री भी 15 अगस्त को पगड़ी पहनते हैं। मालूम हो कि शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब को लेकर विवाद जनवरी में शुरू हुआ जब सरकारी पीयू उडुपी में कॉलेज ने हिजाब पहनने वाली छह छात्राओं को परिसर में प्रवेश करने से रोक दिया, इसमें यूनिफॉर्म कोड का हवाला दिया गया है। ऐसे में युवतियों ने कॉलेज के गेट पर धरना दिया।

हिजाब बैन पर दुष्यंत दवे ने कहा कि सरकार की दलील है कि अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षण सिर्फ उनके लिए है, जो धर्म का अभिन्न और अनिवार्य हिस्सा है। ये अभ्यास धार्मिक अभ्यास हो सकता है, लेकिन उस धर्म के अभ्यास का एक अनिवार्य और अभिन्न अंग नहीं है। ये संविधान द्वारा संरक्षित नहीं है, लेकिन सरकार की ये दलील सही नहीं है। जस्टिस धूलिया ने सवाल किया कि क्या हम आवश्यक धार्मिक प्रथाओं को अलग कर स्थिति से नहीं निपट सकते? जिस पर दवे ने कहा लेकिन हाईकोर्ट ने केवल जरूरी धार्मिक प्रथा पर ही मामले को निपटा दिया है।

दबे के इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम आवश्यक धार्मिक अभ्यास पर बहस क्यों कर रहे हैं?  और उनमें से कुछ को हाई कोर्ट द्वारा नहीं लिया गया? दवे ने कहा कि क्योंकि हाईकोर्ट ने केवल ईऍफ़पी पर टिप्पणी की और वह भी बिना उचित परिप्रेक्ष्य में कई मिसाल कायम करने वाले फैसलों को पढ़ें। जस्टिस धूलिया ने कहा कि वो 5 फरवरी के सर्कुलर (कर्नाटक सरकार के) के साथ काम कर रहे थे और सर्कुलर में कहा गया था कि इन फैसलों में यह आवश्यक नहीं है और इसे समिति पर छोड़ दिया गया है इसलिए उस संदर्भ में हाईकोर्ट को धार्मिक अभ्यास आवश्यक से निपटना पड़ा। इस पर दुष्यंत दवे ने कहा कि इस सवाल का फैसला करना होगा कि क्या कोई धार्मिक प्रथा धर्म का एक अभिन्न अंग है या नहीं, हमेशा इस बात पर सवाल उठेगा कि धर्म का पालन करने वाले समुदाय द्वारा इसे ऐसा माना जाता है या नहीं।

दवे ने कहा कि हर कोई सर्वशक्तिमान को अलग-अलग तरीकों से देखता है, जो लोग सबरीमाला जाते हैं, वे काले कपड़े पहनते हैं, यही परंपरा है। प्रत्येक व्यक्ति को यथासंभव व्यक्तिगत और व्यक्तिवादी तरीके से धार्मिक स्वतंत्रता का आनंद लेने का अधिकार है। बस सीमा ये है कि आप किसी की भावनाओं को चोट नहीं पहुंचाएंगे। सबरीमाला फैसले और हिजाब मामले में हाईकोर्ट के फैसले में अंतर है।
जस्टिस गुप्ता ने इस पर कहा कि वहां सभी को मंदिर में प्रवेश का संवैधानिक अधिकार नहीं है। जिस पर दवे ने कहा नहीं, अब फैसले के बाद यह तय हो गया है कि हर कोई मंदिरों में प्रवेश कर सकता है। इस दलील पर जस्टिस गुप्ता ने कहा कि सबरीमला मामला अभी 9 जजों की पीठ के पास लंबित है। हम उस पर नहीं जा रहे। यूनिफॉर्म एक बेहतरीन लेवलर है। एक ही जैसे कपड़े पहनने पर देखिए, चाहे छात्र अमीर हो या गरीब, सब एक जैसे दिखते हैं। जिस पर दुष्यंत दवे ने दलील पेश किया कि लड़कियां हिजाब पहनना चाहती हैं तो इससे किसके संवैधानिक अधिकार का हनन हुआ है? दूसरे छात्रों का या स्कूल का ? सार्वजनिक व्यवस्था का पहलू यही एकमात्र आधार है, जिस पर हमारे खिलाफ तर्क दिया जा सकता है। हिजाब गरिमा का प्रतीक है। मुस्लिम महिला गरिमापूर्ण  दिखती हैं जैसे हिंदू महिला साड़ी के साथ अपना सिर ढकती है तो वह गरिमापूर्ण दिखती हैं। इससे किसी की शांति, सुरक्षा भंग नहीं होती और शांति को कोई खतरा नहीं है।

दुष्यंत दवे ने दलील पेश करते हुवे कहा कि ऐसा क्यों है कि अचानक 75 साल बाद राज्य ने इस प्रकार का प्रतिबंध लगाने का विचार किया? इसके लिए राज्य के पास कोई न्यायसंगत कारण या औचित्य नहीं था। यह चौंकाने वाला फैसला था। दवे ने अदालत में दलील देते हुवे बुली बाई सुल्ली डील्स का हवाला दिया। उन ऐप्स को देखिए जिनके माध्यम से वर्चुअल स्पेस में बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं को बिक्री के लिए रखा गया था। ऐसा क्यों हुआ ?  इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा कि वे महाराष्ट्र में थे, कर्नाटक में नहीं। कर्नाटक के बारे में बताएं? वैसे भी हम इस सब के बारे में दूसरे पक्ष (राज्य सरकार) से भी पूछेंगे।

अदालत में दलील पेश करते हुवे दवे ने कहा कि कर्नाटक में कई बार अल्पसंख्यक समुदाय को टारगेट किया गया है। दवे के इस बयान का सॉलिसीटर जनरल ने ऐतराज जताया कहा कि ये पब्लिक प्लेटफार्म नहीं है, आप कानून पर दलील रखें। जिस पर दवे ने कहा कि हम एक समुदाय के मन में डर नहीं बना सकते, भारत में 160 मिलियन मुस्लिम हैं। कर्नाटक सरकार का आदेश असंवैधानिक है, ये आदेश गैरकानूनी है। हाईकोर्ट का फैसला टिकने वाला नहीं है। सुप्रीम कोर्ट को इस आदेश को रद्द करना चाहिए। केरल हाईकोर्ट का इस पर स्पष्ट फैसला है जो हमें सपोर्ट करता है। समर्थन कर रहा है, केन्द्रीय विद्यालयों में भी इसकी इजाजत है।

तुषार मेहता ने इस पर कहा कि इससे पहले कोई छात्रा हिजाब बैन पर नहीं आई ना ही ये सवाल कभी उठा। सरकारी आदेश में कहीं नहीं लिखा कि हिजाब बैन है। ये सब धर्मों क लिए है  हिजाब पहनने के बाद दूसरे धर्म के छात्र भगवा गमछा पहनकर आने लगे। इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा कि एक सर्कुलर का हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि ड्रैस अनिवार्य करना अवैध है। इस पर तुषार मेहता ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया था। एसजी मेहता ने कहा इसमें दो मुख्य बातें है।  2021 तक किसी भी छात्रा ने हिजाब नहीं पहना था,  न ही यह सवाल कभी उठा। केवल हिजाब को प्रतिबंधित करने वाले सर्कुलर का विरोध करना गलत होगा। अन्य समुदाय भगवा शॉल लेकर आए, वो भी प्रतिबंधित है। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा है कि कम से कम 2004 तक किसी ने हिजाब नहीं पहना था  लेकिन अचानक दिसंबर 2021 में ये शुरू हो गया

इसके बाद अदालत में लंच हो गया। लंच के बाद हिजाब मामले पर सुनवाई शुरू। कर्नाटक सरकार की तरफ से एसजी तुषार मेहता ने दलील देते हुवे कहा कि राज्य ने ऑर्डर को स्कूलों के लिए पास किया था छात्रों को नहीं। जिस पर जस्टिस धूलिया ने कहा कि आप कह रहे हैं कि आपका जोर सिर्फ ड्रेस पर था। इस पर एसजी मेहता ने कहा कि हां हमने धर्म के किसी भी पहलू को नहीं छुआ। इस पर जस्टिस धूलिया ने कहा कि अगर ड्रेस नहीं होती तो आप आपत्ति नहीं करते? इस पर एसजी तुषार मेहता ने कहा कि तो फिर, हमने आदेश की अंतिम पंक्ति में इसका जिक्र किया है। एसजी मेहता ने हाईकोर्ट के फैसले को पढ़ा, जिसमें कहा गया है कि जहां कोई ड्रेस निर्धारित नहीं है, छात्र ऐसी पोशाक पहनेंगे जो समानता और एकता के विचार को बढ़ावा दें।

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