750 करोड़ में खरीदा था साइरस पूनावाला ने ‘लिंकन हाउस’ महल, आज तक अन्दर न जा सके, 8 साल गुजरने के बाद छलका पूनावाला का दर्द, कहा सरकार नही घुसने दे रही

शिखा प्रियदर्शिनी

डेस्क: ‘लिंकन हाउस’ खरीद कर अचानक चर्चा में आये सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के अधिष्ठाता साइरस पूनावाला अब तक ‘लिंकन हाउस’ में पजेशन नही पा सके है। अब सायरस पूनावाला ने पहली बार ‘लिंकन हाउस मामले’ पर अपनी बात रखते हुवे सरकार पर गम्भीर सवाल उठाये है। साइरस पूनावाला ने आठ साल पहले सितंबर, 2015 में ये महल खरीदा था। तब से ही इस खरीद पर अस्थायी रोक लगी है। वजह जमीन के मालिकाना हक को लेकर विवाद होना बताया जाता है।

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई के ब्रीच कैंडी इलाके में स्थित ये दो एकड़ की जमीन करीब 50 सालों तक अमेरिकी सरकार की संपत्ति थी। इस पर बना लिंकन हाउस लंबे वक्त तक अमेरिका का वाणिज्य दूतावास रहा। साइरस पूनावाला ने 2015 में 120 मिलियन डॉलर में इसे खरीदा था। उस वक्त भारतीय रुपये के मुकाबले एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 64-65 रुपये थी। यानी लिंकन हाउस को खरीदने के लिए साइरस पूनावाला ने 750 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का भुगतान किया था। ये उस समय के सबसे महंगे रिहायशी सौदों में से एक था। आज के समय में इसकी कीमत 987 करोड़ रुपये से ज्यादा है।

डील पर रोक लगने के चलते साइरस पूनावाला ने महल में रहने के लिए आठ सालों तक इंतजार किया है। अब उन्होंने इस पर अपनी बात रखी है। उनका कहना है कि सरकार ने उन्हें महल की बिक्री को होल्ड पर रखने का कोई आधार नहीं बताया। एसआईआई के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर ने ब्लूमबर्ग से बातचीत में सरकार के इस कदम की संभावित वजह बताई। उनका मानना है कि सरकार नहीं चाहती कि महल की खरीद के लिए चुकाई गई भारी कीमत अमेरिका के पास चली जाए। ब्लूमबर्ग से बातचीत में पूनावाला ने कहा कि “भारत सरकार इसे (डील) होल्ड पर रखे जाने का कोई तर्क नहीं दे रही है। मुझे लगता है कि वो नहीं चाहती 120 मिलियन डॉलर जितनी बड़ी रकम अमेरिका को मिले। ये केवल एक राजनीतिक और (कथित) समाजवादी फैसला है।”

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक ये साफ नहीं है कि जमीन असल में किसकी है। इस पर महाराष्ट्र सरकार और रक्षा मंत्रालय अपना-अपना दावा करते रहे हैं कि जमीन का स्वामित्व उनका है। रिपोर्ट में बताया गया है कि इस संपत्ति की बिक्री को लेकर भारत और अमेरिका के बीच तनाव भी रहा है। अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने भी एक बार इसका जिक्र किया था।

रिपोर्ट के मुताबिक मामले पर महाराष्ट्र सरकार और रक्षा मंत्रालय से संपर्क किया गया था, लेकिन इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की। उधर अमेरिकी दूतावास के प्रवक्ता क्रिस्टॉफर एल्म्स ने कहा है कि भारत और अमेरिका की सरकारें इस मुद्दे पर काम कर रही हैं ताकि किसी संतोषजनक समझौते तक पहुंचा जा सके।

मई 1960 से पहले गुजरात और महाराष्ट्र एक ही राज्य का हिस्सा थे। तब इसका नाम था बॉम्बे। आज के गुजरात का वांकानेर इलाका तब बॉम्बे राज्य का हिस्सा था। 1938 में वांकानेर के महाराजा ने लिंकन हाउस का निर्माण करवाया था। बाद में 1957 में इसे अमेरिकी सरकार को किराए पर दे दिया गया। 999 सालों के लिए। साल 2004 में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स में शिफ्ट हो गया तो लिंकन हाउस को सेल पर रख दिया गया। आगे चलकर साइरस पूनावाला ने इसे खरीदा। 2015 के इंटरव्यू में पूनावाला ने कहा था कि उन्होंने वीकेंड पर फैमिली के साथ वक्त गुजारने के लिए लिंकन हाउस खरीदा था। ब्लूमबर्ग के मुताबिक अब वो कह रहे हैं कि इस घर के लिए वो अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।

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