शाहीन बनारसी
वाराणसी: चंद दिनों शाहीन अगर परवाज़ न करे तो कौवे भी फलक को जागीर समझने लगते है। दरअसल शाहीन जब अपनी नई परवाज़ के लिए आराम तलब होती है तो यह ऐसा वक्त होता है जब कौवे फलक पर अपने जागीरी का एलान कर देते है। मगर उनको पता नही होता है कि फलक की उचाई तो शाहीन की परवाज़ के लिए बनी है। तो एक बार फिर शाहीन परवाज़ करने को तैयार है। आज हम आपको रूबरू करवा रहे है गंगा जमुनी शहर बनारस में सांझी विरासत की मिसाल कल्लू यादव से।
दरअसल, कल्लू यादव अमूमन दूध दही आदि का कारोबार करते है। मगर रमजान माह में पुरे एक महीने इफ्तार के बाद नमाज़-ए-मगरिब से लेकर तरावीह की नमाज़ के बाद तक कल्लू यादव सभी नमाजियों को मुफ्त में चाय पिलाते है। यह काम कल्लू यादव विगत दो दशक से कर रहे थे। कल्लू यादव चाय के पैसे किसी से नही लेते है और एक चाय कोई पिए या फिर दो और तीन, मगर कल्लू किसी को मना नही करते है और मुस्कुराते हुवे चाय सभी को देते है।
कल्लू यादव ने बताया कि हमको कभी लगा ही नही कि इस पुरे इलाके में कोई घर ऐसा है जो मेरा नही है। सभी हमारा घर जैसा ही है। हमको भी पूरा मोहल्ला अपने परिवार का हिस्सा मानता है। इस पुरे मोहल्ले में हर एक बुज़ुर्ग कोई मेरा चाचा है तो कोई बाबा और कोई दादा। नवजवान मेरे भाई है। एक साल के 11 महीने मैं दूध और दही का कारोबार करता हु। शादियों में दूध के स्टाल लगाता हु। रमजान के एक महीने की बरकत ऐसी होती है कि पुरे 11 महीने मेरे काम में कभी मंदा नही आता है। एक माह मैं अपने इस छोटे से प्रयास से रोजेदारो की सेवा करता हु। जिसका फल मुझे अगले 11 माह तक मिलता है और कारोबार में मेरे बरकत रहती है।
कल्लू यादव ने बताया कि आज तक ऐसा नही हुआ कि आज का मेरा कोई भी सामन जो मैं दूध दही से बना बेचता हु वह कभी रात दूकान बढाते वक्त तक बच जाए। ये सभी इसी सेवा के नतीजे होता है। इस सेवा का मुझे फल पुरे 11 माह तक मिलता है। सभी की दुआओं के लिए मैं सेवा करता हु और दुआओं को हासिल कर लेता हु। ऐसी ही स्टोरी से आपको रूबरू करवाती रहूंगी। शाहीन एक बार फिर आराम के बाद फलक तक अपनी परवाज़ भरने के लिए हाज़िर है।
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