विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके गिद्धों को देखे जाने से वन्यजीव प्रेमियों में छाई खुशी की लहर

फारुख हुसैन

पलिया कलां खीरी: जहां एक ओर पूरी तरह से लुप्त हो चुके गिद्धों की खबर सुनकर पक्षीं प्रेमियों में उदासी छाई हुई थी। लेकिन जब उनको जानकारी मिली कि एक बार फिर से लगभग लुप्त प्राय होने की कगार पहुंच गए भारतीय गिद्ध की मौजूदगी इन दिनों दुधवा टाइगर रिजर्व में और दुधवा जाने वाले रास्तों में व गांव के आसपास इलाकों के खेतों में दिखाई देने लगे है। जिसकी जानकारी मिलते ही पक्षीं प्रेमियों में खुशी की लहर दौड़ गयी है।

उल्लेखनीय है कि पूरी तरह से लुप्त हो चुके गिद्ध, जिन्हे सफाई कर्मचारी भी कहा जाता है, जो जंगलों और गांव आदि में मरे हुए जानवारों को खाकर अपना पेट तो भरते ही थे। लेकिन वह उसे खाकर जंगलो गावों को सफाई भी कर देते थे। जिससे वहां न तो गंदगी बचती थी और न ही कोई बिमारी फैलने का डर होता था।

देखा जाये तो इनकी गतिविधियों की जानकारी लेना आज के समय में बहुत कठिन काम है। लेकिन इसके बावजूद जागरुक पक्षी प्रेमी कई वर्षो से इसकी उन्मुक्त उड़ान का कैमरे में कैद करने प्रयासरत रह रहे हैं। अब जाकर इसमें कामयाबी भी मिली है। हालांकि इनकी संख्या व सहवास को लेकर इन पक्षी प्रेमियों के पास सटीक आंकड़े अभी तक नहीं लग पाये हैं।

हमारे भारत में गिद्धों की नौं प्रजातियां पायी जाती थीं जिनमें एक प्रकार की प्रजाति एक बार फिर दिखाई देने लगी है। हालाकि इनकी संख्या अभी काफी कम है, लेकिन यदि इनकी सुरक्षा के दायित्व को पूरी तरह से निभाया जाये तो हो सकता है कि जल्द ही हम इनकी संख्या में इजाफा कर सकते हैं। पर्यावरण के मित्र गिद्ध प्रजाति को बचाने के लिये कड़ाई से प्रयास होना जरुरी है। इस बारे में जानकारी देने व इनकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिये बहुत से पंक्षी वैज्ञानिक प्रयास भी कर रहे हैं और गिद्धों के बारे में खाशी जानकारी भी दे रहे हैं।

इसी मिल रही जानकारी के अनुसार भारत में गिद्धों की नौं प्रजातियां पायी जाती थीं। जिनमें सें पांच प्रजाति छत्तीसगढ़ में मौजूद थी और चार स्थानीय व एक प्रवासी प्रजाति का गिद्ध होता था। देखा जाये तो वैज्ञानिकों के अनुसार मवेशियों के लिये दर्द निवारक दवा के कारण ही गिद्धों की संख्या में लगातार कमी होती गयी और बाद में पर्यावरण के बदलाव के चलते भी उनके प्रजनन में भी काफी फर्क पड़ा।

आपको बता दे कि मवेशियों को दर्द निवारक दवा डाइक्लोफिनेक का इंजेक्शन दिया जाता रहा था, यदि 72 घंटे के भीतर मवेशी मर जाता था, तब यह रसायन उसके शव पर रह जाता था। चूंकि गिद्ध मरे हुए जानवरों का भक्षण करते हैं, ऐसी स्थिति में यह रसायन उनके उदर से होता हुआ उनकी किडनी को खराब कर देता है। लगातार शिकायतों के बाद सरकार ने इस दवा को 2006 में आंशिक व 2015 मे पूरी तरह से बैन भी कर दिया था। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उनका असतित्व तब तक मिटने की कगार पर पहुंच गयी थी।

जानकारों के अनुसार पहले गिद्धों की स॔ख्या आठ करोड़ थी जिसके बाद एकदम से उनकी संख्या में भारी कमी आई और वह दो लाख में ही सिमट गए। तीन दशक पहले भारत में 8 करोड़ से अधिक गिद्धों की संख्या थी। यह तेजी से गिरकर अब एक लाख में सिमट कर रह गई थी। जिसके बाद हमारे लखीमपुर खीरी , महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में तो इनका अस्तित्व समाप्त हो गया है। मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश व हिमालय के तराई के घने वन में ही इनकी बाकी संख्या मौजूद है लेकिन अभी कुछ समय पहले जब दुधवा टाइगर रिजर्व से सटे गावों के किनोरों और दुधवा जाने वाले रास्तों पर गिद्ध दिखाई देने लगे हैं।  पक्षी विज्ञानिकों के मुताबिक मादा गिद्ध अंडे देने के बाद सिर्फ एक ही बच्चे को पालने पोसने की जिम्मदारी उठाती है, इनकी गिरती संख्या के पीछे यह भी एक कारण हो सकता है।

भारत में गिद्धों का कैसे संरक्षित करें

गिद्धों का समाप्त होता जाना गंभीर चिंता का विषय है और इन विलुप्तप्राय होते पक्षियों को बचाने के लिए तत्काल कार्यवाही की जाने की आवश्यकता है। भारत में गिद्धों को संरक्षित करने के लिए निम्नलिखित रणनीति के अपनाए जाने की जरूरत है।

  • डिक्लोफेनाक का कारगर विकल्प विकसित करने और उपलब्ध विकल्प मेलॉक्सिकैम पर सब्सिडी देने की जरूरत है।
  • जंगलों में गिद्धों की, खास कर गिद्ध के विलुप्तप्राय और संकटग्रस्त प्रजातियों की फिर से वापसी के उद्देश्य से Caxtive-breeding programme को बड़े पैमाने पर शुरु करने की आवश्यकता है।
  • गिद्धों के लिए विषमुक्त भोजन, स्वच्छ पानी, बोन चिप्स और सुरक्षा एवं स्वतंत्रता हेतु तार से घेरे हुए खुली छत वाले बसेरों के माध्यम से गिद्ध फीडिंग स्टेशन की स्थापना करने की जरूरत है।
  • सरकार को पारसी शवदाहगृहों के पास शवों के अपवहन हेतु गिद्ध अभयारण्य बनाने चाहिए। पर्याप्त भोजन की उपलब्धता से गिद्धों की आबादी को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
  • डीडीटी। जैसे क्लोरीनयुक्त हाइड्रोकार्बन्स के प्रयोग पर तत्काल प्रतिबंध लगाए जाने की आवश्यकता है।

इस सम्बन्ध में डॉ रंगा राजू टी डिप्टी डायरेक्टर दुधवा टाइगर रिजर्व ने कहा कि हम गिद्धों के संरक्षण और उनकी संख्या बढाने के लगातार प्रयासरत है जिस तरह से हमारे दुधवा टाइगर रिजर्व के रेंज में गिद्धों को दिखाई देना शुरू हो रहा है यह हमारे लिये खुशी का विषय है ।हम पूरी कोशिश कर रहे हैं और उनके लिये अनेक प्रकार की योजनाये भी बना रहें हैं।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *