दिल्ली का ‘नकली बारिश’ वाला 34 करोड़ का दांव फेल! केंद्र ने तो पहले ही चेताया था…!

ईदुल अमीन

PNN24 न्यूज़, नई दिल्ली। दिल्ली की जहरीली हवा से निपटने के लिए दिल्ली सरकार ने जो ‘कृत्रिम बारिश’ (Cloud Seeding) का हाई-टेक दांव खेला था, वह असफल साबित हुआ है। IIT कानपुर के साथ मिलकर शुरू की गई इस महंगी परियोजना पर सरकार ने लगभग 34 करोड़ रुपये फूंक दिए, लेकिन दिल्ली के आसमान से बारिश की एक बूंद भी नहीं बरसी।

सबसे बड़ी बात यह है कि इस पूरी कवायद पर पहले ही सवाल उठ चुके थे। अब यह ख़ुलासा हुआ है कि केंद्र सरकार ने विशेषज्ञों की सलाह के आधार पर पहले ही दिल्ली सरकार को चेता दिया था कि सर्दियों के मौसम में इस तरह की ‘नकली बारिश’ कराना संभव नहीं है।

क्या हुआ और कितना खर्च?

दिल्ली में प्रदूषण का स्तर खतरनाक होने के बाद, दिल्ली सरकार ने ‘क्लाउड सीडिंग’ के जरिए कृत्रिम वर्षा कराने का फैसला लिया था।

  • खर्च: सरकार ने आईआईटी कानपुर के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट पर लगभग 34 करोड़ रुपये खर्च किए।
  • कोशिशें: विमानों के ज़रिए बादलों पर सिल्वर आयोडाइड और अन्य रसायन छोड़े गए। कई बार उड़ानें भरी गईं, लेकिन हर बार नतीजा सिर्फ निराशा रहा।
  • नतीजा: एक बूंद भी बारिश नहीं हुई, और दिल्ली की हवा की गुणवत्ता (AQI) जस की तस बनी रही।

केंद्र की चेतावनी क्यों नहीं मानी?

सवाल यह है कि जब विशेषज्ञ और केंद्र की संस्थाएं, जैसे पर्यावरण मंत्रालय, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) और आईएमडी (IMD), ने मना किया था, तो सरकार ने इतना पैसा क्यों खर्च कर दिया?

  • विशेषज्ञों का तर्क: विशेषज्ञों ने बार-बार बताया था कि कृत्रिम बारिश तभी संभव है जब बादलों में नमी की मात्रा 50% से अधिक हो। दिल्ली में प्रदूषण के दौरान, खासकर सर्दियों में, यह नमी 15 से 20 प्रतिशत से भी कम रहती है। इतने कम नमी वाले सूखे बादलों से बारिश कराना वैज्ञानिक रूप से संभव नहीं था।
  • राजनीति या विज्ञान?: विपक्ष ने इसे सीधे तौर पर जनता के पैसे की बर्बादी और ‘फर्जीवाड़ा’ करार दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने विज्ञान को दरकिनार करते हुए, केवल राजनीतिक स्कोरिंग के लिए यह महंगा प्रयोग किया।

जनता की जेब पर बोझ, हवा जस की तस

यह पूरा मामला दिल्ली की जनता के लिए एक सबक की तरह है। एक तरफ दिल्ली की हवा हर साल जानलेवा होती जा रही है, और दूसरी तरफ इससे निपटने के लिए जनता के टैक्स का पैसा ऐसे असफल प्रयोगों में झोंक दिया जाता है, जिस पर पहले ही विशेषज्ञों ने असफलता की मुहर लगा दी थी। अब देखना यह होगा कि इस बड़ी असफलता के बाद, सरकार प्रदूषण से लड़ने के लिए क्या कोई ठोस और टिकाऊ समाधान लाती है, या फिर हर साल ऐसे ही महंगे और असफल ‘जुगाड़’ पर पैसे बर्बाद करती रहेगी।

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