वरिष्ठ साहित्यकार मुद्रा राक्षस का लंबी बीमारी के बाद नि‍धन

लखनऊ. वरिष्ठ साहित्यकार मुद्रा राक्षस का लंबी बीमारी के बाद सोमवार दोपहर नि‍धन हो गया। वह 82 साल के थे। पि‍छले दिनों उन्हें तेज बुखार की शि‍कायत के बाद केजीएमयू में भर्ती कराया गया था। शुक्रवार दोपहर 3 बजे के करीब उन्हें केजीएमयू लाया गया। यहां पर इमरजेंसी मेडिसिन विभाग में उनका इलाज चल रहा था।

परिजनों ने बताया कि उनको पिछले 10 दिन से बुखार आ रहा था। शुक्रवार को तेज बुखार आने पर परिजन उन्हें लेकर केजीएमयू आए थे। संस्थान के डिप्टी एमएस डॉ. वेदप्रकाश ने बताया कि विशेषज्ञ डॉक्टरों की ओर से उनका इलाज चल रहा था। सोमवार दोपहर उनकी सांसें अचानक रुक गईं।
सिक्कों से तौलकर किया गया था सम्मानित
मुद्रा राक्षस का जन्म 21 जून, 1933 को लखनऊ के बेहटा गांव में हुआ था। वे अकेले ऐसे लेखक थे, जिनके सामाजिक सरोकारों के लिए उन्हें जन संगठनों द्वारा सिक्कों से तौलकर सम्मानित किया गया। विश्व शूद्र महासभा द्वारा ‘शूद्राचार्य’ और अंबेडकर महासभा द्वारा उन्हें ‘दलित रत्न’ की उपाधियां प्रदान की गईं। मुद्राराक्षस को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी नवाजा गया था।

65 से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित
मुद्रा राक्षस की प्रारंभिक रचनाएं साल 1951 से छपनी शुरू हुईं। करीब दो साल में ही वे एक चर्चित लेखक हो गए थे। कहानी, कविता, उपन्यास, आलोचना, नाटक, इतिहास, संस्कृति और समाज शास्त्रीय क्षेत्र जैसी अनेक विधाओं में ऐतिहासिक हस्तक्षेप उनके लेखन की बड़ी पहचान है। इन सभी विधाओं में उनकी 65 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

समाज और सियासत से थी नातेदारी
मुद्रा राक्षस रचित तमाम पुस्तकों का कई देशों में अंग्रेजी समेत दूसरी भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है। 15 सालों से भी ज्यादा समय तक वे आकाशवाणी में एडिटर (स्क्रिप्ट्स) और ड्रामा प्रोडक्शन ट्रेनिंग के मुख्य इंस्ट्रक्टर रहे हैं। साहित्य के अलावा समाज और सियासत से भी उनकी नातेदारी रही है। इसके साथ ही सामाजिक आंदोलनों से भी वह जुड़े रहे हैं।

प्रमुख रचनाएं
विधाएं- उपन्यास, व्यंग्य, आलोचना, नाटक।
मुख्य कृतियां- आला अफसर, कालातीत, नारकीय, दंडविधान, हस्तक्षेप।
संपादन- नयी सदी की पहचान – श्रेष्ठ दलित कहानियां।
बाल साहित्य- सरला, बिल्लू और जाला।

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