सीरिया के विद्रोही संगठनों को संयुक्त राष्ट्र की फटकार

करिश्मा अग्रवाल.

सीरिया के मामलों में संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेष दूत स्टीफ़न दी मिस्तूरा को सीरिया संकट की गहरी समझ है और वह अपनी बात बहुत खुलकर रखते हैं इसी तरह उन्हें बंद कमरों में जारी मंथन की भी पूरी जानकारी रहती है। जेनेवा में सीरिया के विरोधी संगठनों के साथ अपनी बैठक में स्टीफ़न दी मिस्तूरा ने बहुत कठोर स्वर अपनाया और रियाज़ में अपनी योजनाएं तैयार करके जेनेवा पहुंचने वाले प्रतिनिधिमंडल से अपनी मुलाक़ात में उन्होंने कड़ी नसीहत की कि वह यथार्थवादी बने और इस बात को समझे कि अब उसे कोई अंतर्राष्ट्रीय समर्थन हासिल नहीं है अतः उसे चाहिए कि अपनी मांगें बढ़ाने के बजाए विनम्रता दर्शाए तथा ज़मीन पर होने वाले बदलाव को समझे।

कठोर स्वर में दिया गया दी मिस्तूरा का उपदेश इसलिए था कि विरोधियों के प्रतिनिधमंडल ने रियाज़ में होने वाले सम्मेलन के बयान को दोहराया था और सीरिया की सत्ता से राष्ट्रपति बश्शार असद को हटाने की मांग की थी। इसी मांग के चलते सीरियाई सरकार के प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख बश्शार जाफ़री ने विरोधियों के प्रतिनिधिमंडल से प्रत्यक्ष बातचीत से इंकार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि वह उस समय तक वार्ता के मेज़ पर नहीं लौटेंगे जब तक यह प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति असद के बारे में अपनी मांग से तौबा नहीं कर लेता।

विरोधी प्रतिनिधिमंडल का कहना है कि वह यह मांग सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2254 के आधार पर कर रहा है जिसमें कहा गया कि पूर्ण अधिकार वाली अंतरिम सरकार का गठन किया जाए जिसमें राष्ट्रपति असद की कोई भूमिका न हो। दी मिस्तूरा का कहना है कि जेनेवा-1 घोषणा पत्र में एसा कोई भी अनुच्छेद नहीं है जिसका संबंध राष्ट्रपति असद के भविष्य से हो और यदि विरोधी संगठनों का प्रतिनिधिमंडल अपनी इस मांग पर अड़ा रहता है तो जेनेवा वार्ता का पूरा ढांच बिखर जाएगा और उसका स्थाना फ़रवरी में सूची वार्ता ले लेगी जिसमें सीरिया के 35 दलों और संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।

सीरियाई विरोधी संगठन यह हक़ीक़त स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं कि उनके समर्थक अरब देशों की नज़र में अब सीरिया संकट कोई प्राथमिकता नहीं रह गया है। सऊदी अरब इस समय यमन युद्ध की दलदल में फंसा हुआ है। क़तर ने सीरियाई विरोधी संगठनों की भरपूर मदद की थी लेकिन इस समय वह ख़ुद सऊदी अरब, इमारात, बहरैन और मिस्र के साथ गंभीर विवाद में पड़ा हुआ है।

अमरीका जिसने सीरिया संकट के आरंभ से लेकर अब तक 14 अरब डालर ख़र्च किए, अब उसे अपनी योजना पूरी तरह नाकाम हो चुकी दिखाई दे रही है क्योंकि वह ईरान, रूस, तुर्की हिज़्बुल्लाह और सीरिया के गठबंधन के सामने परास्त हो चुका है। उसे यह भी पता है कि वर्ष 2021 तक राष्ट्रपति असद सत्ता में रहेंगे और उसके बाद भी चुनाव जीत जाने की स्थिति में सत्ता में ही बने रहेंगे।

एसा लगता है कि जेनवा-8 वार्ता शायद आख़िरी वार्ता है, अब इसके बाद की वार्ता रूस के सूची शहर में होगी जिसमें अधिक चेहरे नज़र आएंगे और सीरिया में मौजूद पक्षों का अधिक बेहतर ढंग से प्रतिनिधित्व करेंगे। संयुक्त राष्ट्र संघ के दूत ने हलब की लड़ाई से पहले विरोधी संगठनों को नसीहत की थी कि वह शहर छोड़कर निकल जाएं और उसे सीरियाई सेना के हवाले कर दें। इन संगठनों ने दी मिस्तूरा की बात नहीं सुनी थी लेकिन वही हुआ जिसकी भविष्यवाणी उन्होंने कर दी थी। इस समय एक बार फिर वही स्थिति है। विरोधी संगठनों का प्रतिनिधिमंडल एक बार फिर दी मिस्तूरा की नसीहत नहीं सुन रहा है अब एक बार फिर इस प्रतिनिधिमंडल पर बाद के नतीजों की ज़िम्मेदारी होगी क्योंकि ज़मीन पर बहुत कुछ बदल गया है।

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