‘चौराहे से आगे’: आनन्द दीपायन के उपन्यास पर परिचर्चा      

आरिफ अंसारी

वाराणसी, 3 मार्च. सुपरिचित समाज विज्ञानी एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग के प्रो. आनन्द दीपायन के सद्यःप्रकाशित उपन्यास ‘चौराहे से आगे’ पर परिचर्चा का आयोजन गाँधी अध्ययन पीठ, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ के कान्फेरेंस हाल में किया गया।

परिचर्चा में मुख्य वक्ता अंग्रेजी एवं हिन्दी के प्रसिद्ध समालोचक प्रो.राम कीर्ति शुक्ल ने कहा कि हम सब इतिहास के भीतर रहते हैं उसकी सीमा को तोड़ नही सकते। इस उपन्यास के माध्यम से अपनी बात रखते हुए प्रो. शुक्ल ने कहा चौराहा एक संशय केन्द्र होता है, जहाँ यह अनिश्चित सा लगने लगता है कि जाना किधर है। चौराहे पर पहुंचकर अपनी जीवन की सार्थकता को सिद्ध करने का रास्ता मानते हुए एक दिशा तय करने की बहुत प्रभावशाली कोशिश इस उपन्यास में दिखायी देती है। उन्होंने कहा कि नावेल्स अबोउट एजेड उपन्यास की एक नवीन विधा है, उनके हिसाब से हिंदी में यह एक नयी शुरुवात मानी जा सकती है। इस उपन्यास में वर्णित प्रेम के सन्दर्भ को व्याख्यायित करते हुए उन्होंने कहा कि प्रेम केवल युवावस्था में ही नहीं होता बल्कि अकेलेपन या एक नये किस्म की यात्रा करनी हो या फिर आप जीवन से थक गये हो तब आपको किसी साथ की जरूरत महसूस होती है। इस उपन्यास के विविध सन्दर्भों को उद्घाटित करते हुए प्रो. शुक्ल ने कहा साठ सत्तर के दशक के युवा चेतना का जो स्वप्न था वह अब २१वीं सदी में आकर संभ्रम में बदल गया है। इसी दौरान उन्होंने फैक्ट, फिक्सन और मिथ की कसौटी पर ‘चौराहे से आगे’ की गंभीर समीक्षा की।

अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध रंगवेत्ता कुंवर जी अग्रवाल ने कहा कि उपन्यास और कहानी वह विधा है जो आसानी से दृश्य पटल पर अंकित हो जाती है, इस दृश्य से ‘चौराहे से आगे’ एक सफल कृति है। उन्होंने कहा कि साहित्य का काम विमर्श की दुनिया को यथार्थ की दुनिया से जोड़ना है। कुंवर जी ने जोर देकर कहा कि प्रकृति में पुनर्जनन एक प्रक्रिया है। इसके लिये इसमें प्रेम रूपी रसायन का होना अति आवश्यक है, बिना प्रेम के कोई कहानी नहीं हो सकती है।

बीज वक्तव्य देते हुए समीक्षक डा. संजय श्रीवास्तव ने कहा कि यह उपन्यास दायित्व और स्वप्न के अंतर्द्वंद्व में उलझे एक प्रौढ़ मन की कथा है, जो नौकरी से सेवा प्राप्ति के बाद नये संघर्ष और उत्साह के साथ पुनर्जीवन की ओर बढ़ता है। उन्होंने कहा कि इस उपन्यास का मुख्य सन्देश है कि सेवा से निवृत्ति जीवन के कर्तव्यों से निवृत्ति नहीं है। यह उपन्यास साठोत्तर प्रेमानुभूति का विशिष्ट वृत्तान्त भी है। प्रारम्भ में ‘चौराहे से आगे’ उपन्यास के लेखक आनन्द दीपायन ने अपने लेखन पर अत्यन्त संक्षिप्त प्रकाश डाला।

स्वागत डा. राम प्रकाश द्विवेदी ने और संचालन डा. मोहम्मद आरिफ ने किया। अन्त में आभार ज्ञापन प्रो. आर.पी.सिंह ने किया। इस अवसर पर डा. आनन्द प्रकाश तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार सुरेश प्रताप, वरिष्ठ पत्रकार ए.के. लारी, वरिष्ठ पत्रकार तारिक आज़मी, डा.कमालुद्दीन शेख, डा. सरोज आनन्द, डा. नूर फातिमा, श्रुति नागवंशी, संजय भट्टाचार्य, डा. रियाज अहमद, मुचकुन्द द्विवेदी, अनिल यादव, रामजनम, शशांक, आकांक्षा, धीरज कुमार शर्मा, शैलेश कुमार, सूर्य प्रकाश तिवारी, सुलेमान, प्रवीन, अजय मृदुल विशेष रूप से उपस्थित रहे।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *