सभी व्रतों में श्रेष्ठ है निर्जला एकादशी का व्रत

प्रदीप दुबे विक्की

निर्जला एकादशी आज, एकादशी के दिन चावल का प्रयोग है वर्जित

कांवल/ज्ञानपुर, भदोही।ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादाशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। निर्जला एकादशी का व्रत सबसे कठिन माना जाता है। इस व्रत में भोजन और पानी दोनो का ही त्याग करना होता है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को विधिपूर्वक करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है और तंगी से छुटकारा मिलता है। इस व्रत की सबसे खास बात यह है कि साल भर में आने वाली सभी एकादशियों का फल केवल इस व्रत को रखने से मिल जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को महाभारत काल में पांडु पुत्र भीम ने किया था जिस कारण इसे भीम एकादशी भी कहा जाता है। निर्जला एकादशी वाले दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि विष्णु भगवान की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है । इसके अलावा शाम के समय तुलसी जी की पूजा करनी चाहिए। गरीब, जरूरतमंद या फिर ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और दान करना चाहिए।
सनातन परंपरा में रखे जाने वाले तमाम व्रतों में निर्जला एकादशी का व्रत सभी व्रतों में सर्वश्रेष्ठ है। मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है। निर्जला एकादशी पर किया गया व्रत, अनुष्ठान बेहद फलदायी है। इस दिन किए गए पूजन व दान-पुण्य से अक्षय पुण्य की प्रप्ति होती है। मान्यता है कि भगवान विष्णु का आशीर्वाद दिलाने वाली सभी एकादशी व्रत में निर्जला एकादशी व्रत सबसे कठिन होती है। अगर कोई व्यक्ति साल की 24 एकादशी का व्रत नहीं कर पाते तो इस एक व्रत को करने मात्र से ही मनुष्य समस्त प्रकार के पुण्य कमा सकते हैं।
निर्जल रहने वाली इस एकादशी व्रत के बारे में मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को विधि-विधान से पूरा कर लेता है, उसे 24 एकादशियों का पुण्य मिल जाता है। निर्जला एकादशी में बिना खाए पिएं पूरे दिन उपवास रखा जाता है। इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की कृपा होती है। इस दिन अपनी क्षमता के अनुसार दक्षिणा का दान करना चाहिए। एकादशी के दिन सभी के लिये चावल का प्रयोग हमारें शास्त्रों में निषेध माना गया है।

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