जीवित्पुत्रिका व्रत होती है संतानों की सुरक्षा कवच      

बापूनन्दन मिश्र

रतनपुरा(मऊ) परंपराओं और आस्था में विश्वास कर संतानो की सलामती एवं सुख-समृद्धि के लिए पुत्रवती माताओं ने अन्न जल रहित होकर विधि-विधान से पूजन किया। ग्रामीण क्षेत्रों में आज जीवित्पुत्रिका पर्व की धूम रही। धूप- बत्ती, फूल, फल एवं चीनी से बनी एक विशेष प्रकार की मिठाई ‘लडुई ‘का भोग लगाकर माताओं ने अपनी संतानों की सलामती के लिए अपने आराध्य देव से प्रार्थना किया।

दिन भर बिना अन्न जल के व्रत रहकर शाम के समय महिलाएँ जलाशयों के किनारे इकठ्ठा होकर पूजन अर्चन कर पौराणिक कथाओं को कहती हैं और पुनः घर को आती हैं। अगली सुबह पुनः पूजन के पश्चात व्रती महिलाएँ पारण करती हैं। इस व्रत को करने वाली महिलाओं का मानना है कि सच्ची आस्था और विश्वास से किया गया यह व्रत संतानो के लिए विषम परिस्थितियों में रक्षा कवच का कार्य करता है। इसी विश्वास में वे लगभग 40 घंटों से भी अधिक समय तक निराजल रहकर सहर्ष यह व्रत रखती हैं।

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