“नारी तेरे रूप अनेक” – लेखक : अनिल मिश्र एडवोकेट

लेखक : अनिल मिश्र एडवोकेट

कोरोना से लड़ाई के इस दौर में एक तरफ जहाँ सम्पूर्ण राष्ट्र कोरोना वारियर्स डॉक्टर,पुलिस,सफ़ाई/सरकारी कर्मियों,बैंककर्मियों आदि बहुत से तबकों का उनके साहस त्याग समर्पण की मानवीय भावना हेतु कृतज्ञता व्यक्त कर रहा है वहीं दूसरी ओर एक ऐसे वर्ग जिसने नेपथ्य में रहते हुए भी न केवल इन कोरोना वारियर्स का कदम से कदम मिला कर साथ दिया है वरन राष्ट्र समाज व परिवार की इकाई को भी और अधिक व्यवस्थित और मजबूत बनाने में भी अपना महती योगदान दिया है।आश्चर्य की बात है कि पर्दे के पीछे के इस पात्र पर अभी तक हमारी निगाह नहीं पड़ी है इस पात्र को हम नारीशक्ति की संज्ञा से विभूषित करते हैं।

लॉक डाउन के इस दौर मे जबकि परिवार का प्रत्येक सदस्य अपनी इच्छा या अनिच्छा से घर के सीमित दायरे में ही रहने को विवश हो घर के इस कुशल गृहणी के पात्र की भमिका  एक पालनकर्ता के रूप में कर्तव्यों के बोझ तले और भी अधिक जिम्मेदारी की हो गई है जिसका निर्वहन भी इसके द्वारा बड़ी कुशलता के साथ किया जा रहा है इसके बाद भी यदि हमारा ध्यान इसकी तरफ नही जाता है तो हम इसके साथ नहीं बल्कि अपने खुद के साथ अन्याय करेंगे।लॉक डाउन में हमें तो केवल एक ही लॉक डाउन अर्थात घर में ही रहने के नियम का पालन करना पड़ रहा है जबकि यह कई कई लॉक डॉउनों की लक्ष्मण रेखा में घिरी राह कर काम करने को विवश है।

एक तरफ घर में ही धारा 144 को तोड़ने वाली संख्या के सदस्यों की मुस्तकिल मौजूदगी दूसरी तरफ इतने सारे लॉक डाउनो का चक्रव्यूह, कल्पना कीजिये बर्तन मांजने वाली के न आने का लॉकडाउन,खाना बनाने वाली के न आने का लॉक डाउन,कपड़े धोने व प्रेस करने वाले का लॉक डाउन,साथ में सारे घर के सदस्यों व बच्चों की देखभाल,साफ सफाई एवम स्नान ध्यान पूजा पाठ नाश्ता खाना के समय पर होने के कर्फ्यू की स्वघोषित राजाज्ञा यह अपनी नैसर्गिक प्रदत्त क्षमता से सभी उत्तर दायित्वो का बोझ कितनी सरलता कितनी कुशलता के साथ करती रहती है पृथ्वी को परमेश्वर का वरदान है यह।ममता इसका नैसर्गिक गुण है किसी ने लिखा भी है

“मैंने जब भी लिखा कागज पर माँ का नाम,
कलम अदब से कह उठी, लो हो गये चारो धाम”।।

रोजाना कोरोना की संभावित दुष्चिन्ता मैं सब सदस्यों को प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए समय पे दूध में हल्दी,तुलसी आदि घरेलू नुस्खों का इस्तेमाल करना भी इसी के हिस्से में घर में एक सदस्य की आवाज पर कदम उठाते ही दूसरी तीसरी आवाज पर फिरकी की तरह नाचते रहना भी इसी की नियति है तुर्रा ये की लॉकडाउन से उपजी खीज और ऊबन को नई नई रेसिपी बनाने की फरमाइशें भी सुबह से शाम तक किसी कर्कशा सास के व्यंग्यबाणों, तानो की तरह इसी का पीछा करती रहती हैं।आदिकाल से ही बचपन से लेकर जवानी बुढापा आखरी सांस तक जितने ताने हैं अपमान है लांछन है प्रताड़नाएं है सब इसके हिस्से में और अब तो कोख तक में यह बाहरी दंश और प्रहारों से मुक्त नही है।

नारी के इन विभिन्न स्वरूपों क्षमताओं को लाखों लाख प्रणाम सलाम एवम सैल्यूट करते हुये एक नई श्रंखला “नारी तेरे रूप अनेक” हम अति शीघ्र सम्भवतः कल से ही प्रस्तुत करने जा रहे है इस बिंदु पर बस इतना कह सकता हूँ कि इस विषय पर कलम चलाने के पहले मैं अपनी कल्पना में स्वयं दसियों बार नारी बन कर जिया हूँ ,मरा हूँ। तब तक कुछ समय कुछ पल………..इंतज़ार……के……..

लेखक : अनिल मिश्र एडवोकेट

फर्रूखाबाद उ०प्र०, मो०न० 9455065444

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