बनारस व्यापार मंडल: 24 साल बाद बजी चुनाव की डुगडुगी, हुआ नामांकन, कोषाध्यक्ष पद पर निर्विरोध है रोशन कैप वाले हाजी समद, क्या किसी को याद है मरहूम जियाउद्दीन भाई

तारिक़ आज़मी

वाराणसी: वाराणसी की मशहूर मार्किट जिसमे सबसे अधिक दुकाने है वह है नई-सड़क, बेनिया, दालमंडी और आसपास के इलाके। इतने अधिक कारोबारियों के बीच संगठन के तौर पर दो संगठन कार्यरत है जिसमे एक दालमंडी व्यापार मंडल है तो दूसरा बनारस व्यापार मंडल। दालमंडी व्यापार मंडल की स्थापना को अभी अधिक समय नही हुआ है, और वह अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने के लिए प्रयासरत है। वही दूसरी तरफ बनारस व्यापार मंडल शायद वाराणसी जनपद में व्यापारियों में सबसे बड़ा संगठन और सबसे पुराना संगठन है।

बनारस व्यापार मंडल के की स्थापना को 27 वर्ष हो चुके है। इस व्यापार मंडल के अध्यक्ष पद पर मरहूम जियाउद्दीन साहब थे। जिनका इन्तेकाल विगत वर्ष हुआ है। जियाउद्दीन भाई जब तक हयात में थे व्यापारियों की समस्याओं हेतु एकल प्रयास हमेशा करते रहते थे। 24 साल एक बड़ा वक्त होता है मगर ये जियाउद्दीन भाई की अपनी मशक्कत थी कि इस संगठन को उन्होंने जिंदा रखा हुआ था। संगठन के ज़रिये कारोबारियों की समास्याओ को समय समय पर उठाते रहते थे। बेशक आज जियाउद्दीन साहब की बड़ी याद आ रही है। अपने हयात में उन्होंने काफी कोशिश किया कि नवजवान तबका संगठन में आगे आये और संगठन की बाग़डोर संभाले। मगर हकीकत ये है कि बुज़ुर्ग हो चुके जियाउद्दीन भाई के कंघो पर नवजवान तबका जोर डाले हुवे था और वह एकल प्रयास से ही समस्याओं से जूझते रहते थे।

अब जब जियाउद्दीन भाई इस दुनिया-ए-फानी से रुखसत हो चुके है तो उनकी यादो का सहारा ही बचा है। एक अज़ीम शख्सियत ने जिस संगठन को अपने एकल प्रयास से 24 साल तक जिंदा रखा आज उस संगठन की ज़रूरत लोगो को आखिर पड़ ही गई। संगठन के लिए कौन अध्यक्ष हो और कौन महामंत्री इसकी जद्दोजेहद चालू हो चुकी है। एक बैठक के बाद जब निर्णय नही निकल पाया तो आखिर चुनाव की बात सामने आई। जिसके बाद चुनाव की तैयारी हुई और कल नामांकन प्रक्रिया पूरी हो गई। शकील मियाँ को चुनाव अधिकारी का ज़िम्मा मिला तो उन्होंने भी दलगत राजनीत से ऊपर उठकर इस चुनाव को इमानदारी से संपन्न करवाने का बीड़ा उठा लिया है।

प्रत्याशियों के नाम सामने आ चुके है। कल खत्म हुई चुनाव नामांकन प्रक्रिया में अध्यक्ष पद पर कुल तीन नाम सामने आये है। जिसमे आसिफ शेख जिनको लोग आसिफ पटाखा के नाम से भी जानते है और वह भाजपा अल्पसंख्यक नेता है। दुसरे है राशिद सिद्दीकी। राशिद मियाँ इसी इलाके के कारोबारी है, उनकी सामाजिक पकड भी काफी मजबूत है और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता है। तीसरा नाम है काशीपुर के एनुद्दीन उर्फ़ एनु जो बतौर निर्दल कहा जा सकता है कि चुनाव मैदान में है। अब अगर दलगत सियासत के मद्देनज़र देखे तो मुकाबले में भाजपा, सपा और निर्दल है। सभी के अपने अपने दावे है। सबके अपने अपने वायदे है।

महामंत्री पद पर जमकर घमासान है। इस पद पर मुन्ने बाबू के पुत्र राज ने दावा करते हुवे अपना नामांकन किया है। मुन्ने बाबु की सामाजिक पकड बढ़िया होने के कारण राज अपना दावा कर रहे है। दूसरे दावेदार है अज़हर उर्फ़ अज्जू। जो विद्यापीठ के छात्र रह चुके है। इनकी बैकिंग पीछे से कुछ बड़े दूकानदार करने की जानकारी मिल रही है। समाजसेवा में स्नातक और इतिहास में परास्नातक की डिग्री धारक अज्जू दुकानदारों के हितो की रक्षा हेतु कसमे खा रहे है। तीसरे प्रत्याशी है मिस्टर। अमूमन लोग मिस्टर को मिस्टर टिकट नाम से जानते है। इलाके और आसपास के लोग ऑनलाइन टिकट करवाने के लिए मिस्टर मियाँ का ही नाम लेते है और मृदुभाषी तथा शायरी के शौक़ीन मिस्टर मियाँ अब खुद का टिकट लेकर चुनाव की गाडी में बैठ चुके है।चौथा नाम इसमें महफूज़ आलम का है तो पांचवी दावेदारी सुनील कुशवाहा की भी है। सब मिलाकर महामंत्री पद पर जमकर घमासान होने की संभावना प्रतीत हो रही है और काटे की इस टक्कर में कौन जीतता है ये 24 अगस्त बतायेगा।

कोषाध्यक्ष पद के लिए कोई सामने नहीं आया है। इस पद पर केवल एक ही नामांकन हुआ है जो है रोशन कैप वाले हाजी समद। नामांकन प्रक्रिया खत्म हो चुकी है जिसके बाद हाजी साहब निर्विरोध चुने जा चुके है और उनको सिर्फ 24 तारिख को अपना जीत का ताज पहनना है। बकिया जीत तो उनकी हो ही चुकी है। नामांकन के बाद सभी अपने दावे और पोस्टर हैण्डबिल छपवा रहे है। कुछ लगा भी चुके है। कोई सड़क बनवाने का दावा कर रहा है साथ में एटीएम मशीन भी लगवाने की बात कह रहा है तो कोई व्यापारियों के हर सुख में हसने और दुःख में रोने का दावा कर रहा है।

इन सबके बीच अगर कोई कमी खलती हुई दिखाई दे रही है वह है जियाउद्दीन भाई की कमी। मरहूम ने जिस मेहनत मशक्कत के साथ इस संगठन को आज तक कायम रखा उनकी याद शायद किसी को नही आ रही है। उनकी कमी ही तो थी कि हर वर्ष होने वाले गुड्डी लड़ईया के मेले में जिसमे अच्छी खासी खरीदारी होती थी इस वर्ष किसी ने परमिशन नही लिया। देर रात तक इलाके के समाजसेवक जी हुजूरी करते रहे। उस दिन जियाउद्दीन भाई की याद सबको आई थी। ये याद भी कितनी मौकापरस्त होती है जो सिर्फ ज़रूरत पर ही आती है। चलिए साहब हम सभी प्रत्याशियों को अपनी हार्दिक शुभकामनाये देते है। व्यापारी हित हो या आम जन के हितो की बात हम हर एक उस प्रयास की सराहना करते है जिससे किसी का भला हो जाए।

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