हेट स्पीच मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मीडिया को जमकर फटकार, कहा टीवी एंकरों की बड़ी ज़िम्मेदारी है, माँगा दो सप्ताह में सरकार से जवाब कि आखिर केंद्र सरकार चुप क्यों है ?

आदिल अहमद

नई दिल्ली: हेट स्पीच को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट ने बेहद नाराजगी जताते हुवे कड़ा रुख अख्तियार किया और मीडिया पर सवाल उठाए हैं। देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि “सबसे ज्यादा हेट स्पीच मीडिया और सोशल मीडिया पर है, हमारा देश किधर जा रहा है ? टीवी एंकरों की बड़ी जिम्मेदारी है। टीवी एंकर गेस्ट को टाइम तक नहीं देते, ऐसे माहौल में केंद्र चुप क्यों है ?  एक सख्त नियामक तंत्र स्थापित करने की जरूरत है।” सु्प्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से दो सप्‍ताह में अपना जवाब देने का निर्देश दिया है।

आज हुई सुनवाई में अदालत ने जमकर मीडिया को फटकार लगाया है वही केंद्र सरकार की चुप्पी पर भी सवाल उठाते हुवे दो सप्ताह में उसे जवाब देने को कहा है कि आखिर वो इस माहोल में चुप क्यों है? अदालत इस मामले में अब 23 नवंबर को सुनवाई करेगी। अदालत ने आज हेट स्पीच से भरे टॉक शो और रिपोर्ट टेलीकास्ट करने पर टीवी चैनलों को जमकर फटकार लगाई है।  हेट स्पीच से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने बुधवार को यह बात कही।कोर्ट ने कहा कि यह एंकर की जिम्मेदारी है कि वह किसी को नफरत भरी भाषा बोलने से रोके। बेंच ने पूछा कि इस मामले में सरकार मूकदर्शक क्यों बनी हुई है। क्या यह एक मामूली मुद्दा है। अदालत ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जरूरी है, लेकिन टीवी पर अभद्र भाषा बोलने की आजादी नहीं दी जा सकती है। एक नजीर देते हुवे अदालत ने कहा कि ऐसा करने वाले यूनाइटेड किंगडम के एक टीवी चैनल पर भारी जुर्माना लगाया गया था।

कोर्ट ने कहा, “मेनस्ट्रीम मीडिया या सोशल मीडिया चैनल बिना रेगुलेशन के हैं। यह देखना एंकर्स की जिम्मेदारी है कि कहीं भी हेट स्पीच न हो। प्रेस की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है। उन्हें अमेरिका जितनी आजादी नहीं है, लेकिन यह पता होना चाहिए कि सीमा रेखा कहां खींचनी है।” सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने कहा कि हेट स्पीच से राजनेताओं को सबसे ज्यादा फायदा होता है और टेलीविजन चैनल उन्हें इसके लिए मंच देते हैं। सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े ने कहा- चैनल और राजनेता ऐसी हेट स्पीच से ही चलते हैं। चैनलों को पैसा मिलता है इसलिए वे दस लोगों को बहस में रखते हैं।

जस्टिस  के एम जोसेफ ने कहा कि “राजनीतिक दल इससे पूंजी बनाते हैं और टीवी चैनल एक मंच के रूप में काम कर रहे हैं। सबसे ज्यादा नफरत भरे भाषण टीवी, सोशल मीडिया पर हो रहे हैं। दुर्भाग्य से हमारे पास टीवी के संबंध में कोई नियामक तंत्र नहीं है। इंग्लैंड में एक टीवी चैनल पर भारी जुर्माना लगाया गया था। दुर्भाग्य से वह प्रणाली भारत में नहीं है। एंकरों को यह बताना चाहिए कि अगर आप गलत करते हैं तो परिणाम भुगतने होंगे। समस्या तब होती है जब आप किसी कार्यक्रम के दौरान किसी व्यक्ति को कुचलते हैं। जब आप टीवी चालू करते हैं तो हमें यही मिलता है। हम इससे जुड़ जाते हैं। हर कोई इस गणतंत्र का है। यह राजनेता हैं जो लाभ उठा रहे हैं। लोकतंत्र के स्तंभ स्वतंत्र माने जाते हैं। टीवी चैनलों को इन सबका शिकार नहीं होना चाहिए।”

उन्‍होंने कहा कि आप मेहमानों को बुलाते हैं और उनकी आलोचना करते है। हम किसी खास एंकर के नहीं बल्कि आम चलन के खिलाफ हैं, एक सिस्टम होना चाहिए। पैनल डिस्कशन और डिबेट्स, इंटरव्यू को देखें। अगर एंकर को समय का एक बड़ा हिस्सा लेना है तो कुछ तरीका निर्धारित करें। सवाल लंबे होते हैं जो व्यक्ति उत्तर देता है उसे समय नहीं दिया जाता। गेस्ट को शायद ही कोई समय मिलता है। केंद्र चुप क्यों है आगे क्यों नहीं आता? राज्य को एक संस्था के रूप में जीवित रहना चाहिए। केंद्र को पहल करनी चाहिए। एक सख्त नियामक तंत्र स्थापित करें।”इससे पहले चुनाव के दौरान हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग का हलफनामा दाखिल किया था और कहा था कि  उम्मीदवारों को तब तक प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता जब तक केंद्र ” हेट स्पीच ” या “घृणा फैलाने” को परिभाषित नहीं करता।

अदालत ने कहा कि आयोग केवल आईपीसी या जनप्रतिनिधित्व कानून का उपयोग करता है। उसके पास किसी राजनीतिक दल की मान्यता वापस लेने या उसके सदस्यों को अयोग्य घोषित करने का कानूनी अधिकार नहीं है। अगर कोई पार्टी या उसके सदस्य हेट स्पीच में लिप्त होते हैं तो उसके पास डी रजिस्टर करने की शक्ति नहीं है। चुनाव आयोग ने केंद्र के पाले में गेंद डाल दी थी। चुनाव आयोग ने कहा था कि हेट स्पीच और अफवाह फैलाने वाले किसी विशिष्ट कानून के अभाव में, चुनाव आयोग आईपीसी के विभिन्न प्रावधानों को लागू करता है जैसे कि धारा 153 ए- समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम। समय-समय पर एडवाइजरी भी जारी कर  पार्टियों से प्रथाओं से दूर रहने की अपील करते हैं। यह चुनाव आचार संहिता का भी हिस्सा है।

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