मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव: क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस ही नही भाजपा के अन्दर अपने विरोधियो से भी मुकाबिल होना पड़ सकता है? उनके खेमे में विरोध के स्वर तो उठ चुके है

तारिक़ आज़मी

डेस्क: चम्बल और ग्वालियर ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्र है। पिछले विधानसभा चुनावो में इस इलाके में सियासी जंग ‘महाराज बनाम शिवराज’ देखा है। मगर मार्च 2020 कांग्रेस के क़द्दावर नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी का दामन थाम लिया था। अब इस बार जब फिर से विधानसभा चुनाव सर पर है तो सबसे अधिक सियासी संकट सिंधिया के साथ ही देखने को मिल सकता है।

जिस प्रकार के सियासी कयास लगाये जा रहे है, उसके अनुसार कभी राहुल गाँधी के करीबी दोस्त रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस से तो आमने सामने विरोध देखने को मिलेगा ही। साथ ही भाजपा के अन्दर भी उनके लिए पुराने भाजपा नेताओं से विरोध का सामना करना पड़ सकता है। सिंधिया के साथ उनके गुट के 22 कांग्रेस विधायकों ने भी बीजेपी की सदस्यता ले ली थी। इसके साथ ही मध्य प्रदेश में एक बार फिर बीजेपी की सरकार बनने का रास्ता खुला था और कमलनाथ की सरकार गिर गई थी।

बीजेपी साल 2003 से सत्ता में थी लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई थी। इस जीत में एक बड़ा योगदान ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी माना जाता है। उनके गुट के 22 विधायक जीत कर आये थे। चुनाव जहा ‘महाराज बनाम शिवराज’ हुआ तो महाराज को विजय मिली इसमें तो कोई दो राय नही है। इसके बाद कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में सरकार कांग्रेस ने बनाई। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की बग़ावत के साथ ही 15 महीनों की कमलनाथ सरकार रेत के किले कि तरह गिर गयी। इसके साथ ही भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर मध्य प्रदेश की सत्ता में आ गयी।

जिस समय ज्योतिरादित्य बीजेपी में शामिल हो रहे थे, उस वक़्त ये चर्चा राजनीतिक गलियारों में ज़ोर शोर से चलने लगी कि शायद भारतीय जनता पार्टी उन्हें मध्य प्रदेश में ‘अहम ज़िम्मेदारी’ सौंपेगी। कयास लगाए जाने लगे कि प्रदेश में नेतृत्व भी बदला जा सकता है। काफ़ी लंबी चली अटकलों के बाद सिंधिया को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी गयी जबकि उनके साथ भाजपा में शामिल हुए विधायकों में से कुछ को शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया जबकि कुछ को निगमों और मंडलों में जगह दी गयी। ये तो थी बात विधायकों की। सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल होने वाले उनके क़रीबी नेता भी अपनी महत्वाकांक्षाओं के साथ नए संगठन में शामिल हुए थे।

भले ही केंद्रीय मंत्री का ओहदा सिंधिया को मिला मगर वह पार्टी में एकदम अलग थलग जैसी ही स्थिति में थे। समय के साथ उनके खेमे में असंतोष अब पनपने लगा है। विधानसभा चुनावों के क़रीब आते आते जिन नेताओं को कुछ नहीं मिला उनमें एक तरह की ‘छटपटाहट’ देखी जाने लगी है। दूसरी तरफ बैजनाथ सिंह यादव बीजेपी की प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य थे, मगर अचानक उन्होंने कांग्रेस में ‘घर वापसी’ की घोषणा की और सिंधिया खेमे के कई दूसरे नेताओं के साथ वो मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ से मिले और कांग्रेस की सदस्यता ले ली। कांग्रेस में वापस लौटने पर उन्होंने कहा कि साल 2020 से ही उन्हें भाजपा में ‘घुटन’ हो रही थी, इस लिए उन्हें ये क़दम उठाना पड़ा। उनका ये बयान तो साफ़ करता है कि सिंधिया के खुद के खेमे में लोगो के अन्दर असंतोष पनप चूका है।

सियासी जानकारों की माने तो बैजनाथ सिंह ने सिर्फ़ ‘घर वापसी’ ही नहीं की बल्कि जिस तरह से वो ग्वालियर से भोपाल आये उसको देखे तो बहुत कुछ समझ में आएगा। ग्वालियर से भोपाल तक बैजनाथ सिंह के क़ाफिले में 400 गाड़ियां थी। जो साफ़ साफ इस बात को दर्शाता है कि कम से कम ये शक्ति प्रदर्शन जैसा काफिला कांग्रेस को दिखने के लिए नही बल्कि सिंधिया खेमे को दिखाने के लिए रहा होगा। वह अपने साथ अपने क्षेत्र के लगभग ढाई हज़ार समर्थकों को भी प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय लेकर पहुंचे थे। जो उनके शक्ति को प्रदर्शित भाजपा की आँखों में कही न कही कर गया है। खासतौर पर सिंधिया को ये बात तो स्पष्ट हो गई कि अपने खेमे के ही एक सदस्य से उनको मुकाबिल होना पड़ेगा।

अब अगर भाजपा में सिंधिया की मुखालफत देखे तो जब सिंधिया ने भाजपा का दामन थामा था तो सियासी कयास लगाया जा रहा था कि सिंधिया को मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठाला जा सकता है। वह शिवराज सिंह का विकल्प हो सकते है। मगर कभी भाजपा ने ये बात नही कही थी। सियासी कयास था कि 16 साल सत्ता के बाद शिवराज के सामने सत्ता विरोधी लहर है और सिंधिया उनका विकल्प होंगे। मगर हुआ ऐसा कुछ नहीं। सिंधिया खेमे के विधायको को कहा जा सकता है कि सत्ता की मलाई तो एकदम नही मिली, हाँ ये ज़रूर है कि कई के हिस्से में छांछ आई। जिससे उनके साथ कांग्रेस से आये आया नेता भी सियासी महत्वाकांक्षा पूरी करने में अपनी मेहनत इस बार करेगे ही। तो शायद एक असंतोष और भी खेमे में सामने आ जाये।

अब अगर भाजपा के अन्दर सिंधिया का विरोध देखने चले तो इसका ताज़ा उदाहरण के0 पी0 यादव हैं जो भारतीय जनता पार्टी के गुना से सांसद हैं। कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेहद करीबी रह चुके यादव ने सिंधिया को लोकसभा के चुनावों में हराया था। यादव ने सिंधिया के ख़िलाफ़ सार्वजनिक रूप से मोर्चा खोल दिया था। नौबत यहाँ तक आ गयी कि भारतीय जनता पार्टी के आला कमान को हस्तक्षेप करना पड़ा और यादव को सिंधिया के सामने खेद प्रकट करना तक पड़ गया। इस घटना के बाद अब सियासी जानकारों की माने तो उनको लगता है कि भारतीय जनता पार्टी को, ‘पुराने समर्पित कार्यकर्ताओं’ और सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हुए नेताओं के बीच चल रही इस रस्साकशी का दंश ग्वालियर और चंबल संभाग में ज़्यादा झेलना पड़ रहा है। इसका जीता जागता उदहारण है ग्वालियर मेयर की सीट। जो पिछले साल हुवे चुनाव में भाजपा के खाते से छिटक कर कांग्रेस के पाले में चली गई।

पिछले 5 दशक से अधिक समय तक यह सीट कांग्रेस के खाते में नही रही। ऐसा 57 सालों के बाद हुआ है जब पिछले साल कांग्रेस ने ग्वालियर के महापौर की सीट जीत ली। भारतीय जनता पार्टी को मुरैना के नगर निकाय चुनावों में भी नुक़सान उठाना पड़ा। सियासी जानकार मानते है कि ग्वालियर और चंबल संभाग की 50 प्रतिशत ऐसी सीटें हैं जहां भारतीय जनता पार्टी के ‘पुराने समर्पित नेताओं’ और सिंधिया के साथ भाजपा में आये नेताओं के बीच सीटों को लेकर तना-तनी बनी हुई है। ये तना-तनी तब और भी बढ़ जाएगी जब टिकटों का एलान होगा।

दरअसल कोई भी पार्टी टिकट जीत की संभावना पर देती है। एक सीट पर कई नामो की लिस्ट होती है। उसमे पार्टी देखती है कि जीत की संभावना किसकी है। उसके बाद टिकट का फैसला होता है। ऐसे में एक विरोध और भी पनप सकता है क्योकि संगठन कभी भी खेमा देख कर टिकट नही देगा। सब मिलाकर ये है कि सिंधिया को दो तरफ़ा विरोध इन विधान सभा चुनावो में झेलना पड़ सकता है। अथवा उनके खेमे की उन्हें नाराजगी देखना पड़ सकता है। शायद पूरी सियासी पिक्चर अब शुरूआती दौर में है।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *