महाराष्ट्र में म्युनिसिपल काउंसिल में साइन बोर्ड पर उर्दू के इस्तेमाल के विरोध में दाखिल याचिका सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज, याचिकाकर्ता पर बोले जावेद अख्तर ‘आश्चर्य है अभी भी ऐसे लोग है जो जिन्ना पर यकीन करते है

ईदुल अमीन
डेस्क: महाराष्ट्र में उर्दू भाषा पर छिड़ी बहस के बीच कवि, गीतकार और स्क्रिप्ट राइटर जावेद अख़्तर ने एक्स पर एक पोस्ट किया है। बताते चले कि महाराष्ट्र में म्युनिसिपल काउंसिल में साइन बोर्ड पर उर्दू के इस्तेमाल के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका को अदालत ने आज खारिज कर दिया। यह याचिका इसके पहले बाम्बे हाई कोर्ट में भी दाखिल हुई थी जिसको अदालत ने खारिज कर दिया था। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट के चौखट तक पंहुचा था।

जहाँ याचिकाकर्ता को अदालत ने फटकार लगा दिया। अदालत ने याचिका खारिज करते हुवे कहा कि हमारी ताकत कभी भी हमारी कमजोरी नही हो सकती है। हमे उर्दू और सभी भाषाओं से दोस्ती करना चाहिए। हमारी धारण स्पष्ट होनी चाहिए। भाषा कोई धर्म नही है, न ही यह किसी धर्म का प्रतिनिधित्व करती है। भाषा किसी समुदाय, क्षेत्र और लगो से सम्बंधित है न कि किसी धर्म से।
अदालत ने कहा कि उर्दू के खिलाफ पूर्वाग्रह इस गलत धारण से उपजा है कि उर्दू भारत के लिए पराई या विदेशी भाषा है। यह सोच गलत है। क्योकि मराठी और हिंदी की तरह उर्दू भी इंडो-आर्यन भाषा है। इसका जन्म इसी धरती पर हुआ है। जब हम उर्दू की आलोचना करते है तो हम एक तरह से हिंदी की भी आलोचना करते है। क्योकि भाषाविदो और साहित्य विद्वानों के मुताबिक हिंदी और उर्दू दो अलग भाषाए नहीं है, ये एक ही भाषा है, यह सही है कि उर्दू नस्तालीक में लिखी जाती है और हिन्दू देवनागरी में, लेकिन भाषा लिपि से नहीं बंटी, भाषा उनके वाक्य-विन्यास, व्याकरण और उच्चारण से अलग बनती है।










