सुशासन बाबु बोले कौन ज़िम्मेदार..? मुजफ्फरपुर में 11 साल की मासूम से रेप कर चाकुओ से गोदा, पटना में अस्पताल के बाहर 4 घंटे तक नहीं मिला था पीडिता को इलाज, इलाज के दरमियान हुई मौत

अनिल कुमार

पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सोशासन बाबु का तमगा मिला हुआ है। मगर इन तमगो के बीच अक्सर ही बिहार का सिस्टम चर्चा का केंद्र बना है। कभी गिरते पुल तो कभी प्रवासी मजदूरों के कारण बिहार अक्सर चर्चा का केंद्र रहा है। मगर इस बार एक ऐसी घटना चर्चा के केंद्र में है जो पुलिस के साथ ही स्वास्थय व्यवस्था पर भी बड़े गंभीर सवाल उठा रही है। मुजफ्फरपुर में बलात्कार पीडिता 11 वर्षीया बच्ची की आज दौरान-ए-इलाज मौत के बाद बिहार के स्वास्थय पर गंभीर सवाल उठ रहे है।

मुजफ्फरपुर की एक 11 वर्षीय मासूम बेटी, जिसके साथ 26 मई 2025 को हैवानियत की सारी हदें पार की गईं, रविवार, 1 जून 2025 को पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (पीएमसीएच) में अपनी आखिरी सांसें गिन रही थी। उस बच्ची के शरीर पर करीब 20 चाकू के घाव थे, उसका गला रेत दिया गया था, और उसकी आवाज हमेशा के लिए छीन ली गई थी। लेकिन सबसे दर्दनाक यह नहीं था कि एक दरिंदे ने उसकी जिंदगी छीनने की कोशिश की, बल्कि यह था कि बिहार के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल ने उसे चार घंटे तक एंबुलेंस में तड़पने के लिए छोड़ दिया। अगर समय पर इलाज मिला होता, शायद वह बेटी आज जीवित होती।

यह कहानी केवल एक बच्ची की नहीं, बल्कि उस सिस्टम की नाकामी की है, जो हर बार गरीब और लाचार लोगों को निराश करता है। मुजफ्फरपुर के कुढ़नी में उस मासूम के साथ बलात्कार हुआ, उसे चाकुओं से गोद दिया गया, और फिर उसे मरने के लिए एक ईंट-भट्ठे के पास छोड़ दिया गया। श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, मुजफ्फरपुर में पांच दिन तक उसका इलाज चला, लेकिन हालत बिगड़ने पर उसे शनिवार को पीएमसीएच रेफर किया गया। परिजनों ने उम्मीद की थी कि पटना में उनकी बेटी को बेहतर इलाज मिलेगा, लेकिन वहां जो हुआ, वह किसी के भी रोंगटे खड़े कर दे।

पीएमसीएच में बच्ची को दोपहर 1:23 बजे लाया गया, लेकिन बेड की अनुपलब्धता के चलते उसे चार घंटे से अधिक समय तक एंबुलेंस में ही इंतजार करना पड़ा। उसकी मां ने रोते हुए बताया, ‘मेरी बेटी एंबुलेंस में तड़प रही थी, चीख रही थी, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था। चार घंटे बाद, जब हंगामा हुआ, तब जाकर उसे भर्ती किया गया।’ रात भर डॉक्टरों ने उसे नींद की दवाएं दीं, लेकिन सुबह 8 बजे उसकी सांसें थम गईं। परिजनों का आरोप है कि अस्पताल ने 25,000 रुपये की मांग की, और खून के लिए भी पैसे देने पड़े।

परिजनों का कहना है कि कांग्रेस नेताओं, राजेश राम और राजेश राठौर, ने हस्तक्षेप किया, तब जाकर बच्ची को भर्ती किया गया। राजेश राम ने कहा, ‘हमने एम्स पटना में भर्ती की मांग की थी, जहां बेहतर सुविधाएं थीं, लेकिन उसे पीएमसीएच भेजा गया। वहां भी ढाई घंटे तक एंबुलेंस में इंतजार करवाया गया।’ कांग्रेस ने इसे नीतीश कुमार की सरकार और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे की नाकामी करार दिया। दूसरी ओर, पीएमसीएच के अधीक्षक डॉ0 अभिजीत सिंह और मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ0 इंद्रशेखर ठाकुर ने लापरवाही के आरोपों को खारिज किया, दावा करते हुए कि बच्ची को तुरंत आईसीयू में भर्ती किया गया था।

यह घटना बिहार के स्वास्थ्य सिस्टम पर करारा तमाचा है। पीएमसीएच, जिसे विश्वस्तरीय अस्पताल बनाने का दावा किया जा रहा है, एक मासूम को बेड तक नहीं दे सका। परिजनों का गुस्सा, उनकी बेबसी, और वह दर्द जो उस मां ने अपनी बेटी को खोते हुए महसूस किया, यह सब सिस्टम की संवेदनहीनता को उजागर करता है। यूट्यूबर और बीजेपी नेता मनीष कश्यप ने भी इस घटना पर आंसू बहाए और अस्पताल प्रशासन पर मारपीट का आरोप लगाया।

कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने कहा, किसी की भी जान जाती है तो वह दुखद बात है। बच्ची थी उसके साथ घोर अन्याय हुआ। कहने को तो सुशासन बाबू की सरकार है लेकिन यहां पर कुशासन ज्यादा चलता है। सरकार, प्रशासन, मंत्री, पुलिस और मुख्यमंत्री बच्ची की मदद नहीं करते हैं। तीन-चार दिन तक संघर्ष करती रही। उसका इलाज नहीं हुआ। लोगों को बच्ची के इलाज के लिए सड़क पर उतरना पड़ा। यहां तक की पीएमसीएच प्रशासन ने भी बच्ची का ख्याल नहीं रखा। बच्ची के साथ अन्याय और इलाज न होने के कारण दम तोड़ दिया। यह बिहार के लिए नहीं भारत के लिए भी सर झुकाने वाला काम हुआ है। हमें बहुत दुख है मैं बच्ची की आत्मा के लिए शांति चाहते हैं। उसको न्याय मिलना चाहिए यह मेरी मांग है।’

बेशक यह बच्ची मौतों का एक आकड़ा तक सीमित हो जाए, मगर एक उम्मीद और एक आसरे को धक्का है। पुरे सिस्टम में कहा कहा रिपेयर की ज़रूरत है उसके लिए सोचने से ज्यादा कुछ करने की ज़रूरत है। एक इंसान की मौत बेशक दुखद होती है। मगर इस सिस्टम के तहत वह मौत की नींद सो जाए तो पुरे समाज के लिए एक बड़ा सवाल पैदा होता है। स्वास्थय व्यवस्था पर उठाते सवाल का जवाब कौन देगा ? कौन इसकी ज़िम्मेदारी लेगा? क्या किसी की जवाबदेही तय होगी? या फिर मौत का सिर्फ एक आकड़ा बढ़ जायेगा?

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