तिहाड़ जेल के बाहर लाशें फेंकने वाला ‘सीरियल किलर’ चंद्रकांत झा: क्रूरता की वो कहानी, जो रूह कंपा दे

दिल्ली की तिहाड़ जेल के बाहर एक के बाद एक लाशें फेंककर पुलिस और पूरे देश को दहला देने वाला चंद्रकांत झा (Chandrakant Jha) एक ऐसा नाम है, जो भारत के सबसे खतरनाक सीरियल किलर्स की लिस्ट में शामिल है। बिहार के मधेपुरा का रहने वाला चंद्रकांत झा, जिसे 'द किलर' के नाम से भी जाना जाता है, अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात है।

By: तारिक आज़मी

PNN24 न्यूज़ क्राइम डेस्क: देश की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली तिहाड़ जेल की दीवारों के बाहर, 2000 के दशक की शुरुआत में एक ऐसा खौफ पसरा था जिसने दिल्ली पुलिस की नींद उड़ा दी थी। यह खौफ था एक ‘अदृश्य’ हत्यारे का, जो कत्ल करता था, लाशों के टुकड़े करता था, और उन्हें तिहाड़ जेल के गेट के पास सरेआम फेंक जाता था। उसका नाम था चंद्रकांत झा। यह कहानी सिर्फ हत्याओं की नहीं है, बल्कि एक ऐसे दिमाग की है जिसने पुलिस को चुनौती दी, समाज के कमजोर तबके को अपना शिकार बनाया, और अपनी क्रूरता को एक ‘खेल’ बना दिया था।

दिल्ली की तिहाड़ जेल के बाहर एक के बाद एक लाशें फेंककर पुलिस और पूरे देश को दहला देने वाला चंद्रकांत झा (Chandrakant Jha) एक ऐसा नाम है, जो भारत के सबसे खतरनाक सीरियल किलर्स की लिस्ट में शामिल है। बिहार के मधेपुरा का रहने वाला चंद्रकांत झा, जिसे ‘द किलर’ के नाम से भी जाना जाता है, अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात है।

गरीब और अकेले लोगों की तलाश

चंद्रकांत झा उत्तर प्रदेश के मधेपुरा का रहने वाला था, लेकिन दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ियों में रहता था। उसका शिकार करने का तरीका रूह कंपा देने वाला था:

  1. कमजोर शिकार: वह आमतौर पर ऐसे गरीब प्रवासी मजदूरों को निशाना बनाता था, जो अकेले थे, जिनका दिल्ली में कोई ठिकाना नहीं था, या जिनके बारे में कोई पूछने वाला नहीं था।
  2. दोस्ती और क्रूरता: वह पहले दोस्ती करता था, उन्हें खाना खिलाता था, शराब पिलाता था और अपने साथ रखता था। जब शिकार पूरी तरह उसके भरोसे में आ जाता था, तब वह छोटे-मोटे झगड़ों पर क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए उनका कत्ल कर देता था।
  3. टुकड़ों में लाशें: हत्या के बाद वह लाशों के टुकड़े करता था, उन्हें प्लास्टिक की थैलियों या बोरियों में भरता था।

पुलिस को खुली चुनौती

चंद्रकांत झा को सिर्फ कत्ल करने में मज़ा नहीं आता था, बल्कि उसे पुलिस को बेवकूफ बनाने और उन्हें चुनौती देने में भी आनंद मिलता था। उसकी क्रूरता का सबसे बड़ा सबूत यह था कि वह जानबूझकर लाशों को तिहाड़ जेल के गेट नंबर 3 के पास फेंकता था—वह जगह, जो दिल्ली की सबसे हाइ-सिक्योरिटी वाली जगहों में से एक है।

झा अपने शिकार को पहले नौकरी का लालच देकर अपने पास बुलाता था। वे अक्सर गरीब मज़दूर या छोटे-मोटे अपराध करने वाले लोग होते थे। हत्या करने से पहले वह उन्हें अपने साथ शराब और जुए में शामिल करता था। जब भी कोई झा की बात मानने से इनकार करता या उसके साथ बदतमीजी करता, तो वह उसकी बेरहमी से हत्या कर देता था। सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि हत्या के बाद वह पीड़ितों के अंग काटकर उन्हें एक बोरी में भरता और फिर खुलेआम तिहाड़ जेल के बाहर फेंककर पुलिस को चुनौती देता था। लाश के साथ एक नोट भी छोड़ता था, जिसमें पुलिस को ललकारा जाता था। उसने 2003 से 2007 के बीच कम से कम सात लोगों की हत्या की बात कबूल की थी, लेकिन पुलिस का मानना है कि पीड़ितों की संख्या बहुत ज़्यादा हो सकती है। कोर्ट ने उसे दो मामलों में मौत की सज़ा सुनाई थी, जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया।

इतना ही नहीं, पुलिस को भ्रमित करने के लिए वह अक्सर उन बोरियों में चिट्ठी भी छोड़ जाता था! इन चिट्ठियों में वह पुलिस को गाली देता था, उन्हें अपनी पहचान बताने और उन्हें पकड़ने की खुली चुनौती देता था। उसका संदेश साफ़ था: “तुम मुझे पकड़ नहीं सकते!”

‘सीरियल किलर’ की क्रूर मानसिकता

जाँच के दौरान पता चला कि झा का मकसद न पैसा था, न दुश्मनी। उसका मकसद केवल ‘अधिकार दिखाना’ और अपने शिकार पर ‘हावी होना’ था। पुलिस का मानना है कि उसने 2003 से 2007 के बीच कम से कम 7 लोगों को इसी तरह मारा। चंद्रकांत झा को अंततः 2007 में उसकी लापरवाही के कारण पकड़ा गया। वह बार-बार एक ही इलाके को निशाना बना रहा था, जिससे पुलिस उसके पैटर्न को समझने में कामयाब हुई।

उसकी कहानी पर आधारित इंडियन प्रिडेटर: द बुचर ऑफ दिल्ली” नामक एक डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ भी बन चुकी है।

न्याय की लंबी लड़ाई और सजा

चंद्रकांत झा के मामले ने देश को हिलाकर रख दिया था। निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चली लंबी कानूनी लड़ाई में उसकी क्रूरता साबित हुई।

  • 2013 में, उसे तीन मामलों में मौत की सज़ा सुनाई गई।
  • हालांकि, 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने उसकी मानसिक स्थिति और दुर्लभतम मामलों (Rarest of Rare) की श्रेणी पर विचार करते हुए मौत की सज़ा को उम्रकैद में बदल दिया। कोर्ट ने कहा कि वह अपनी बाकी बची ज़िंदगी जेल में ही बिताएगा।

चंद्रकांत झा आज भी तिहाड़ जेल में कैद है—उसी जेल के अंदर जिसकी दीवारों के बाहर कभी उसने आतंक मचाया था। यह कहानी एक कड़वी याद दिलाती है कि समाज में क्रूरता किस हद तक जा सकती है, और कैसे न्यायपालिका को सत्ता के दबाव से परे जाकर, पीड़ितों के लिए खड़े होना पड़ता है।

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