तेजस्वी का गंभीर आरोप: ‘बिहार में 10 हज़ार की रिश्वत बंट रही, चुनाव आयोग शांत…!’

आदिल अहमद
PNN24 न्यूज़, पटना (बिहार): बिहार विधानसभा चुनाव के प्रचार के बीच राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव ने एक बेहद गंभीर और सनसनीखेज आरोप लगाया है। उन्होंने सीधे तौर पर दावा किया है कि राज्य में सत्ताधारी दल के इशारे पर मतदाताओं के बीच प्रति वोट 10,000 रुपये तक की रिश्वत बांटी जा रही है, और इस अवैध गतिविधि पर चुनाव आयोग (Election Commission) पूरी तरह से शांत है। तेजस्वी के इस बयान ने बिहार की चुनावी राजनीति में भूचाल ला दिया है और एक बार फिर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या है तेजस्वी यादव का दावा?
तेजस्वी यादव ने अपनी चुनावी रैलियों और प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान यह आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ गठबंधन के लोग, ख़ास तौर पर कुछ संवेदनशील सीटों पर, वोट खरीदने की कोशिश कर रहे हैं।
- रिश्वत की राशि: उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि कहीं-कहीं मतदाताओं को 10,000 रुपये तक की बड़ी राशि दी जा रही है।
- आरोप की दिशा: उनका इशारा साफ था कि यह सब सत्ता के संरक्षण में हो रहा है, जिसका उद्देश्य महागठबंधन को मिलने वाले वोटों को प्रभावित करना है।
- चुनाव आयोग पर सवाल: सबसे बड़ा हमला उन्होंने चुनाव आयोग पर बोला। तेजस्वी ने कहा कि इतनी बड़ी रकम बांटे जाने की ख़बरें सार्वजनिक होने के बावजूद, आयोग कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा है? उन्होंने आयोग की निष्पक्षता और सक्रियता पर संदेह जताया।
आयोग की चुप्पी और लोकतंत्र की चिंता
भारतीय लोकतंत्र में चुनाव आयोग की भूमिका को स्वतंत्रता और निष्पक्षता का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में एक प्रमुख विपक्षी नेता द्वारा लगाए गए इतने बड़े आरोप को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
- निष्पक्ष चुनाव पर असर: यदि ये आरोप सही हैं, तो यह सीधे तौर पर मतदाता के अधिकार का उल्लंघन है और बिहार के चुनावी नतीजों की वैधता पर सवाल खड़ा करता है।
- महागठबंधन का रुख: आरजेडी और महागठबंधन लगातार यह दावा कर रहा है कि सत्ता पक्ष अपनी हार को देखते हुए अब ‘पैसा और बाहुबल’ का सहारा ले रहा है।
तेजस्वी यादव ने मतदाताओं से भी अपील की है कि वे किसी भी तरह के प्रलोभन में न आएं और अपने वोट की ताकत को समझें।
अगला कदम: क्या आयोग लेगा संज्ञान?
अब सबकी निगाहें चुनाव आयोग पर टिकी हैं। क्या आयोग तेजस्वी यादव के आरोपों को गंभीरता से लेगा और इस मामले की उच्च-स्तरीय जांच का आदेश देगा? या फिर इन आरोपों को महज़ चुनावी बयानबाजी मानकर ख़ारिज कर दिया जाएगा?
बिहार में चुनावी पारा अपने चरम पर है, और इस तरह के गंभीर आरोपों ने लोकतंत्र की विश्वसनीयता को एक बार फिर कटघरे में खड़ा कर दिया है।











