पंजाब – चुनावों में हार दर हार से भाजपा हुई बेचैन, करेगी बड़ा फैसला.

जावेद अंसारी.

पंजाब में भाजपा के पाँव ज़मींन से उखड़ते हुवे दिखाई दे रहे है. पहले विधानसभा में हार, फिर निकाय चुनावो में मुह के बल गिरी भाजपा को सँभलने का अवसर मिला उपचुनाव में मगर यहाँ भी भाजपा कुछ न कर सकी और जनता ने उसको एक बार फिर नकार दिया. इन हारो से भाजपा के अन्दर बड़ी बेचैनी पैदा कर दिया है और भाजपा जल्द ही संगठन में बड़े बदलाव करती दिखाई देगी. इस बदलाव की गाज भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के ऊपर भी गिरने की संभावना प्रतीत हो रही है.

पंजाब में भारतीय जनता पार्टी की चुनावों में लगातार हुई तीसरी हार के बाद संगठन में बदलाव की कवायद अंदरखाते शुरू हो चुकी है। संगठन में बदलाव को लेकर बीते एक साल से किए जा रहे कुछ भाजपा नेता सक्रिय हैं। चुनावों में लगातार हार से यह लगभग तय है कि हाईकमान पंजाब भाजपा के संगठन में बड़ा फेरबदल करेगा। इस क्रम मेंं प्रदेश अध्‍यक्ष विजय सांपला पर भी गाज गिर सकती है। यही वजह है कि निकाय चुनाव में हार के कारणों को लेकर भाजपा की अभी तक विस्तृत रिपोर्ट तैयार नहीं हो पाई है।

भाजपा के प्रदेश प्रधान विजय सांपला के नेतृत्व में पंजाब में पार्टी की निकाय चुनाव में हार लगातार तीसरी हार है। इससे पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा के केवल तीन विधायक जीते थे। इसके बाद भाजपा का लगातार कई चुनाव से गुरदासपुर लोकसभा की सीट पर चला आ रहा कब्जा भी खत्म हो गया और उपचुनाव में कांग्रेस जीत गई। फिल्म अभिनेता विनोद खन्ना लगातार इस सीट को भाजपा की झोली में डालते आ रहे थे, लेकिन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ एक लाख से ज्यादा मतों से जीत हासिल करके इस सीट से भाजपा का कब्जा खत्म कर दिया। यह सांपला की प्रधानगी में भाजपा की दूसरी हार थी।

इसके बाद उम्मीद की जा रही थी कि भाजपा नगर निगमों के चुनाव में जरूर कांग्रेस के साथ दो-दो हाथ करेगी, लेकिन उम्मीद के विपरीत निकाय चुनाव में भी भाजपा को करारी हार देखने को मिली। वह भी तब जब भाजपा ने जालंधर व अमृतसर में बीते दस सालों से अपना कब्जा रखा था और मेयर भी भाजपा के ही थे। जाहिर है कि इस हार के बाद मेयरों की कार्यप्रणाली पर भी उंगली उठना तय है, लेकिन वह फिलहाल किसी पद पर नहीं हैं और रेस से बाहर हैं। इसलिए भाजपा की लगातार चुनावों में हुई तीसरी हार का ठीकरा सांपला के सिर भी उनके विरोधी फोड़ सकते हैं। हालांकि पार्टी स्तर पर भी बीते एक साल से संगठन में बदलाव की बात हो रही है, लेकिन किन्हीं कारणों के चलते बदलाव को टाल दिया जाता रहा है। इस बार आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी हाईकमान द्वारा कोई बड़ा फैसला लिया जा सकता है।

निकाय चुनाव में भाजपा की तरफ से पूर्व प्रधानों सहित 12 से ज्यादा वरिष्ठ नेताओं की ड्यूटियां लगाई गई थीं। इसके बाद भी कई ऐसे नेता रहे जिन्होंने निकाय चुनाव में विभिन्न प्रकार के बहाने बनाकर चुनावी ड्यूटी से किनारा कर लिया था। इस बारे में भी भाजपा की तरफ से विस्तार से रिपोर्ट तैयार करके पार्टी हाई कमान को भेजने की तैयारी की जा रही है। नेताओं की ड्यूटियां करीब एक महीने पहले ही लगाकर उन्हें सूचित भी कर दिया गया था कि वह अपने-अपने जिलों में जरूर मौजूद रहें।

निकाय चुनाव में भाजपा की तरफ से इस बार जालंधर में पुराने छह पार्षदों को ही टिकट दी गई थी, बाकी 45 नए चेहरे मैदान में उतारे गए थे। इसी प्रकार अमृतसर में पुराने चेहरों के साथ नए चेहरों को भी 60 व 40 के अनुपात में टिकटें दी गई थीं, लेकिन उसका भी लाभ नहीं मिला। वहीं पटियाला में 16 पुराने पार्षदों में तीन को मैदान में उतारा था, लेकिन वहां भी भाजपा का यह प्रयोग सफल नहीं रहा। भाजपा ने दिल्ली निकाय चुनाव में भी यही प्रयोग किया था वहां पर यह प्रयोग सफल रहा था। उसी मॉडल को पंजाब में भी निकाय चुनाव में लागू किया गया था। पुराने चेहरों को बदलने के फैसले से ज्यादातर वार्डों में जिनके टिकट कटे वहां पर अंदरखाते विरोध के चलते भी भाजपा को कई वार्डों में हार का सामना करना पड़ा।

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