आज गांधी बहुत याद आते है. याद आता है उनका आखरी अनशन

गॉंधी को जितना पढ़ा जाये, उनके विचार आपको उतना ही अपनी तरफ खींचते हैं। गॉंधी को मैं हमेशा से ही एक आदर्श के रूप में देखता हूँ। उनके बारे में गहन अध्ययन करके गॉंधी मुझे आज भी उतने ही प्रिय हैं जितने प्रिय तब थे जब बचपन में पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को स्कूलों में किसी के भाषण में उनका ज़िक्र सुनते थे। गॉंधी अहिंसा के पुजारी थे। उन्होंने कभी यहूदियों पर हो रहे ज़ुल्म पर बोला तो फिर फिलिस्तीन के साथ हो रहे ज़ुल्म और इज़राइल के खिलाफ भी बोला।

दरअसल गॉंधी ने जिस स्वराज की कामना की थी, यह समाज और देश उससे कोसों दूर है। आज़ादी के बाद जब देश में दंगे हो रहे थे तो दिल्ली की गलियॉं मुसलमानों के लिये सुरक्षित नहीं थी। तब गॉंधी ने अपने जीवन का आख़िरी अनशन किया। उस बूढ़े कमज़ोर शरीर वाले ने मज़बूत इच्छा के साथ आख़िरी अनशन किया देश में शांति के लिये, ख़ास तौर से मुसलमानों के लिये। अनशन था कि दिल्ली की गलियों में अँधेरे में भी मुसलमान सुरक्षित रहें और बावक़ार रहें। उनकी मस्जिदों को फिर से खोला जाये।

13 जनवरी को गॉंधी का अनशन शुरू होता है। गॉंधी ने कहा कि “मैं अपना अनशन तभी तोड़ूंगा जब दिल्ली में अमन कायम होगा। जब दिल्ली में अमन कायम होगा तो इसका असर सिर्फ हिंदुस्तान ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान पर भी होगा और जब ऐसा होगा तब एक मुसलमान दिल्ली में सुरक्षित चल पायेगा। तभी मैं अपना अनशन तोड़ूंगा। आज मैं सोहरावर्दी को यहॉं नहीं ले आ सकता क्योंकि मुझे डर है कि कोई उसे बेइज़्ज़त कर देगा। आज वो दिल्ली की गलियों में नहीं चल सकता। वो ऐसा करता है तो उसपर हमला हो जायेगा।……..। अत: मेरी इच्छा है कि हिंदू, सिख, पारसी, इसाई और मुसलमान जो हिंदुस्तान में हैं, वो यहीं रहें और हिंदुस्तान को ऐसा देश होना चाहिये जहॉं सबकी जान और माल सुरक्षित हो, सिर्फ तभी देश तरक्की करेगा।”

गॉंधी का अनशन 18 जनवरी को ख़त्म होता है। उससे पहले हिंदू महासभा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जमीयत-उल-उलेमा के साथ कई अन्य संगठनों के सैकड़ों प्रतिनिधी राजेंद्र प्रसाद के घर इकट्ठा हुए। उसमें ख़ास तौर से जवाहरलाल नेहरू, अबुल कलाम आज़ाद, राजेंद्र प्रसाद, भारतीय सेना के जनरल शाहनवाज़ ख़ान, हिफ्ज़ुर्रहमान और पाकिस्तानी उच्चायुक्त ज़ाहिद हुसैन वगैरह शामिल थे। देशबंधु गुप्ता हिंदू मुस्लिम भाईचारे की एक याद साझा करते हुए बताते हैं कि दिल्ली के सब्ज़ीमंडी में पनाह लिये मुसलमानों को सुबह के वक्त बाहर निकाला गया और हिंदू भाईयों ने पूरे सम्मान के साथ उनका स्वागत किया, उन्हें फल और नाश्ता दिया।

18 जनवरी को हिंदी में सात सुत्रीय दिल्ली घोषणापत्र (Seven-Points Delhi Declaration) पढ़ा गया। जिसमें कहा गया कि हिंदू मुसलमान सिख और अन्य प्यार से एक दूसरे के साथ रहेंगे। मुसलमानों की जान माल की सुरक्षा करने का वचन दिया गया। मुसलमानों के लिये मस्जिदें खोल दी जायेंगी। ख़्वाजा कुतुबुद्दीन की मज़ार पर इस साल भी सालाना उर्स होगा। पहले की तरह मुसलमान अब सब्ज़ीमंडी, करोलबाग़, पहाड़गंज और अन्य जगहों पर जा सकेंगे। मस्जिदें जो हिंदुओं और सिखों के कब्ज़े में हैं, खाली करायी जायेंगी। जो मुसलमान दिल्ली वापस आना चाहे वो आ सकेगा और व्यापार भी कर सकेगा। वचन दिया गया कि ये सब चीज़ें निजी तौर पर और पुलिस व सेना की मदद से भी की जायेंगी।

घोषणा पत्र का आखिरी बिंदू था कि हम महात्मा जी से प्रार्थना करते हैं कि वो अनशन का त्याग करके हमारा मार्गदर्शन सुनिश्चित करें। गॉंधी लोगों से मुख़ातिब हुये और कहा कि इस घोषणा पत्र में जो कहा गया वो अर्थहीन है, इसमें सिर्फ दिल्ली का ज़िक्र किया गया, क्या हो कि दिल्ली से बाहर स्थिति भयावह हो। गॉंधी ने सबके साथ मिल जुल कर रहने को कहा, सबसे वचन लिया। गॉंधी चूँकि सबके प्रिय थे, पाकिस्तानी उच्चायुक्त ने गॉंधी जी से मुलाकात करके कहा कि पाकिस्तान के लोग हर रोज़ उनके बारे में उनकी सेहत के बारे में पूछते रहते हैं। पाकिस्तान के लोगों की यह दिली इच्छा है कि गॉंधी अपना अनशन तोड़ दें। अगर वो कुछ कर सकते हैं तो वो सब तैयार हैं।

अबुल कलाम आज़ाद और मौलाना हिफ्ज़ुर्रहमान ने कहा कि यहॉं का मुसलमान यहीं हिंदुस्तान में पूरी इज़्ज़त के साथ रहना चाहता है। संघ व हिंदू महासभा की तरफ से गणेश दत्त ने गॉंधी से अपील की। सरदार हरबंस सिंह ने सिख समुदाय की तरफ से अपील की। सबने सांप्रदायिक सौहार्द को बनाये रखने का वचन दिया। जब राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि “मैंने सभी लोगों की तरफ से दस्तख़त कर दिया है, अब आप कृपा करके अपना अनशन त्याग दीजिये।” गॉंधी ने कहा कि “मैं अनशन तोड़ता हूँ। ईश्वर की जो इच्छा है वही होगा। आज तुम सब गवाह रहो।” बारह दिनों बाद नाथुराम गोडसे ने गोली मार कर बापू की हत्या कर दी। गॉंधी हमेशा हमारे विचारों में रहेंगे। इस देश की तरक्की सिर्फ गॉंधी के दिखाये रास्ते पर चल कर ही होगी। आज गॉंधी बहुत याद आते हैं!

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