फ़िलिस्तीनियों के प्रतिरोध ने ली नई अंगड़ाई, पश्चिमी तट और ग़ज़्ज़ा के इलाक़े में निर्णायक घटनाएं

आफताब फारुकी

हालिया कुछ ही दिनों के भीतर गज़्ज़ा पट्टी और पश्चिमी तट के इलाक़े में फ़िलिस्तीनियों की ओर से प्रतिरोध की जो कार्यवाहियां हुईं उनसे साबित हो गया कि इस्राईल के ग़ैर क़ानूनी क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ फ़िलिस्तीनियों का प्रतिरोध पूरी शक्ति के साथ मौजूद है और क्षेत्र की शांति व सुरक्षा में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण है।

इस प्रतिरोध ने साबित कर दिया कि फ़िलिस्तीन की जनता इस्राईल को अरबों और मुसलमानों के लिए सबसे बड़ा ख़तरा समझती है क्योंकि फ़िलिस्तीनी इलाक़ों में ज़ायोनी शासन की ओर से ग़ैर क़ानूनी बस्तियों के निर्माण का सिलसिला जारी है। यहां यह संदेश भी दिया गया कि वार्सा में अरब सरकारों के साथ इस्राईल की बैठक निरर्थक है।

पश्चिमी तट और ग़ज़्ज़ा के इलाक़े में दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुई हैं। पहली घटना पश्चमी तट के नाबलुस शहर के दक्षिण पश्चिम में हुई जिसमें दो फ़िलिस्तीनी युवाओं ने हमला करके दो इस्रईली सैनिकों को ढेर कर दिया और चार ज़ायोनियों को बुरी तरह घायल कर दिया जिनमें दो की हालत बहुत नाज़ुक है। दूसरी घटना गुरुवार को हुई जब ग़ज़्ज़ा पट्टी के इलाक़े से दो मिसाइल फ़ायर किए गए जिन्होंने इस्राईल के आयरन डोम नामक मिसाइल डिफ़ेन्स सिस्टम को धता बताया और तेल अबीब तक जा पहुंचे। यह मिसाइल तेल अबीब के क़रीब गूश दान नामक स्ट्रैटेजिक इलाक़े में गिरे।

रोचक बात तो यह है कि यह दोनों मिसाइल फ़ायर करने वाले संगठन के बारे में अब भी कुछ पता नहीं चला है। किसी भी फ़िलिस्तीनी संगठन ने इस हमले की ज़िम्मेदारी स्वीकार नहीं की है। अलबत्ता हमास संगठन ने यह हमला अंजाम देने वालों की बहादुरी की प्रशंसा की और कहा कि यह इस्लामी पवित्र स्थलों विशेष रूप से मुस्जिदुल अक़सा पर इस्राईलियों के हवाले पर की जाने वाली जवाबी कार्यवाही है। हमास ने कहा है कि प्रतिरोध ही इस्राईल के मामले में सबसे प्रभावी और परिणामदायक विकल्प है।

यह बात भी ध्यान योग्य है कि फ़िलिस्तीन मुद्दे को सुर्खियों में पहुंचा देने वाली घटनाएं इस्राईल में आम चुनावों से तीन सप्ताह पहले हुई हैं। जबकि इसी बीच यह सूचनाएं भी हैं कि लेबनान के हिज़्बुल्लाह आंदोलन के प्रमुख सैयद हसनईल में आम चुनावों से तीन सप्ताह पहले हुई हैं। जबकि इसी बीच यह सूचनाएं भी हैं कि लेबनान के हिज नसरुल्लाह की निगरानी में हमास संगठन सीरिया के क़रीब हो रहा है। इसका मतलब यह है कि हमास संगठन औपचारिक रूप से उस इस्लामी प्रतिरोध मोर्चे का हिस्सा बन रहा है जो लेबनान से ईरान तक फैला हुआ है।

सालेह आरूरी को हमास के पोलित ब्योरो का उपाध्यक्ष और विदेशी संबंधों का ज़िम्मेदार इसीलिए बनाया गया था कि वह सीरिया और हमास के बीच संबंधों को मज़बूत कर सकें क्योंकि वह ईरान तथा जनरल क़ासिम सुलैमानी के क़रीबी माने जाते हैं। इसका उद्देश्य यही है कि अवैध अधिकृत इलाक़े में इस्राईल के खिलाफ़ प्रतिरोध नए चरण में पहुंच गया है। नाबलुस की क़रीब जो घटना हुई है वह इसी रणनीति का हिस्सा है और भविष्य में और भी बड़ी घटनाएं होने वाली हैं।

यहां यह याद दिला देना उचित होगा कि सालेह आरूरी वह व्यक्ति हैं कि जिन्होंने फ़िलिस्तीनी युवा मुहम्मद अबू ख़ुज़ैर को ज़िंदा जला देने वाले तीन इस्राईलियों का अपहरण करके उन्हें मौत के घाट उतार दिया था जिसके बाद वर्ष 2014 का ग़ज़्ज़ा युद्ध हुआ था और इस युद्ध में ज़ायोनी शासन को पराजय का मुंह देखना पड़ा था। आरूरी पश्चिमी तट के इलाक़े के सामरिक मामलों के ज़िम्मेदार बनाए गए हैं क्योंकि इस इलाक़े में लोगों के बीच उनकी पैठ है और वह स्थानीय लोगों को संगठित करने और उन्हें हथियार सप्लाई करने में व्यस्त हैं। ईरान और हिज़्बुल्लाह से उनके गहरे संबंध हैं और वह थोड़े थोड़े अंतराल से तेहरान के दौरे करते रहते हैं।

इस्राईली प्रधानमंत्री नेतनयाहू इन दिनों बहुत भय में अपना समय गुज़ार रहे हैं। यही कारण है कि ग़ज़्ज़ा में फ़िलिस्तीनी संगठनों से इस्राईल का युद्ध शुरू हुआ तो वह तत्काल मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फ़त्ताह अस्सीसी के पास पहुंच गए और उन पर जोर डालकर 48 घंटे के भीतर संघर्ष विराम कर लिया। क्योंकि इस्राईली ख़ुफ़िया एजेंसियों को यह डर था कि हमास संगठन ने भारी संख्या में अपने मिसाइल ज़मीन के भीतर दफ़्न कर चुके है अतः राडार से उनका पता नहीं लगाया जा सकता है जबकि यह बहुत सटीक रूप से अपने निशाने को ध्वस्त करने वाले मिसाइल हैं।

नेतनयाहू ने फ़िलिस्तीनियों को समझने में ग़लती की उन्होंने गज़्ज़ा पट्टी की घेराबंदी यह सोचकर की थी कि फ़िलिस्तीनी संगठन प्रतिरोध छोड़कर इस्राईल के सामने झुकने पर मजबूर हो जाएंगे हालांकि ज़ायोनी प्रधानमंत्री की यह सोच पूरी तरह ग़लत थी और इसका एहसास नेतनयाहू को हो गया इसी लिए इस बार ग़ज़्ज़ा पट्टी से  दो मिसाइल फ़ायर होने के जवाब में इस्राईल की सेना ने ग़ज़्ज़ा पट्टी में ख़ली जगहों पर हमले किए जिनमें कोई जानी नुक़सान नहीं हुआ बल्कि केवल चार लोग घायल हुए थे। नेतनयाहू को डर था कि यदि फ़िलिस्तीनी संगठनों ने जवाबी हमला शुरू कर दिया तो इस्राईल में कोई भी जगह सुरक्षित नहीं रहेगी।

फ़िलिस्तीन का मुद्दा कैम्प डेविड और ओस्लो समझौतों को दरकिनार करते हुए पूरी ताक़त से उभर रहा है।
साभार रायुल यौम

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