वाराणसी में पत्रकार दयानंद तिवारी की अवैध हिरासत प्रकरण पर तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – गायघाट चौकी इंचार्ज को है गुरुर, सर पर है बड़े अधिकारियो का हाथ, किसी की नहीं है कोई औकात

तारिक आज़मी

वाराणसी। शहर का कोतवाली थाना क्षेत्र हमेशा चर्चाओं का केंद्र रहा है। विगत एक दशक के लगभग जब इस थाना क्षेत्र का अपराध नियंत्रित हो गया तो चर्चाओं का केंद्र बिंदु कोतवाली से हटता हुआ दिखाई देने लगा। वर्त्तमान में एक बार फिर से कोतवाली चर्चाओं का केंद्र अपने पुलिस कर्मियों के व्यवहार से बना हुआ है।

क्या है मामला

ताज़ा मामला गायघाट चौकी क्षेत्र से जुड़ा हुआ है जहा चौकी इंचार्ज ने बीती देर रात एक पत्रकार दयानंद तिवारी को अवैध हिरासत में ले लिया। हिरासत भी लगभग एक से डेढ़ घंटे की थी। हिरासत का सबब किसी को नहीं पता क्योकि बताया जाता है कि न खाता न बही, जो दरोगा जी कहेगे वही है सही। प्रकरण में पत्रकार दयानंद तिवारी ने आरोप लगाते हुवे बताया कि बीती रात वह अपने कार्यो को समाप्त कर मध्य रात्रि लगभग 12 बजे के करीब घर को जा रहे थे कि तभी उनकी नज़र गायघाट चौकी के ठीक बाहर खड़े एक युवक पर पड़ी जो आने जाने वाले माल वाहनों से अवैध वसूली कर रहा था। पत्रकारिता धर्म को निभाते हुवे उसने अपने मोबाइल से वीडियो बनाने की जैसे ही कोशिश शुरू किया तब तक चौकी इंचार्ज गायघाट सहित तीन सिपाही उसपर हमलावर होते हुवे उसका मोबाइल छीन लिया। साथ साथ हाथपाई करते हुवे माँ बहन की भद्दी भद्दी गालिया देते हुवे उसको अवैध हिरासत में ले लिया।

पत्रकार के आरोप को आधार माने तो अवैध हिरासत में एक घंटे से अधिक समय तक उसको ज़मीन पर नीचे बैठा कर उसके साथ गाली गलौंज और अभद्रता किया गया। चौकी इंचार्ज ने कई बार उससे कहा कि उनके सर पर बड़े अधिकारियो का हाथ है। नोयडा में रहा हु और किसी की उनके सामने कोई औकात नही है। आज तक मैं पुलिस लाइन में एक दिन नहीं रुका हु। इसके बाद समस्त औपचारिकता होने के बावजूद भी पत्रकार के वाहन का एक हज़ार का अवैध रूप से चालान काट दिया गया।

पत्रकारों ने किया क्षेत्राधिकारी से शिकायत, मिला निष्पक्ष कार्यवाही का आश्वासन

प्रकरण की जानकारी जब पत्रकारों को मिली तो पत्रकारों में रोष व्याप्त हो गया। कई पत्रकारों ने स्थानीय चौकी इंचार्ज से बात करने का प्रयास किया मगर दरोगा जी अपनी शान का बखान करते हुवे बात करने को भी तैयार नही हुवे। मामले में आक्रोशित पत्रकारों ने क्षेत्राधिकारी कोतवाली से मुलाकात किया और प्रकरण से उन्हें अवगत करवाया। क्षेत्राधिकारी ने प्रकरण का संज्ञान लेते हुवे मामले में मिली लिखित शिकायत के आधार पर निष्पक्ष जाँच का आश्वासन पत्रकारों को दिया है। क्षेत्राधिकारी से मुलाकात करने वाले पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल में मुख्यरूप से आदित्य गुप्ता, अंकुर मिश्रा, शिवेश त्रिवेदी, नारायण प्रजापति, ताबिश अली, किशन वर्मा, सुरेश कुमार, सुनील कुमार इत्यादि पत्रकर उपस्थित थे।

चर्चाओं का केंद्र रहते है दरोगा जी

गायघाट चौकी इंचार्ज जोइनिंग के बाद से चर्चाओं का मुख्य केंद्र रहते है। दरोगा जी से मुलाकात करने वालो से वह अपनी बड़े अधिकारियो से अपनी पैठ और खुद को तेज़ तर्रार दरोगा सिंघम स्टाइल होने की चर्चा ज़रूर करते है। उनसे दस मिनट बात करने पर ही आपको उनके अन्दर का गुरुर साफ़ झलक जायेगा। उनकी बातो में नोयडा की चर्चा अवश्य रहती है।

एक बार गलती से दरोगा जी से हमारी भी मुलाक़ात हो चुकी है। वैसे तो थाने चौकी से कोई सरोकार रखता नही हु, मगर दुर्गापूजा के त्यौहार के दरमियान एक छोटी सी मुलकात मेरी भी दरोगा जी से हो गई। दरोगा जी से लगभग पंद्रह मिनट की बातचीत में उनके अन्दर का गुरुर साफ़ झलक रहा था। दरोगा जी ने पंद्रह मिनट की इस मुलाकात में कई बार नोयडा और बड़े अधिकारियो से संपर्क के साथ खुद को तेज़ तर्रार होने का दावा अपने मुह से कर डाला। उनके लफ्ज़ उनकी घमंड को झलका रहे थे की कि वह हमेशा ही किसी बड़ी ज़िम्मेदारी के पोस्ट पर रहे है। अपने शब्दों में दरोगा जी बहुत तेज़ तर्रार होने दावा भी कर रहे थे।

दरोगा जी जितना सख्त पत्रकार पर थे उसका आधा भी क्यों नही घाटो पर होते है ?

पत्रकार दयानंद तिवारी के आरोपों को आधार माने तो दरोगा जी ने उसके साथ काफी अभद्रता किया था। एक घंटे से अधिक अवैध हिरासत में रखा था। इस बात पर हमारे भी दिमाग में एक बात आई। क्या दरोगा जी की नज़र उनके क्षेत्र में पड़ने वाले गंगा घाटो पर कभी नहीं पड़ी ? जहा शाम होते ही अक्सर अपराधी किस्म के युवक ताज़ी हवा खाने और गांजे की चिलम फूकते घाटो पर दिखाई दे जायेगे। घाटो के कूड़े के डिब्बो पर आप ध्यान दे तो कई शराब की बोतले भी दिखाई दे जायेगी। फिर आखिर दरोगा जी की तेज़ निगाहों से ये अपराध कैसे बच जाता है।

वैसे अपराध पर याद आया, चौकी के ठीक पीछे मछोदरी पार्क कभी आस पास के सभ्य नागरिको के टहलने की जगह हुवा करती थी। अब बात थोडा अलग है और इस पार्क में सभ्य नागरिक जाने से परहेज़ ही करने लगे है। सुबह थोडा बहुत लोग चहलकदमी करने चले भी जाते है मगर दोपहर और रात को जाने से पूरी तरह परहेज़ करने लगे है। खुद मैं भी आस पास के क्षेत्र का ही मूलनिवासी हु। मुझको पार्क में गए हुवे अरसा गुज़र गया है। कारण सिर्फ एक है कि वहा बैठ कर जुआ खेलते जुआरी और चिलम फूकते हुवे गंजेड़ी। दरोगा जी थोडा उधर भी ध्यान दे देते।

दरोगा जी हमारी भी सुने हुजुर  

वैसे दरोगा जी वास्तव में आप तेज़ तर्रार होंगे। मगर सरकार बहादुर एक बात कहनी थी। पत्रकार तो निरीह प्राणी है मालिक। आपको सभी शब्द ससम्मान इस कारण कह रहा हु कि पता नहीं कब आप किसी फर्जी केस में मेरा नाम घुसेड डाले। पिछली आपकी मुलाकात के अनुसार आपके पास ऐसी सुविधाए तो आपकी अलमारी में ही रखी रहती है। तो साहब आपसे डरना तो बनता ही है न। साहब कह रहा था कि पत्रकार तो निरीह प्राणी है। दिन भर भागदौड़ करके किसी तरह अपना परिवार चलाता है। आप इतने बड़े दरोगा है। काहे साहब निरीह प्राणी को परेशान करते है।

आप बड़े है साहब तनिक ध्यानाकर्षण अपने क्षेत्र में करे प्रभु, काफी कुछ दिखाई दे जायेगा। आपके चौकी क्षेत्र का एक इलाका मछोदरी पुलिस चौकी के ठीक सामने पड़ता है। रोज़ रात में हडकंप होता है आप तो झाकने नहीं जाते है साहब, वो तो बेचारे भला हो मछोदरी चौकी इंचार्ज राजकुमार का कि वह उस इलाके को रोज़ ही नियंत्रित करते है। कल रात को ही हडकंप हो रहा था। मछोदरी चौकी इंचार्ज ने माहोल शांत करवाया। आप अथवा आपके सिपाही नही दिखाई दिए। हाँ आपके सिपाही और आपकी फैंटम जुगाड़ डॉट काम के तहत आदमपुर क्षेत्र तक का दौरा कर डालती है।

मुझको मालूम है साहब आप काफी गुस्से वाले है। आपको गुस्सा आ जायेगा तो कुछ भी हो सकता है। कूड़े खाने के सामने और आसपास आपका क्षेत्र पड़ता है साहब, 24×7 के तर्ज पर अवैध ट्रक पार्क रहती है। देर रात आपकी चौकी के सामने वाला ट्रांसपोर्टर सड़क पर ही माल रखकर पूरा रास्ता रोक कर ट्रक लोड करवाता है। आपकी आँखों के ठीक सामने मगर आप उसको तो आज तक कुछ नही बोल पाए। थोडा वो मजबूत है न साहब, मगर आप पत्रकार जैसे निरीह प्राणी को एक घंटे अवैध हिरासत में रख लेते है। अगर पत्रकार गलत था तो उसका चालान क्यों नही काटा। अब आप कह रहे है पत्रकार भी दारु के नशे में था तो उसका मेडिकल क्यों नही करवा दिया साहब। नियम तो आपके ऊपर भी वही लागू होता है। आपको नियमानुसार तत्काल उस पत्रकार का मेडिकल करवा कर उसको बुक कर देंना चाहिए था। मगर अपने तो एक घंटे बाद ही रायता बढ़ता देख कर उसको छोड़ दिया।

साहब, बनारस ने कबीर दिया है। उनका दोहा आपके नोयडा में भी सुना जाता है। आप भी पढ़े होंगे, आप जिस बड़े अधिकारी का खुद को करीबी बताते है वह भी सुने होंगे कि “दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय।”

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