शार्प शूटर, शानदार एथलीट, दमदार इस्पेक्टर था वो, दस साल पहले हुआ था लापता, अब मिला कूड़े के ढेर में खाना तलाशते

तारिक आज़मी

ग्वालियर: नाम मनीष मिश्रा, शार्प शूटर, निशाना ऐसा तगड़ा कि उड़ते परिंदे को भी अपनी जद में ले ले। शानदार एथलीट, पिता और चाचा रिटायर्ड एडिशनल एसपी, भाई इस्पेक्टर, खुद भी इस्पेक्टर के पोस्ट पर पोस्टेड रहे। वो शख्स क्या किसी कूड़े के ढेर से खाना तलाश कर खा सकता है। शायद इसी को ज़िन्दगी का सबसे कड़वा पहलू कहा जा सकता है। जेहनी तवज्ज़ुंन कुछ इस तरह बिगड़ा कि पिछले लगभग दस सालो से वह लापता हो गए। कितनी अजीब शब रही वो जब एक इतना कद्दावर शख्सियत का मालिक एक कूड़े के ढेर से खाने की तलाश करके खुद के पेट की आग बुझाने की कोशिश करते हुवे दिखाई दिया होगा।

आपको लग रहा होगा कि ये एक फ़िल्मी सीन है। नहीं साहब एक एक हकीकत है। ग्वालियर में।10 नवंबर चुनाव की मतगणना की रात लगभग 1:30 बजे, सुरक्षा व्यवस्था में तैनात दो डीएसपी सड़क किनारे ठंड से ठिठुर रहे भिखारी को देखते हैं। जो कूड़े के ढेर से खाने की तलाश करके खा रहा था। अधिकारियो को उसपर दया आती है। वह अपनी गाडियों से उतरते है। एक अधिकारी जूते और दूसरा अपनी जैकेट उस शख्स को दे देता है। उस इंसान की दाढ़ी और बाल बेतरतीब बढे हुवे थे। जिसको देख कर लगता था कि अरसे से वह नहाया नही होगा। आसपास गन्दगी का माहोल रहता है।

दोनों अधिकारी उसकी इतनी मदद करके जाने लगते है। लेकिन बेहद बुरे हाल में भिखारी उनमे से एक डीएसपी को नाम से पुकाराता है तो दोनों सकते में आ जाते है। दोनों ने ही उससे पूछा कि वह कैसे उनका नाम जनता है। इस दरमियान दोनों अधिकारयो ने जब गौर से भिखारी को पहचाना तो वो शख्स था उनके साथ के बैच का सब इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा।

रत्नेश सिंह तोमर और विजय भदौरिया की आँखे यकीन नही कर रही थी। मनीष मिश्रा ने विजय भदौरिया को नाम से पुकारा था। इसके बाद दोनों अधिकारी मनीष मिश्रा से काफी देर तक बात करते है। 1999 बैच में विजय भदौरिया और मनीष मिश्रा दोनों ने ही सब इस्पेक्टर के तौर पर नौकरी पाई थी। इसके बाद मनीष मिश्रा लगातार अपने कार्यो से अधिकारियो के चाहिते बने रहते है। अपराध और अपराधियों के खिलाफ उनकी मुहीम लगातार जारी रहती है।

2005 के आसपास वो दतिया जिले में पदस्थ रहे इसके बाद मानसिक संतुलन खो बैठे शुरुआत में 5 साल तक घर पर रहे इसके बाद घर में नहीं रुके यहां तक कि इलाज के लिए जिन सेंटर व आश्रम में भर्ती कराया वहां से भी भाग गए। परिवार को भी नहीं पता था कि वे कहां हैं। आज जब दस साल बाद वह इस्पेक्टर मिला भी तो ऐसी दयनीय स्थिति कि पत्थर की भी आँखे नम हो जाए।

बहरहाल, मनीष मिश्रा को एक स्वयं सेवी संस्था के हवाले कर दिया गया है। जहह उनका इलाज चलेगा। वही दस साल बाद मिले मनीष मिश्रा के परिजनों में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी है।

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