दहशतगर्द आरिफ उर्फ़ अशरफ की सजा-ए-मौत पर पुनर्विचार याचिका किया सुप्रीम कोर्ट ने खारिज, जाने लाल किला आतंकी हमले और आरिफ उर्फ़ अशरफ के बारे में

मो0 चाँद “बाबु”

डेस्क: वर्ष 2000 में लाल किले पर हमले मामले में अदालत में तमाम सबूतों और गवाहों के मद्देनज़र लश्कर-ए-तैयबा का दहशतगर्द मोहम्मद आरिफ उर्फ़ अशफाक गुनाहगार पाया गया था और अदालत ने ऐसे गुनाह के लिए उसको सजा-ए-मौत मुक़र्रर किया था। इस सजा के एलान के बाद आरिफ उर्फ़ अशफाक ने सुप्रीम कोर्ट में सज़ा माफ़ी के लिए पुनर्विचार याचिका दाखिल किया था जिसे आज अदालत ने खारिज कर दिया है।

क्या हुआ था उस दिन लाल किले पर

22 दिसंबर 2000 की रात को 9 बजकर 5 मिनट पर लाल किले के अंदर घुसे लश्कर और जैश के आतंकवादियों के पास एके-56 जैसे घातक हथियार थे। उन सबके बदन पर मौजूद ‘मिलिट्री-जैकेट्स’ में हथगोलों का जखीरा, धारदार छुरे मौजूद थे। उन खूंखारों के सामने सैकड़ों हिंदुस्तानी और विदेशी निहत्थे और बेबस लोगों की भीड़ मौजूद थी। इन तमाम सहूलियतों के बावजूद वे सब सिर्फ 3 फौजियों को ही ढेर करके भाग गए।

भीड़ में मौजूद लश्कर कमांडर मोहम्मद अशफाक और अबू हैदर भी भीड़ के साथ ही लाल किले से बाहर चले गये। जबकि लाल किले में रुके उनके बाकी साथियों (अबू शामल और अबू साद) ने लाल किले के अंदर मौजूद राजपूताना राइफल्स की 7वीं बटालियन का रुख किया’। इस दौरान उन्होंने सबसे पहले सामने आए अब्दुल्ला ठाकुर को गोलियों से भून डाला, वो निहत्था सिविल संतरी था। आगे बढ़ते ही इंडियन आर्मी के नाई उमाशंकर और उसके बाद लांस नायक अशोक कुमार को एके-56 की गोलियों से भून डाला। जब तक लाल किले के भीतर मौजूद आर्मी अफसरों को होश आया, तब तक आतंकवादी दीवान-ए-आम, मझली फिश म्यूजियम, मुगल संग्रहालय के पीछे से लाल किले के बाहर कूद कर फरार हो गये।

कौन है आरिफ उर्फ़ अशरफ

आरिफ लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी है। 22 दिसंबर, 2000 को उसने लाल किले के पास गोलियां चलाईं थी, जिसमें सेना के दो कर्मियों सहित तीन लोग मारे गए थे। सेना की जवाबी हमले में लाल किला में घुसपैठ करने वाले दो आतंकवादियों को मार गिराया था। मोहम्मद आरिफ उर्फ़ अशरफ को 25 दिसंबर साल 2000 को गिरफ्तार कर लिया गया था। साल 2005 में लोअर कोर्ट ने आरिफ को मौत की सजा सुनाई थी।

साल 2007 में दिल्ली हाई कोर्ट ने भी मोहम्मद आरिफ की मौत की सजा को बरकरार रखा था। चार साल बाद, सुप्रीम कोर्ट ने भी मौत की सजा को बरकरार रखा। 2016 में, सुप्रीम कोर्ट ने आरिफ की समीक्षा याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की। अदालत ने कहा कि मौत की सजा के दोषियों की समीक्षा याचिकाओं को खुली अदालतों में सुना जाना चाहिए।

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