मध्य प्रदेश कमाल मौला मस्जिद (भोजशाला) के एएसआई सर्वे के आदेश पर बोले धार के शहर क़ाज़ी ‘अयोध्या का रूप देने की हो रही कोशिश, जिन लोगों के हाथों में ताक़त है, वही ये सब चला रहे हैं’, जाने क्या है मामला

तारिक़ आज़मी

डेस्क: मध्य प्रदेश के धार में स्थित कमाल मौला मस्जिद इन दिनों चर्चाओं का केंद्र है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने ‘भोजशाला’ (उक्त मस्जिद जिसको हिन्दू पक्ष बाग्देवी मन्दिर होने का दावा करता है) के एएसआई द्वारा सर्वे का आदेश पारित किया है। मस्जिद कमेटी इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रही है। वही हिन्दू पक्ष इस आदेश पर ख़ुशी ज़ाहिर कर रहा है।

मुस्लिम समाज के जुड़े धार के शहर क़ाज़ी वक़ार सादिक़ ने अदालत के इस फ़ैसले पर कहा है कि ‘हमें न्यायपालिका में पूरा भरोसा है। माननीय अदालत के लिए मेरे मन में सम्मान है लेकिन ये फ़ैसला हमें स्वीकार्य नहीं है।’ उन्होंने कहा कि बार-बार इस मामले को उठाकर सांप्रदायिक स्थितियां पैदा करने की कोशिश हो रही है लेकिन मुस्लिम समुदाय ऐसा होने नहीं देगा।

उन्होंने कहा, ‘इस मामले को अयोध्या का रूप देने की कोशिश हो रही है। क़रीब 800 साल से मुसलमान यहाँ नमाज़ पढ़ रहे हैं। इसका स्वरूप अब बदलने की कोशिश हो रही है। मुझे तो लगता है कि जिन लोगों के हाथों में ताक़त है, वही ये सब चला रहे हैं और हालात बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं।’ मध्य प्रदेश का एक ज़िला है धार। ये राजधानी भोपाल से क़रीब 260 किलोमीटर दूर है। धार को महलों का शहर कहा जाता है।

यहां कई पर्यटन स्थल हैं। धार ज़िले की वेबसाइट पर बताया गया है कि राजा भोज ने धार में एक महाविद्यालय की स्थापना की थी जिसे बाद में भोजशाला के रूप में जाना जाने लगा। इस पर बताया गया है कि भोजशाला या सरस्वती मंदिर के अवशेष अब भी प्रसिद्ध कमाल मौला मस्जिद में देखे जा सकते हैं, जिसे धार के तत्कालीन मुस्लिम शासकों ने बनवाया था। मस्जिद में एक बड़ा खुला प्रांगण है, जिसके चारों ओर स्तंभों से सज्जित एक बरामदा एवं पीछे पश्चिम में एक प्रार्थना गृह स्थित है।

परंपरागत ढंग से यहां साल में सिर्फ़ एक बार सरस्वती की पूजा होती रही है और मुसलमान हर शुक्रवार को नमाज़ अदा करते रहे हैं। लेकिन साल 2003 में हिंदू जागरण मंच ने हिंदुओं के वहां नियमित प्रवेश की मांग को लेकर एक आंदोलन शुरू किया था। यह आंदोलन हिंसक हो उठा था और सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया था। इसके कारण धार में लगातार कई दिनों तक कर्फ़्यू लगाना पड़ा था। इसके बाद भी कई बार तनाव के कई मामले सामने आए हैं।

मान्यताओं और सुफिज़म पर गौर करे तो बाबा फरीद गंज-ए-शकर रहमतुल्लाह अलैहि के मुरीद और हज़रत निजामुद्दीन औलिया के शागिर्द हज़रत कमाल-ए-दींन का आस्ताना यही है। उनका मकबरा इस मस्जिद के पास है ‘जिसके बारे में दावा किया जाता है कि इसे मंदिर के हिस्सों से बनाया गया है।’ इस मस्जिद का हवाला 1822 में अंग्रेजी लेखक जॉन माल्कम और 1844 में विलियम किनकैड के लेखन में भी है। उन्होंने राजा भोज से जुड़ी लोकप्रिय कहानियों का दस्तावेज़ तैयार किया था लेकिन इनके लेखन में भोजशाला का ज़िक्र नहीं है।

मगर 2012 में रॉयल एशियाटिक सोसाइटी में प्रकाशित माइकल विलिस के रिसर्च पेपर के अनुसार, भोजशाला ‘हॉल ऑफ़ भोज’ शब्द का इस्तेमाल राज भोज से जुड़ा है और इसका हवाला राजा भोज के ‘संस्कृत अध्ययन केंद्र’ को बताने के लिए किया जाता है। राजा भोज परमार राजवंश के शासक थे। विलिस ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ‘20वीं शताब्दी के शुरुआती वर्षों से कमालुद्दीन चिश्ती की मज़ार के पास स्थित मस्जिद की पहचान भोजशाला के रूप में की गई जिसके बाद से ‘ये इमारत धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक तनाव के केंद्र में बदल गया।’

धार ज़िले की वेबसाइट के अनुसार, राजा भोज ने धार में एक कॉलेज की स्थापना की थी जिसे बाद में भोजशाला कहा गया। विलिस के रिसर्च पेपर ‘धार, भोज एंड सरस्वती: फ्रॉम इंडोलॉजी टू पॉलिटिकल माइथोलॉजी एंड बैक’ में उन्होंने लिखा है कि ‘इस इमारत को बनाने में कई तरह के खंभो का इस्तेमाल किया गया। यहां फ़र्श पर खुदी पट्टियों और दीवारों पर उकेरी चीजें अब भी देखी जा सकती हैं। ये दिखाता है कि इस इमारत के लिए इस्तेमाल की गई सामग्रियां एक बड़े क्षेत्र के पुराने स्थलों से जमा की गई थीं।’

बताते चले कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सोमवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को निर्देश दिया कि वो धार जिले के भोजशाला परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करे। इस इमारत के बारे में अदालत में हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि ये वाग्देवी (सरस्वती) का मंदिर है जबकि मुस्लिम पक्ष इसे कमाल मौला मस्जिद बताते हैं। ये इमारत एएसआई के नियंत्रण में है। 11 मार्च को हाई कोर्ट की इंदौर पीठ के जस्टिस एस0 ए0 धर्माधिकारी और जस्टिस देवनारायण मिश्र ने अपने आदेश में कहा, ‘भोजशाला मंदिर सह-कमाल मौला मस्जिद परिसर का जल्द से जल्द वैज्ञानिक सर्वेक्षण और अध्ययन कराना एएसआई का संवैधानिक और क़ानूनी दायित्व है।’ अदालत ने ‘हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस’ की याचिका पर ये फ़ैसला सुनाया। मामले की अगली सुनवाई 29 अप्रैल को होगी।

दरअसल  मध्य प्रदेश में भोजशाला का मामला अक्सर उठता रहा है। साल 2003 में एएसआई ने एक समाधान निकालते हुए यहाँ हिंदुओ को मंगलवार को पूजा, वहीं मुस्लिम समुदाय को शुक्रवार को नमाज़ पढ़ने की इजाज़त दी। इसके साथ ही ये भी व्यवस्था हुई कि हिंदू बसंत पंचमी के दिन यहाँ पूजा कर सकते हैं। जिसके बाद हिंदू फ़्रंट फ़ॉर जस्टिस ने एएसआई के आदेश को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में दो मई, 2022 को चुनौती दी। इनका कहना था कि भोजशाला परिसर पर सिर्फ़ हिंदू समुदाय के लोगों को पूजा करने का अधिकार है।

अब सोमवार को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एएसआई को भोजशाला परिसर का सर्वे कराने का आदेश दिया है। हिंदू फ़्रंट फ़ॉर जस्टिस ने अदालत में अपनी दलील में कहा, ‘मस्जिद का निर्माण पूर्व में स्थित भोजशाला मंदिर पर 13वीं-14वीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल के दौरान ‘मंदिर के प्राचीन ढांचों’ को गिराकर किया गया।’  अदालत में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की तरफ़ से पेश होते हुए असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल हिमांशु जोशी ने कहा, ‘जुलाई 2003 में जो आदेश पारित किया, उसमें तत्कालीन एक्सपर्ट बॉडी के तत्वाधान में साल 1902-03 में तैयार रिपोर्ट पर विचार नहीं किया गया।

उन्होंने अपनी दलील में कहा कि इस रिपोर्ट में साफ़ तौर पर वाग्देवी की भोजशाला मंदिर की पहले से मौजूदगी के बारे में कहा गया था और गुरुकुल और वैदिक अध्ययन के मंदिर के विषय में भी यही कहा गया था।’ उनके अनुसार, ‘इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि इस मंदिर को इस्लामी आक्रमणकारियों ने ढहा दिया, और बाद में उन्होंने सत्ता संभालने के बाद यहाँ मस्जिद का निर्माण करवा दिया।’ इस पर अदालत में मुस्लिम पक्ष के वकील अजय बगाड़िया ने दलील दी कि राज्य सरकार और एएसआई जाहिर तौर पर सरकार के प्रभाव और दबाव में एक ख़ास तरह का पक्ष ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब अगला क़दम फ़ैसले की सूक्ष्मता से अध्ययन के बाद ही लिया जाएगा।

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