उत्तराखंड में जारी है मदरसों को सील करने की कार्यवाही, जमकर हो रहा विरोध, सील हुवे अब तक 136 मदरसे, जमीअत-उलमा-ए-हिन्द ने दाखिल किया राज्य सरकार की इस कार्यवाही के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

तारिक आज़मी
डेस्क: उत्तराखंड में मार्च के पूरे महीने में मदरसों के ख़िलाफ़ कार्रवाई जारी रही। सरकार की कार्रवाई का विरोध भी लगातार जारी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में 450 मदरसे मदरसा शिक्षा परिषद (मदरसा बोर्ड) से पंजीकृत हैं, लेकिन करीब 500 मदरसे बिना पंजीकरण के चल रहे हैं। कार्रवाई का विरोध कर रहे मुस्लिम संगठनों ने इसे भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक क़रार दिया है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

वैसे इस मामले में प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने तीन वर्ष का कार्यकाल पूरे होने पर यह बयान दिया है कि उनका अभियान किसी विशेष समुदाय के ख़िलाफ़ नहीं है। मगर मुस्लिम समाज के चलने वाले मदरसे जहा कुरआन बच्चो को पढाया जाता है पर होने वाली कार्यवाही को मुस्लिम संगठन समाज के खिलाफ होने वाली कार्यवाही मान रहे है। इस क्रम में सबसे पहले देहरादून ज़िले में लगभग एक दर्जन मदरसों और एक मस्जिद के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई। देहरादून ज़िले की विकासनगर तहसील में 1 मार्च 2025 से स्थानीय सिविल प्रशासन, मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) और राज्य मदरसा बोर्ड की एक टीम ने उप-जिलाधिकारी (एसडीएम) विनोद कुमार के नेतृत्व में छापेमारी शुरू की।
विकासनगर तहसील के ढकरानी और नवाबगढ़ गांवों में पांच मदरसों को सील किया गया और छह को नोटिस जारी किए गए। ढकरानी में एक मस्जिद भी सील की गई, जिससे मुस्लिम समुदाय में नाराज़गी बढ़ी। 4 मार्च 2025 को मुस्लिम समुदाय ने देहरादून के ज़िला मजिस्ट्रेट कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया, जिसका नेतृत्व जमीयत उलेमा-ए-हिंद और मुस्लिम सेवा संगठन की स्थानीय इकाई ने किया। प्रदर्शनकारियों ने प्रशासनिक कार्रवाई को असंवैधानिक बताया। जबकि एसडीएम विनोद कुमार ने मीडिया को बताया कि ‘उन मदरसों पर कार्रवाई की गई जो उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के साथ पंजीकृत नहीं थे या जिनका नक्शा स्वीकृत नहीं कराया गया था।’
जमीअत ओलमा-ए-हिन्द ने किया सुप्रीम कोर्ट का रुख
मुस्लिम उलेमाओं की संस्था जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने उत्तराखंड में सरकार की इस कार्रवाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेशों के उल्लंघन का हवाला दिया गया है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रवक्ता (दिल्ली) फज़लुर्रहमान ने मीडिया को जारी बयान में दावा किया है कि उत्तराखंड सरकार की यह कार्रवाई अवैध है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 4 अक्टूबर 2024 को सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में मदरसों के ख़िलाफ़ की गई कार्रवाई पर रोक लगा दी थी।
उत्तर प्रदेश और अन्य राज्य सरकारों ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सिफ़ारिशों के आधार पर यह कार्रवाई की थी। आयोग ने सुझाव दिया था कि सभी मदरसों को बंद कर दिया जाए क्योंकि ये संस्थान बच्चों को उचित शिक्षा नहीं दे रहे और यह बाल अधिकारों के ख़िलाफ़ है। लेकिन जमीयत ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और अदालत ने अक्टूबर 2024 में इस पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद, देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर और नैनीताल जिलों में प्रशासन और पुलिस की टीमों द्वारा मदरसे सील किए गए हैं। अब उत्तराखंड में हुई कार्रवाई के ख़िलाफ़ 2024 में दाख़िल याचिका में जमीयत ने नई अर्जी लगाई है।
फज़लुर्रहमान का कहना है, ‘हमने उत्तराखंड शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2016 की समीक्षा की है और कहीं भी यह नहीं लिखा कि गैर-पंजीकृत मकतब/मदरसों को धार्मिक शिक्षा देने की अनुमति नहीं है। यानी, मकतब/मदरसों का पंजीकरण क़ानूनन अनिवार्य नहीं है।’ जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने उत्तराखंड में मदरसों पर हुई कार्रवाई को असंवैधानिक बताते हुवे एक्स पर लिखा है कि ‘अब तक कई मदरसों को बिना किसी नोटिस के सील कर दिया गया है और मदरसों को स्पष्टीकरण या आपत्ति जताने का कोई मौका नहीं दिया गया है। इससे छात्रों के माता-पिता और अभिभावक भी इस अवैध हस्तक्षेप के कारण चिंतित हैं क्योंकि उनके बच्चों को उनकी इच्छानुसार धार्मिक शिक्षा जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा रही है, जो उनके मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन है।’











