बुल्डोज़र एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया योगी सरकार को सुप्रीम फटकार, कहा ‘जिनके घर तोड़े उनको 10-10 लाख मुआवजा दे’

तारिक खान
डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज में की गई तोड़-फोड़ (डिमोलिशन) पर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर तीखी टिप्पणी की है। भारत की सबसे बड़ी अदालत ने कहा है कि क़ानून के शासन में किसी के घर को इस तरह से नहीं ढहाया जा सकता है। कोर्ट ने योगी आदित्यनाथ की सरकार और प्रयागराज डेवलपमेंट अथॉरिटी के बुल्डोजर एक्शन को ‘अमानवीय और ग़ैरक़ानूनी’ कहा है। कोर्ट ने इस मामले के सभी याचिकाकर्ताओं को छह हफ़्तों के अंदर 10-10 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का आदेश दिया है।

अखिलेश ने लिखा है, ‘सच तो ये है कि घर केवल पैसे से नहीं बनता है और न ही उसके टूटने का ज़ख़्म सिर्फ़ पैसों से भरा जा सकता है। परिवारवालों के लिए तो घर एक भावना का नाम है और उसके टूटने पर जो भावनाएं हत होती हैं उनका न तो कोई मुआवज़ा दे सकता है न ही कोई पूरी तरह पूर्ति कर सकता है। परिवारवाला कहे आज का, नहीं चाहिए भाजपा!’ बताते चले कि यह मामला साल 2021 का है, जिसमें एक याचिकाकर्ता प्रोफ़ेसर अली मोहम्मद फातमी का घर भी बुलडोज़र से गिरा दिया गया था। पीड़ित पक्ष ने इसके ख़िलाफ़ इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन उसे नामंज़ूर कर दिया गया था।
इस मामले में याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा था उनके क्लाइंट का घर ग़लत तरीक़े से गिराया गया था और कहा गया था कि जिस ज़मीन पर घर बना है वह गैंगस्टर रहे अतीक़ अहमद की है। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में यूपी के पूर्व सांसद और माफ़िया अतीक़ अहमद और उनके भाई अशरफ़ अहमद की अप्रैल 2023 में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। इससे पहले, उनके कई कथित क़रीबियों के घर पर बुलडोज़र चलाए गए थे, जिनमें याचिकाकर्ताओं का घर भी शामिल था। प्रदेश की बुलडोजर कार्रवाइयों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा किया था कि राज्य में बुलडोज़र की कार्रवाई ‘पेशेवर अपराधियों और माफ़ियाओं के ख़िलाफ़ है’। यह ट्वीट जून 2022 का है।
नवंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने देश भर में बुलडोज़र से संपत्तियों को तोड़े जाने को लेकर दिशा निर्देश जारी किए थे। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा था कि किसी व्यक्ति के घर या संपत्ति को सिर्फ़ इसलिए तोड़ दिया जाना कि उस पर अपराध के आरोप हैं, क़ानून के शासन के ख़िलाफ़ है। सुप्रीम कोर्ट ने घरों को बुलडोज़र से तोड़े जाने के ख़िलाफ़ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिए थे पिछले साल को दिशानिर्देश जारी किए थे उसके मुताबिक़ पूर्व में कारण बताओ नोटिस दिए बिना विध्वंस की कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।
कोर्ट ने कहा था कि इस नोटिस का उत्तर या तो स्थानीय नगरपालिका क़ानूनों में निर्धारित समय के अनुसार या नोटिस दिए जाने के पंद्रह दिनों के भीतर दिया जा सके। इसके अलावा इस दिशानिर्देश में कहा गया था कि नोटिस पंजीकृत डाक से भेजा जाए और संपत्ति पर भी चिपकाया जाए, नोटिस में तोड़ फोड़ के आधार स्पष्ट हो। कोर्ट ने कहा था कि नोटिस को पूर्व तिथि पर जारी किए जाने के आरोपों से बचने के लिए, जैसे ही नोटिस संपत्ति के स्वामी या वहां रहने वालों को भेजा जाए, उसके बारे में जानकारी ज़िलाधिकारी कार्यालय या कलेक्टर ऑफ़िस में भी भेजी जाए।
अपना आदेश सुनाते हुए जस्टिस गवई ने कहा था, ‘एक आम नागरिक के लिए घर बनाना कई साल की मेहनत, सपनों और महत्वाकांक्षाओं का नतीजा होता है।’ दरअसल कई राज्यों में प्रशासन ने ऐसे लोगों के घरों को तोड़ा है, जिन पर सरकार के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शनों में शामिल होने का शक़ था। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासन में बुलडोज़र एक्शन का महिमामंडन भी किया गया है। उनके कई समर्थक राजनीतिक रैलियों में बुलडोज़र लेकर आते रहे हैं।










