जागते रहो भारत यात्रा पहुची बनारस, एशियन ब्रिज इंडिया के साथ मिल महिलाओं के न्याय एवं घुमंतू समुदायों के अधिकारों पर युवाओं के साथ किया संवाद

अजीत कुमार

वाराणसी: जागते रहो भारत यात्रा का आज वाराणसी में भव्य स्वागत हुआ, जहाँ नागरिकों ने उत्साहपूर्वक यात्रियों का अभिनंदन किया। यह यात्रा 8 मार्च, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर माउंट आबू, राजस्थान से आरंभ हुई और अब तक देश के 22 जिलों का भ्रमण करते हुए 11,000 किलोमीटर की दूरी तय करने की दिशा में अग्रसर है। इसका उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा, गरिमा और सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति जनजागरूकता फैलाना है, साथ ही यह यात्रा देशभर में लैंगिक न्याय, सांस्कृतिक चेतना और नागरिक एकजुटता पर सार्थक संवाद को जन्म दे रही है।

वाराणसी में इस यात्रा का  स्वागत एशियन ब्रिज इंडिया (एबीआई) द्वारा किया गया। वाराणसी में  इस यात्रा के पड़ाव में आज एबीआई द्वारा युवा संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमे वाराणसी के युवाओं ने भाग लिया। इस युवा संवाद में जहाँ युवाओं के साथ गहरे और ईमानदार संवाद के ज़रिए पितृसत्ता, सांस्कृतिक धारणाओं और सामूहिक ज़िम्मेदारी जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई वही वर्त्तमान युवाओं की चेतना पर भी सवाल खड़े किये गए। इस ‘युवा संवाद’ में जागते रहो भारत यात्रा के प्रमुख यात्री और वरिष्ठ गाँधीवादी सामाजिक कार्यकर्त्ता राजेंद्र कुमार ने युवाओं को सम्बोधित किया।

उन्होंने कहा कि हम इक्कसवीं सदी की सम्य दुनिया के सभ्य लोग है। लेकिन समाज की आधी आबादी (महिला वर्ग) आज भी भेदभाव और असुरक्षा का सामना करने के लिए अभिशप्त है। महिला अपराध और दुष्कर्म की आए दिन होने वाली घटनाओं ने भारतीय जनमानस को गहरी चिंता में डाल दिया है। महामहिम राष्ट्रपति महोदया ने भी इस पर चिंता व्यक्त करते हुए लिखा है कि “महिला दुष्कर्म की जघन्य घटनाओं को जल्दी भूल जाना सामूहिक घिनौनी बिमारी है।” इस पीडा का कारण यह है कि जब तक एक महिला अथवा चार साल की अबोध बालिका के साथ हुए अमानवीय क्रूरतम अपराध की चर्चा अखबार या टेलिविजन के पर्दे पर रहती है। हमें याद रहता है और जैसे ही मीडिया से गायब हमारी स्मृति से भी गायब हो जाती है।

कहा कि महिला दुष्कर्म की 2002 में दर्ज 16075 घटनाएं 2022 में बढ़कर 31586 हो जाना होना समाज के लिए कड़ी चेतावनी है। वर्ष 2023 में प्रति घण्टा दुष्कर्म की 86 घटनाएं दर्ज की गई। वर्ष 2023 में 6337 दुष्कर्म अपराध की घटनाओं के साथ राजस्थान प्रथम, 2947 के आंकडे के साथ मध्यप्रदेश दूसरे स्थान पर और 2496 के आंकड़े के साथ महाराष्ट्र तीसरे नम्बर पर रहा। 2012 की दिल्ली में हुई घटना ने समस्त समाज और शासन को गंभीरतापूर्वक सोचने के लिए मजबूर कर दिया था, लेकिन ये भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि असंख्य विभत्स और अमानवीय घटनाओं पर हमारा ध्यान नहीं जाता।

उन्होंने कहा कि हालांकि निर्भया कांड के बाद कानूनों में सजा के कड़े प्रावधान किए गए, लेकिन छत्तीसगढ़ में 9 साल की बच्ची के शव के साथ दुष्कर्म मामले में हाईकोर्ट का ये कहना कि इसमें सजा का कानूनन प्रावधान नहीं है। हमें सचेत करता है कि अभी समाधान का रास्ता बहुत लम्बा है। इस युवा संवाद में यात्रा की अगली यात्री जम्मुबेन ने युवा चेतना गीत “युग की जड़ता के खिला एक इंकलाब है, हिन्द के जवान एक सुनहरा ख्वाब है” गाकर युवा संवाद में एक ऊर्जा का संचार किया। वरिष्ठ गाँधीवादी और स्वर्गीय सुब्बाराव जी के सहयोगी रहे अजय पांडेय ने अपने उद्बोधन में  कहा की ‘हिंसा और युद्ध व्यक्तियों के दिमाग में जन्म लेता है, और शांति का प्रयास भी व्यक्तियों के दिमाग में ही जन्म लेता है।” लेकिन आज हम अपने चारो तरफ होने वाली हिंसा और युद्ध के इतने आदि हो गए है कि यह भूल गए है कि हम इंसान है।

उन्होंने एक शेर के माध्यम से अपनी बात रखते हुए कहा “एक घर बनाना था, ये हम क्या बना बैठे? कही मंदिर बना बैठे, तो कहीं मस्जिद बना बैठे, इन परिंदो की फिरका परस्ती के क्या कहने, कभी मंदिर पर जा बैठे तो कभी मस्जिद पर जा बैठे।” उन्होंने यह भी बताया कि आज का युवा किस तरह से युद्ध आतुर और सांप्रदायिक बन चूका है। जिसका परिणाम है की आज वो इतना असंवेदनशील हो चूका है कि महिला हिंसा अब उनके लिए कोई चिंता का विषय ही नहीं है और इसकी परिणीति हुई है की हर घंटे 86 महिला हिंसा की जघन्य घटनाये हो रही है, लेकिन हम युद्ध और साम्प्रदायिकता में उलझे हुए है।

महात्मागाँधी कशी विद्यापीठ के प्रो0 संजय ने बताया की तरह से उनके द्वारा महिलाओं के प्रति हिंसा के रोकथाम में पुरुषों की भूमिका, पुरुषों के पितृसत्तात्म दृष्टिकोण में बदलाव हेतु कार्य किए गए और मास्वा, फेम, मेन इंगेज इंडिया एवं मेन इंगेज ग्लोबल एलायंस के कार्यों पर प्रकाश डाला और कहा की युद्ध और साम्प्रदायिकता भी नकारात्मक मर्दानगी और पितृसत्तातमक दृष्टिकोण का हिस्सा है। अगर समाज से हर प्रकार की हिंसा को समाप्त करना है तो हम लोगों को पुरषों और युवाओं के साथ पितृसत्ता और मर्दानगी जैसे विषयों पर चर्चा करनी होगी।  यह भी कहा की जिस तरह से पुरषों ने महिलाओमें को घर के अंदर एवं स्वयं को घर के बाहर के कार्यों में संलग्न कर रखा है, अब उनको घरों की तरफ लौटना होगा और केयर वर्क में उनकी भी बराबर की ज़िम्मेदारी है यह उनको समझना होगा।

इसी मंच पर प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता प्रेम नट ने घुमंतू समुदायों की बहुआयामी चुनौतियों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने इन हाशिए पर रहने वाले समुदायों के सामाजिक-आर्थिक संघर्षों, शिक्षा और रोजगार के अवसरों में व्याप्त असमानता, स्थायी आवास और बुनियादी सुविधाओं की कमी, सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता तथा सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण से जुड़ी समस्याओं को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि घुमंतू समुदायों को अब भी मुख्यधारा के विकास और कानूनी संरक्षण से वंचित रखा गया है। इस संदर्भ में, UDAAN संस्था के पदाधिकारियों और यात्रा नेतृत्व ने इन मुद्दों पर गंभीर विचार-विमर्श करते हुए समुदायों के उत्थान हेतु एक समग्र कार्य योजना तैयार करने का संकल्प लिया।

एबीआई के अध्यक्ष मोहम्मद मूसा आज़मी ने सांप्रदायिक हिंसा और लैंगिक अन्याय की गहरी जड़ों पर तीव्र टिप्पणी करते हुए कहा, “किसी भी युवा का सांप्रदायिक बनने से पहले उसका पितृसत्तात्मक बनना पहली शर्त है। दंगाई बनने के लिए ज़हरीला मर्द बनना ज़रूरी है।” इस वक्तव्य ने सभा में गहन आत्ममंथन को प्रेरित किया और प्रतिभागियों ने यह समझना शुरू किया कि कैसे समाज में व्याप्त मर्दानगी की धारणा करुणा को दबाती है और आक्रोश को महिमामंडित करती है।’ आज के युवा संवाद कार्यक्रम में 40 यूथ लीडर, स्टूडेंट्स और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए जिसमें प्रमुख रूप से राम प्रकाश, दीक्षा, पंकज, अफसाना, चंदन, नेहा, रूमान, आर्या, मीठी और मोनिका आदि शामिल हुए।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *