वक्फ संशोधन कानून 2025 पर अंतरिम रोक के मांग वाली याचिकाओ पर सुनवाई करते हुवे सुप्रीम कोर्ट ने कहा ‘अंतरिम रोक के लिए मजबूत साक्ष्य ज़रूरी’, पढ़े कपिल सिब्बल ने अदालत में अपनी दलीलों से कैसे साधा सरकार की मंशा पर निशाना

तारिक खान

डेस्क: वक्फ कानूनों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच में हुई। तीन घंटे तक चली सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कई गंभीर मुद्दों को उठाते हुवे अदालत में सरकार की मंशा पर अपनी दलीलों से जमकर प्रहार किया। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश पारित करने के सवाल सुनवाई के दरमियान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने मौखिक रूप से कहा कि कानून पर रोक लगाने के लिए मजबूत मामला पेश करना होगा।

अदालत ने कहा कि ‘हर कानून के पक्ष में संवैधानिकता की धारणा होती है। अंतरिम राहत के लिए आपको बहुत मजबूत और स्पष्ट मामला पेश करना होगा। अन्यथा, संवैधानिकता की धारणा बनी रहेगी।’ जिस पर सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि उनके पास प्रथम दृष्टया मजबूत मामला है। उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘यदि प्रावधानों को सक्रिय किया जाता है तो इससे अपूरणीय क्षति होगी।’ सुनवाई की शुरुआत में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सुनवाई तीन मुद्दों तक सीमित है, जिन्हें पिछली पीठ ने 16 अप्रैल को उठाया था।

हालांकि, याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर लिखित प्रस्तुतियां अधिक मुद्दों को संबोधित करती हैं। ‘अदालत ने तीन मुद्दे निर्धारित किए थे। हमने इन तीन मुद्दों पर अपना जवाब दाखिल किया था। हालांकि याचिकाकर्ता की लिखित प्रस्तुतियां अब कई अन्य मुद्दों तक विस्तारित हैं। मैंने इन तीन मुद्दों के जवाब में अपना हलफनामा दाखिल किया। मेरा अनुरोध है कि इसे केवल तीन मुद्दों तक सीमित रखा जाए।’  याचिकाकर्ताओं के लिए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और एएम सिंघवी ने एसजी की प्रस्तुति का विरोध किया और कहा कि ‘टुकड़ों में सुनवाई’ नहीं हो सकती।

बताते चले कि इस मामले की सुनवाई 16 और 17 अप्रैल को तीन जजों की पीठ द्वारा विस्तार से की गई। 16 अप्रैल को याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश कीं, जिन्होंने 2025 के संशोधन अधिनियम के बारे में विभिन्न चिंताएं जताईं, जिसमें ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ प्रावधान को छोड़ दिया जाना भी शामिल था। उन्होंने तर्क दिया कि सदियों पुरानी मस्जिदों, दरगाहों आदि के लिए रजिस्ट्रेशन दस्तावेजों को साबित करना असंभव है, जो कि ज्यादातर उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ हैं। प्रतिवादी की ओर से एसजी मेहता ने दलीलें पेश कीं।

उन्होंने न्यायालय को सूचित किया कि ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ प्रावधान भावी है, जिसका आश्वासन केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद में भी दिया था। जब पूर्व सीजेआई खन्ना ने एसजी से पूछा कि क्या उपयोगकर्ताओं की संपत्तियों से वक्फ प्रभावित होगा या नहीं तो एसजी मेहता ने जवाब दिया, “यदि रजिस्टर्ड हैं तो नहीं, यदि वे रजिस्टर्ड हैं तो वे वक्फ ही रहेंगे।’ साथ ही केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने पर भी चिंता जताई गई। पूर्व सीजेआई खन्ना ने एसजी मेहता से पूछा कि क्या हिंदू धार्मिक बंदोबस्तों को नियंत्रित करने वाले बोर्डों में मुसलमानों को शामिल किया जाएगा। सुनवाई के अंत में न्यायालय ने अंतरिम निर्देश प्रस्तावित किए कि न्यायालयों द्वारा वक्फ के रूप में घोषित की गई किसी भी संपत्ति को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाना चाहिए।

इसने यह भी प्रस्ताव दिया कि वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद के सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए, सिवाय पदेन सदस्यों के। ऐसे अंतरिम निर्देश प्रस्तावित करने का न्यायालय का विचार यह है कि सुनवाई के दौरान कोई “कठोर” परिवर्तन न हो। चूंकि एसजी मेहता ने और समय मांगा, इसलिए मामले की सुनवाई 17 अप्रैल को फिर से हुई, जिसमें उन्होंने बयान दिया कि मौजूदा वक्फ भूमि प्रभावित नहीं होगी। केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में कोई नियुक्ति नहीं की जाएगी। बयान को न्यायालय ने रिकॉर्ड पर ले लिया और मामले को प्रारंभिक आपत्तियों और अंतरिम निर्देशों, यदि कोई हो, के लिए 5 मई को रखा गया।

आज हुई जिरह में सिब्बल ने कहा कि तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने तीन विशिष्ट मुद्दे उठाए, लेकिन सुनवाई को उन मुद्दों तक सीमित नहीं किया। सिब्बल ने कहा कि अदालत के सीमित आदेश में ऐसी कोई सीमा नहीं लगाई गई। हालांकि, एसजी मेहता ने कहा कि उनका जवाब तीन मुद्दों तक सीमित था। सीजेआई गवई ने कहा कि उन्हें रिकॉर्ड में जो है, उसके अनुसार ही चलना होगा, उन्होंने दलीलें शुरू करने को कहा। सिब्बल सिब्बल ने अपनी दलीलें यह कहकर शुरू कीं कि 2025 के संशोधनों का उद्देश्य ‘एक ऐसी प्रक्रिया के माध्यम से वक्फ पर कब्जा करना है, जो गैर-न्यायिक है।” उन्होंने सरकारी अधिकारी को यह अधिकार देने वाले प्रावधान पर आपत्ति जताई कि वह इस बात का फैसला कर सकता है कि वक्फ संपत्तियों ने सरकारी भूमि पर अतिक्रमण किया या नहीं। जब तक विवाद का फैसला नहीं हो जाता, तब तक संपत्ति वक्फ संपत्ति के रूप में अपना चरित्र खो देती है।

सिब्बल ने कहा, “सरकार अपनी प्रक्रिया खुद तय करती है, कोई भी विवाद पैदा कर सकता है। यह एक पहलू है।” इसके बाद उन्होंने कहा कि संशोधनों ने “एक बार वक्फ, हमेशा वक्फ” के सिद्धांत को खत्म कर दिया। खंडपीठ के सवालों का जवाब देते हुए सिब्बल ने कहा कि पिछले कानून के तहत रजिस्ट्रेशन न होने से वक्फ की वैधता प्रभावित नहीं होती और इसका एकमात्र परिणाम यह होता है कि मुत्तवल्ली को कुछ जुर्माना देना पड़ता है। हालांकि, 2025 के संशोधन में यह कहा गया कि अगर रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ तो वक्फ को मान्यता नहीं मिलेगी। खंडपीठ ने इस दलील को इस प्रकार दर्ज किया: “1913 से 2023 तक, हालांकि वक्फ के रजिस्ट्रेशन का प्रावधान था, लेकिन गैर-अनुपालन के लिए मुत्तवल्ली को हटाने के अलावा कोई परिणाम नहीं दिया गया।”

उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ के संबंध में सिब्बल ने कहा कि 1954 के बाद रजिस्ट्रेशन आवश्यक था। हालांकि, रजिस्ट्रेशन न होने से वक्फ के रूप में भूमि के चरित्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। साथ ही उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ के रजिस्ट्रेशन के लिए निर्माता का विवरण दिया जाना चाहिए, जो कई प्राचीन संपत्तियों के लिए संभव नहीं है। अगर निर्माता का विवरण नहीं दिया जाता है तो मुत्तवल्ली को छह महीने तक की कैद हो सकती है। इसके बाद सिब्बल ने कहा कि अगर किसी वक्फ संपत्ति को AMASR Act के तहत संरक्षित प्राचीन स्मारक घोषित किया जाता है तो इससे वक्फ के रूप में संपत्ति के स्वामित्व या उपयोग पर कोई असर नहीं पड़ता है। उन्होंने दिल्ली जामा मस्जिद का उदाहरण दिया। हालांकि इसे संरक्षित क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया गया, लेकिन इसका इस्तेमाल वक्फ के रूप में किया जा सकता है।

हालांकि, 2025 का संशोधन (धारा 3डी) संरक्षित स्मारकों की वक्फ घोषणाओं को अमान्य करता है। यह अनुच्छेद 14, 25 और 26 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। 2025 के संशोधन (धारा 3(1)(आर)) में यह शर्त कि केवल 5 वर्षों तक इस्लाम का पालन करने वाला व्यक्ति ही वक्फ बना सकता है, उसको “स्वयं में असंवैधानिक” बताकर चुनौती दी गई। धारा 3ई, जो अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में बनाए गए वक्फ को अमान्य करती है, उसको सिब्बल ने अगली बार चिह्नित किया, क्योंकि यह अनुसूचित जनजातियों से संबंधित मुसलमानों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करती है। सिब्बल ने इसके बाद केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुसलमानों के नामांकन की अनुमति देने वाले प्रावधानों को चिह्नित किया।

सिब्बल ने कहा, “पहले, बोर्ड के सदस्य चुने जाते थे और वे पूरी तरह से मुसलमान होते थे। अब वे सभी मनोनीत हैं। 11 सदस्य होंगे और 7 गैर-मुस्लिम हो सकते हैं। यह अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन है। प्रबंधन समुदाय द्वारा किया जाना चाहिए।” सिब्बल ने कहा कि संशोधन के अनुसार, केंद्रीय वक्फ परिषद में भी गैर-मुस्लिम बहुमत में हो सकते हैं। हालांकि, पीठ ने इस व्याख्या से असहमति जताई और कहा कि पदेन सदस्यों के अलावा अधिकतम दो गैर-मुस्लिमों को ही मनोनीत किया जा सकता है।

सिब्बल ने कहा, “यहां तक ​​कि दो भी बहुत हैं।” उन्होंने बताया कि हिंदू बंदोबस्ती से संबंधित किसी भी कानून में अन्य धर्मों के लोगों को अनुमति नहीं है। पहले, वक्फ बोर्ड के सीईओ को मुस्लिम होना पड़ता था। अब धारा 23 में संशोधन के कारण यह गैर-मुस्लिम हो सकता है। सिब्बल ने तर्क दिया, “यह पूरी तरह से बदलाव है और वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने का प्रयास है।” इसके बाद सिब्बल ने वक्फ संपत्तियों के लिए सर्वेक्षण आयुक्त के कार्यालय को समाप्त करने पर प्रकाश डाला। वक्फ सर्वेक्षण का कार्य सामान्य जिला प्रशासन को देना, जो पहले से ही बोझिल है, प्रतिकूल है। उन्होंने धारा 36(7) को चिह्नित किया, जिसमें कहा गया कि यदि वक्फ संपत्ति विवाद में है या सरकारी संपत्ति है तो उसका रजिस्ट्रेशन नहीं किया जा सकता। इसका मतलब है कि कोई भी व्यक्ति केवल विवाद उठाकर रजिस्ट्रेशन को रोक सकता है। अगर संपत्ति रजिस्टर्ड नहीं है तो इसका मतलब है कि राहत के लिए वक्फ ट्रिब्यूनल से संपर्क नहीं किया जा सकता।

सिब्बल ने कहा, “अगर मेरी संपत्ति रजिस्टर्ड नहीं है तो मैं ट्रिब्यूनल में नहीं जा सकता। इसका नतीजा यह होता है कि समुदाय की संपत्ति पर कब्ज़ा कर लिया जाता है और उन्हें कोई उपाय नहीं दिया जाता। अगर पीड़ित पक्ष ट्रिब्यूनल में जाता है, तो 10 साल बीत जाते हैं- खत्म हो जाते हैं। वक्फ की शाश्वतता खत्म हो जाती है।” धारा 36(10) के अनुसार, अपंजीकृत वक्फ अधिनियम के तहत उपायों का इस्तेमाल नहीं कर सकते। “मैं कहीं नहीं जा सकता! मैं मुकदमा या कार्यवाही दायर नहीं कर सकता। मुकदमा करने का मेरा मौलिक अधिकार खत्म हो गया। मेरी संपत्ति पर कब्ज़ा कर लिया गया और मैं मुकदमा नहीं कर सकता। यह स्पष्ट रूप से मनमाना है।”

संशोधनों के संपत्ति प्रशासन के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं को विनियमित करने वाले केंद्र के रुख का खंडन करते हुए सिब्बल ने कहा, “वक्फ का निर्माण एक धर्मनिरपेक्ष गतिविधि नहीं है। यह एक मुस्लिम की संपत्ति है, जिसे वह भगवान को समर्पित करता है।” सीनियर एडवोकेट डॉ। राजीव धवन ने एक्ट की धारा 3ए के प्रावधान के बारे में बताया, जिसमें कहा गया कि मुस्लिम व्यक्तियों द्वारा बनाए गए ट्रस्ट वक्फ अधिनियम के अंतर्गत नहीं आएंगे। इससे कई संपत्तियों पर असर पड़ सकता है, क्योंकि देश भर में कई वक्फों के उद्देश्य ट्रस्ट के समान ही हैं। धवन ने यह भी कहा कि उनके पास एक सिख व्यक्ति मुवक्किल है, जो अपनी संपत्ति वक्फ के रूप में समर्पित करना चाहता है, लेकिन नवीनतम संशोधन के अनुसार उसे ऐसा करने की अनुमति नहीं है, जिसके अनुसार केवल मुस्लिम ही वक्फ बना सकते हैं।

सीनियर एडवोकेट डॉ0 अभिषेक मनु सिंघवी ने उपरोक्त अधिकांश बिंदुओं को दोहराते हुए 2021 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित अंतरिम आदेश पर भरोसा जताया, जिसने कृषि कानूनों के कार्यान्वयन को निलंबित कर दिया था। सिंघवी ने 2013 के बाद वक्फ संपत्तियों में तेजी से वृद्धि के बारे में केंद्र के दावों का भी विरोध किया और कहा कि वक्फ पोर्टल के सक्रिय होने के बाद उसमें की गई प्रविष्टियों को 2013 के बाद वक्फ संपत्तियों की सीमा में उछाल के रूप में गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है। सीनियर एडवोकेट चंदर उदय सिंह ने रजिस्ट्रेशन के संबंध में तर्क देते हुए कहा कि रजिस्ट्रेशन कभी भी वक्फ की वैधता के लिए शर्त नहीं थी। यह आवश्यकता पहली बार 2025 के संशोधन के माध्यम से पेश की गई थी। सीनियर एडवोकेट हुजेफा अहमदी ने धारा 107 में संशोधन का हवाला दिया, जिसके द्वारा परिसीमा अधिनियम को वक्फ अधिनियम पर लागू किया गया। इसका मतलब है कि अब निष्प्रभावी संपत्तियों की घोषणा को चुनौती देना असंभव है।

अहमदी ने यह भी कहा कि अधिनियम की कम से कम धारा 3डी के लिए पूर्ण रोक की आवश्यकता है, क्योंकि वक्फ, जो प्राचीन मस्जिदें हैं, इस प्रावधान के आधार पर अमान्य हो जाएंगी। अहमदी ने यह भी तर्क दिया कि “इस्लाम का अभ्यास करने के पांच साल” की आवश्यकता मनमानी है। उन्होंने सवाल किया कि अधिकारी यह कैसे निर्धारित करेंगे कि कोई व्यक्ति मुसलमान है – क्या वे यह आकलन करेंगे कि क्या वह व्यक्ति दिन में पांच बार नमाज अदा करता है या उसकी व्यक्तिगत आदतों, जैसे कि शराब पीना, की जांच करेंगे। हालांकि एडवोकेट निजाम पाशा ने प्रस्तुतियां देने के लिए समय मांगा, लेकिन पीठ ने यह कहते हुए अनुमति नहीं दी कि याचिकाकर्ताओं द्वारा पहले ही पर्याप्त समय ले लिया गया। खंडपीठ कल यानी बुधवार को केंद्र सरकार की सुनवाई करेगी।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *