पुण्यतिथि पर विशेष: जब गोलियों की तड़तड़ाहट से थम गई थी ‘आयरन लेडी’ इंदिरा गांधी की साँसें, अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को इंतज़ार करवाने से लेकर हाथी पर सवार होकर बेलछी जाने वाली इंदिरा गाँधी के सम्बन्ध में ख़ास बाते

तारिक आज़मी

PNN24 न्यूज़, नई दिल्ली: 31 अक्टूबर… यह तारीख भारतीय इतिहास में एक ऐसे काले अध्याय के तौर पर दर्ज है, जब देश ने अपनी पहली महिला प्रधानमंत्री और दुनिया की सबसे मज़बूत राजनेताओं में से एक, इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी को खो दिया था। 31 अक्टूबर 1984 की वो मनहूस सुबह थी, जब उनके अपने ही अंगरक्षकों ने गोलियों से छलनी कर दिया। ‘आयरन लेडी’ कही जाने वाली इंदिरा गांधी के फौलादी इरादे और बेबाक फैसलों ने उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा।

आज उनकी पुण्यतिथि पर, हम उनके जीवन के कुछ ऐसे ऐतिहासिक पलों को याद कर रहे हैं, जो उनकी मज़बूत इच्छाशक्ति और जन-जुड़ाव को दर्शाते हैं।

1971: जब अमेरिका के राष्ट्रपति को करवाया इंतज़ार

इंदिरा गांधी को उनकी अटूट राष्ट्रीयता और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत के हितों की रक्षा के लिए जाना जाता है। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, उन्होंने जिस दृढ़ता से देश का नेतृत्व किया, वह आज भी मिसाल है।

  • निक्सन से टकराव: जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और उनके सलाहकार हेनरी किसिंजर ने पाकिस्तान का खुला समर्थन किया, तब भी इंदिरा गांधी नहीं झुकीं।
  • सफ़ेद घर में कड़ा रुख: अमेरिका को यह उम्मीद थी कि भारत, पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देगा। कहा जाता है कि जब इंदिरा गांधी नवंबर 1971 में अमेरिका के दौरे पर गईं, तो उन्होंने राष्ट्रपति निक्सन से मुलाकात के दौरान दक्षिण एशियाई संकट की चर्चा करने के बजाय, उनसे दुनिया भर में अमेरिकी विदेश नीति पर ही सवाल किए। उन्होंने अपनी ज़बरदस्त कूटनीति से अमेरिका को यह स्पष्ट कर दिया कि भारत, अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा।
  • नतीजा यह हुआ कि अमेरिका की “धमकी” के बावजूद, भारत ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए और बांग्लादेश का जन्म हुआ। उनके इस फ़ैसले ने उन्हें विश्व पटल पर ‘आयरन लेडी’ की पहचान दिलाई।

1977: बिहार के बेलछी में हाथी पर सवार इंदिरा

1977 में आपातकाल के बाद हुए चुनाव में इंदिरा गांधी की करारी हार हुई। यह एक ऐसा दौर था जब राजनीतिक विश्लेषकों ने मान लिया था कि उनका राजनीतिक करियर अब ख़त्म हो गया है। लेकिन एक घटना ने उनकी वापसी की पटकथा लिखी—बिहार का बेलछी नरसंहार

  • दलितों का नरसंहार: 1977 में पटना ज़िले के बेलछी गाँव में दलितों का एक भीषण नरसंहार हुआ था। इंदिरा गांधी ने तुरंत पीड़ित परिवारों से मिलने का फ़ैसला किया।
  • दुर्गम सफर: मॉनसून के कारण बेलछी पहुँचने का रास्ता कीचड़ और पानी से भरा हुआ था। उनकी कार और यहाँ तक कि ट्रैक्टर भी कीचड़ में फँस गया।
  • हाथी की सवारी: अपने मज़बूत इरादों के चलते इंदिरा गांधी रुकी नहीं। अंत में, एक हाथी मंगाया गया (जिसका नाम मोती बताया जाता है)। इंदिरा गांधी ने बिना किसी सुरक्षा हौज (howdah) के, हाथी की पीठ पर बैठकर लगभग साढ़े तीन घंटे का दुर्गम सफ़र तय किया और गाँव पहुँचीं।
  • हाथी पर बैठी इंदिरा गांधी की ये तस्वीर अगले दिन अख़बारों में छाई रही। यह दौरा उनकी आम जनता से सीधे जुड़ने की इच्छाशक्ति को दर्शाता है और इसे 1980 में उनकी शानदार सत्ता में वापसी का एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है।

31 अक्टूबर 1984: एक दुखद अंत

ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) के बाद उपजे तनाव के बीच, 31 अक्टूबर 1984 की सुबह, अपने आवास पर ब्रिटिश अभिनेता पीटर उस्तीनोव को एक इंटरव्यू देने के लिए जाते समय, उनके अपने ही अंगरक्षकों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने उन पर अंधाधुंध गोलियाँ चला दीं। इंदिरा गांधी को AIIMS ले जाया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। उनकी मौत ने पूरे देश को गहरे सदमे में डाल दिया था। इंदिरा गांधी का जीवन भारत की राजनीति, कूटनीति और जन-नेतृत्व का एक ऐसा मिश्रण रहा, जो हमेशा प्रेरणा देता रहेगा।

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