वाराणसी CMO साहब, आँख का आपरेशन और मौत..! ये कभी नही सुना, ASG आई हॉस्पिटल के डाक्टरों की लापरवाही पर आप खामोश क्यों? क्या दालमंडी की मासूम बच्ची अनाया के मौत का इन्साफ नहीं मिलेगा ?
तारिक आज़मी
वाराणसी: चिकित्सक धरती पर भगवान् का रूप होते है। ऐसा सुनते और पढ़ते हुवे हम बड़े हुवे और अब तो बुज़ुर्गी के तरफ कदम भी बढ़ा चुके है। मगर अब होने वाली घटनाओं को देख कर मन में ख्याल आता है कि आखिर धरती के ये भगवान् भी लापरवाही करते है? इनकी लापरवाही कर कार्यवाई करने वाला चिकित्सा विभाग है, मगर वह भी आंखे बंद कर लेता है और सीएमओ साहब आल इज वेल कह देते है।
ऐसा ही एक मामला है वाराणसी के मह्मूरगंज स्थित एएसजी आई हॉस्पिटल का। आँख के इलाज हेतु बड़े बड़े दावे करने वाले इस अस्पताल को एएसजी आई हॉस्पिटल चेन को वाराणसी के मह्मूरगंज में डॉ0 प्रत्युष रंजन, डॉ मो साजिद, डॉ कार्तिकेय सिंह, डॉ कुणाल विक्रम सिंह और डाक्टर अपेक्षा अग्रवाल के द्वारा सञ्चालन किया जाता है। अस्पताल के बड़े बड़े दावो में आकर नई सड़क के भीखा शाह गली निवासी रिजवान अपनी 8 साल की मासूम बच्ची अनाया को इस अस्पताल में दिखाने ले जाते है, जिसकी आंखे कमज़ोर रहती है। जहाँ डाक्टर कार्तिकेय सिंह ने अनाया को देख कर कहा कि इसका रेटिना आपरेशन के बाद ठीक हो जायेगा।
बिटिया के आँखों से चश्मा हट जाएगा इसको जानकार रिजवान और उनकी पत्नी की ख़ुशी का ठिकाना नही था। वह तुरंत तैयार हो जाती है और दिनांक 15 अक्टूबर की रात में आपरेशन होता है। आप नीचे जो तस्वीर देख रहे है वह मासूम अन्य के आपरेशन से ठीक पहले की तस्वीर है। इसके बाद अनाया को आपरेशन के लिए ले जाया जाता है। परिजनों के दावो की माने तो काफी ज्यादा वक्त गुज़र जाने के बाद भी जब आपरेशन के लिए अन्दर गई टीम एक एक कर बाहर निकल गए मगर काफी वक्त गुज़र जाने के बाद अनाया को आपरेशन थियेटर से जब बाहर नहीं लाया गया तो उकी माँ ने जाकर देखा। अन्दर का दृश्य देख कर वह चौक पड़ी, परिजनों के मुताबिक स्ट्रेचर पर अनाया अचेत स्थिति में पड़ी थी और आसपास कोई डाक्टर तो दूर की बात रही एक नर्स तक नही थी।
बच्ची की हालत बिगडती जा रही थी और चिकित्सक कोई आने को तैयार नही था, आखिर परिजन अनाया को लेकर कई अन्य अस्पताल गए मगर कोई फायदा नही हुआ और मासूम सी नन्ही परी अनाया इस ज़ालिम दुनिया को छोड़ कर रब से मिलने रुखसत हो गई। शायद वह अपने रब से पूछना चाहती होगी कि जब ज़मीन पर उस रब ने डाक्टर के रूप में फ़रिश्ता भेजा है तो वही फ़रिश्ता उस नन्ही जान के जान से कैसे खेल गया। नन्ही परी की इस रुखसती ने पुरे परिवार को गहरा सदमा दिया। माँ बाप की हाल रो रो कर पागलो जैसी हो गई है। आज भी अनाया की माँ रात को सोते वक्त चीख उठती है और अपनी बेटी का नाम पुकारती है।
परिवार और पड़ोस मोहल्ले के लोगो ने अस्पताल में जाकर 20 तारीख को अपनी आपत्ति करते हुवे पुरे वक्त का सीसीटीवी फुटेज माँगा। मगर आज तक वह उपलब्ध नही करवाया गया है। पुलिस को लिखित शिकायत किया गया मगर पुलिस इस मामले में कर ही क्या सकती है। अधिकारियों को पत्र लिख कर आवश्यक कार्यवाई की मांग किया गया, मगर कार्यवाई के नाम पर सिर्फ सीएमओ कार्यालय की ख़ामोशी हासिल हुई है। परिजन बच्ची के मौत का गम सीने से लगा बैठे है। मगर सीएमओ साहब को शायद आल इज वेल लगता है। क्योकि चर्चाओं को आधार माने तो इस अस्पताल ने “सिस्टम” मैनेज कर रखा है।
दूसरी तरफ अधिवक्ता शशांक शेखर सिंह ने अधिकारियों को पत्र लिख कर इस मामले में कार्यवाई की मांग किया। मगर सिस्टम मैनेज है तो सीएमओ कार्यालय कार्यवाई क्यों करेगा। अनाया की माँ ने मामले में अदालत की चौखट पर दस्तक दिया है। इन्साफ की जंग लड़ने के लिए, अब देखने की बात ये होगी कि अगर मेडिकल बोर्ड का गठन इस मामले की जाँच के लिए अदालत के हुक्म पर होता है तो मेडिकल बोर्ड इन्साफ के साथ खड़ा होता है अथवा इतने बड़े बड़े लोगो के सिस्टम का हिस्सा बनता है। सवाल ये अभी आने वाले वक्त के लिए जिंदा है। हम इस मामले में बहुत कुछ और भी जानकारी इकठ्ठा करके बैठे थे, मगर मामला अब जब अदालत की चौखट तक पहुच गया है तो इस विचाराधीन मामले में कुछ बोलना अथवा लिखना गैर मुनासिब रहेगा।
इन्साफ अनाया को कब मिलेगा यह सवाल अनाया की रूह सिर्फ प्रशासन और सत्ता से ही नहीं बल्कि कलम से भी पूछ रही है। ऐसे मामलो पर कलम की ख़ामोशी भी बहुत खलने वाली होती है। मगर इस बात का अहसास उसको होगा जो भुक्तभोगी होगा। उनको क्या अहसास हो जिसके आसपास अभी तक हरियाली ही हरियाली रहती है। वैसे सीएमओ साहब, अब तक आपको इस मामले का संज्ञान लेकर अस्पताल पर कार्यवाई तो कर ही देना चाहिए था। अनाया की रूह को सुकून मिलता साहब।
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