दिल का दर्द: छठ पर स्पेशल ट्रेनें भी नाकाम? लालू यादव बोले- ‘मेरे बिहारवासी अमानवीय तरीक़े से सफर कर रहे हैं’

ईदुल अमीन
PNN24 न्यूज़, पटना: लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा (Chhath Puja) के दौरान बिहारियों का अपने घर लौटने का संघर्ष हर साल की तरह इस बार भी बड़ा सियासी मुद्दा बन गया है। इस बार आरजेडी (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) ने ट्रेनों में भारी भीड़ और बदहाली को लेकर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है। रेलवे द्वारा छठ पर्व के लिए चलाई गई स्पेशल ट्रेनों की घोषणाओं के बावजूद, लालू यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पहले ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए बिहार के लोगों की दुर्दशा पर गंभीर चिंता जताई है।
लालू का सवाल: क्या घोषणाएं सिर्फ कागज़ों पर हैं?
पूर्व रेल मंत्री रहे लालू यादव ने सीधे तौर पर केंद्र सरकार की व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा है कि स्पेशल ट्रेनों की संख्या बढ़ाने के दावों के बावजूद ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है।
लालू यादव ने अपने पोस्ट में क्या कहा:
“छठ महापर्व में मेरे बिहारवासियों को अमानवीय तरीक़े से ट्रेनों में सफ़र करना पड़ रहा है। केंद्र सरकार की स्पेशल ट्रेनों की घोषणाएँ सिर्फ़ अख़बारों और TV तक सीमित हैं। क्या रेलवे के अधिकारी या मंत्री इन ट्रेनों की हकीकत देखने गए हैं? लोगों को छत पर बैठकर या दरवाज़ों से लटककर आना पड़ रहा है। क्या यही है आपका विकास?” लालू यादव ने अपने बयान से उन लाखों प्रवासी बिहारियों के दर्द को आवाज़ दी है, जो दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर जैसे शहरों से छठ मनाने अपने गाँव लौट रहे हैं और टिकट न मिलने या अत्यधिक भीड़ के कारण नारकीय यात्रा करने को मजबूर हैं।
सत्ता पक्ष का पलटवार: ‘लालू के राज में क्या होता था?’
लालू यादव के इस बयान पर बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने तुरंत पलटवार किया है। उन्होंने लालू यादव पर “लोकतंत्र का मज़ाक” उड़ाने का आरोप लगाया।
- सम्राट चौधरी का दावा: उन्होंने कहा कि लालू यादव को शर्म आनी चाहिए। जब वह स्वयं रेल मंत्री थे, तब सिर्फ 178 ट्रेनें चलाई जाती थीं, और आज केंद्र सरकार द्वारा 12,075 से अधिक स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं।
- उन्होंने आगे कहा कि लालू परिवार बिहार को ‘नालायक’ मानता है, जिसने राज्य को 20 साल पीछे धकेल दिया।
यह जुबानी जंग साफ दिखाती है कि छठ के दौरान ट्रेनों की भीड़ एक भावनात्मक मुद्दा है, जिसका सीधा असर प्रवासी वोट बैंक पर पड़ता है। बिहारियों का ट्रेन में सफर का संघर्ष, घोषणाओं और हकीकत के बीच की बड़ी खाई को उजागर करता है।












