सत्ता का दबाव’ वर्सेज ‘सुप्रीम कोर्ट का डंडा’: टेनी और आशीष मिश्र पर गवाह को धमकाने का मुक़दमा दर्ज, क्या यह न्याय की सच्ची शुरुआत है?

By: PNN24 न्यूज़ संवाददाता फारुख हुसैन

खीरी/नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश का लखीमपुर खीरी एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार मामला सिर्फ़ राजनीतिक नहीं, बल्कि सीधे-सीधे न्याय की लड़ाई से जुड़ा है। देश की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट के कड़े निर्देश के बाद खीरी पुलिस को वह काम करना पड़ा, जो शायद वह खुद नहीं करना चाहती थी। पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी और उनके बेटे आशीष मिश्र ‘मोनू’ पर एक बड़ा मुक़दमा दर्ज किया गया है। यह मुक़दमा किसी नई घटना के लिए नहीं, बल्कि गवाह को धमकाने के गंभीर आरोप में दर्ज हुआ है।

आदेश सुप्रीम कोर्ट का, कार्रवाई खीरी पुलिस की

यह मामला पिछले साल हुए लखीमपुर खीरी हिंसा से जुड़ा है, जिसमें किसान मारे गए थे और आशीष मिश्र मुख्य आरोपी हैं। हाल ही में, इस हिंसा के एक प्रमुख गवाह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। गवाह का आरोप था कि उन्हें और उनके परिवार को लगातार धमकियाँ मिल रही हैं, जिससे वे खौफ में हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस शिकायत को बेहद गंभीरता से लिया। अदालत ने साफ़ शब्दों में खीरी पुलिस को आदेश दिया कि वह न सिर्फ़ गवाह को सुरक्षा दे, बल्कि तुरंत अजय मिश्र टेनी और आशीष मिश्र के ख़िलाफ़ धमकी देने के आरोप में FIR दर्ज करे।

सत्ता का रसूख या न्याय की राह?

इस फ़ैसले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं:

  1. पुलिस की भूमिका पर सवाल: जब गवाह को पहले से ही खतरा महसूस हो रहा था, और धमकियाँ दी जा रही थीं, तो खीरी पुलिस ने खुद से कार्रवाई क्यों नहीं की? क्या सुप्रीम कोर्ट के दखल के बिना, एक आम गवाह को न्याय मिल पाता?
  2. रसूख का दबाव: अजय मिश्र टेनी चूँकि केंद्र सरकार में मंत्री रहे हैं, क्या उनके सत्ता के रसूख का दबाव स्थानीय पुलिस पर था, जिसके कारण वह FIR दर्ज करने से हिचक रही थी?

सुप्रीम कोर्ट ने सुनी गवाह की ‘अनसुनी’ पुकार

गवाह ने जब स्थानीय पुलिस से मदद माँगी, तो आरोप है कि कोई सुनवाई नहीं हुई. अंत में, इंसाफ की आखिरी उम्मीद लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. चीफ जस्टिस की बेंच ने मामले की गंभीरता को समझा और पाया कि गवाह को सुरक्षा देने और उसके आरोपों की जाँच करने में पुलिस ने ‘ढिलाई’ बरती.

कोर्ट ने साफ़ लहज़े में कहा कि जब एक गवाह खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा हो और हाई-प्रोफाइल लोगों पर धमकाने का आरोप लगा रहा हो, तो तुरंत FIR दर्ज होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट का यही आदेश, ‘सत्ता के गलियारों’ में बैठे लोगों के लिए एक कड़ा संदेश है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है, भले ही वह मंत्री हो या उसका बेटा.

क्या यह सिर्फ कागज़ की कार्रवाई है?

FIR दर्ज होना एक बड़ी जीत है, लेकिन यह तो न्याय की लड़ाई में पहला कदम है. अब असली चुनौती खीरी पुलिस के सामने है:

  1. निष्पक्ष जाँच: क्या पुलिस, एक मौजूदा केंद्रीय मंत्री और उनके बेटे के खिलाफ बिना किसी दबाव के जाँच कर पाएगी?
  2. गवाह की सुरक्षा: क्या अब सच बोलने वाले गवाह को वाकई पुख्ता सुरक्षा मिलेगी, ताकि वह निर्भीक होकर अदालत में अपनी बात रख सके?
  3. न्याय की पुनर्स्थापना: क्या यह FIR, लखीमपुर के पीड़ित परिवारों और गवाहों के मन में सिस्टम के प्रति खोए हुए भरोसे को वापस ला पाएगी?

PNN24 News मानता है कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश उन सभी के लिए एक जीवनदान है, जो ताकतवर लोगों के सामने सच बोलने की हिम्मत करते हैं. अब देखना यह है कि योगी सरकार और खीरी पुलिस, सुप्रीम कोर्ट के इस ‘डंडे’ का पालन कितनी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ करती है.

क्योंकि, इंसाफ केवल होना नहीं चाहिए, बल्कि होता हुआ दिखना भी चाहिए.

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