सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली दंगा साज़िश केस: ‘5 साल से जेल में, कोई सबूत नहीं’ – उमर खालिद की दलीलें पूरी

शफी उस्मानी
PNN24 न्यूज़, नई दिल्ली। फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों से जुड़े ‘साज़िश’ मामले (UAPA) में आरोपी उमर खालिद, शरजील इमाम और गुलफ़िशा फ़ातिमा की ज़मानत याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई अब निर्णायक मोड़ पर पहुँच गई है। शुक्रवार को भी सुप्रीम कोर्ट में इन अभियुक्तों के वकीलों ने अपनी दलीलें पूरी कीं, जबकि दिल्ली पुलिस ने ज़मानत का पुरज़ोर विरोध किया है।

वकीलों की मुख्य दलीलें: किसने क्या कहा?
अभियुक्तों की ओर से देश के कुछ बड़े वकील जैसे कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और सिद्धार्थ दवे पेश हुए।
| अभियुक्त (Accused) | वकील (Advocate) | मुख्य दलील (Key Argument) |
| उमर खालिद | कपिल सिब्बल | “हिंसा से जोड़ने वाला कोई सबूत नहीं”। खालिद ने कोर्ट को बताया कि दंगे मामले में 751 FIR हैं, लेकिन उन पर केवल एक में आरोप लगाया गया है। उन्होंने ज़ोर दिया कि उनके खिलाफ कोई हथियार या धन का सबूत नहीं मिला है। उन्होंने यह भी कहा कि उनके साथी सह-आरोपी (जैसे नताशा नरवाल, देवांगना कलिता) पहले ही जमानत पर बाहर हैं, इसलिए उन्हें समानता के आधार पर जमानत मिलनी चाहिए। |
| शरजील इमाम | सिद्धार्थ दवे | भाषणों की टाइमिंग पर ज़ोर। दवे ने दलील दी कि शरजील इमाम ने कथित रूप से भड़काऊ भाषण दंगों से लगभग दो महीने पहले दिए थे, जिसका मतलब है कि इन भाषणों का दंगों की साज़िश से सीधा संबंध नहीं है। |
| गुलफ़िशा फ़ातिमा | (वकीलों ने) | ट्रायल में देरी का आधार। गुलफ़िशा फ़ातिमा लगभग पाँच साल से अधिक समय से जेल में बंद हैं। वकीलों ने ट्रायल की लंबी प्रक्रिया को ज़मानत का आधार बनाया, खासकर जब यूएपीए के तहत अन्य सह-अभियुक्तों को जमानत मिल चुकी है। |
दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर ज़मानत याचिकाओं का कड़ा विरोध किया है:
- ‘रिजीम चेंज ऑपरेशन’: पुलिस ने दलील दी कि यह दंगा महज़ कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं था, बल्कि ‘शासन परिवर्तन ऑपरेशन’ (Regime Change Operation) का हिस्सा था।
- अंतर्राष्ट्रीय ध्यान खींचना: पुलिस ने आरोप लगाया कि साज़िशकर्ताओं का मकसद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के दौरान हिंसा कर अंतर्राष्ट्रीय ध्यान खींचना और देश की संप्रभुता को खतरे में डालना था।
- यूएपीए की गंभीरता: पुलिस ने यह भी कहा कि यूएपीए जैसे गंभीर मामले में, केवल मुकदमे में देरी के आधार पर ज़मानत नहीं दी जा सकती।
मामले की सुनवाई अब पूरी हो चुकी है, और सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के आगामी फ़ैसले पर टिकी हैं कि क्या इन अभियुक्तों को यूएपीए के तहत ज़मानत मिल पाएगी या नहीं।










