MDU रोहतक में शर्मनाक फरमान…! महिला सफाई कर्मचारियों को पीरियड्स का सबूत देने को मजबूर

आदिल अहमद
PNN24 न्यूज़, रोहतक (हरियाणा): हरियाणा के रोहतक में स्थित महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी (MDU) से एक बेहद ही शर्मनाक और असंवेदनशील मामला सामने आया है। यूनिवर्सिटी प्रशासन पर आरोप लगा है कि उन्होंने महिला सफाई कर्मचारियों को मासिक धर्म (Periods) से जुड़ी छुट्टी लेने के लिए शारीरिक सबूत पेश करने पर मजबूर किया है। यह मामला न केवल महिला कर्मचारियों की गरिमा (dignity) का उल्लंघन है, बल्कि कार्यस्थल पर उनके साथ हो रहे भेदभाव (discrimination) को भी उजागर करता है।
क्या है पूरा विवाद?
यह विवाद तब शुरू हुआ जब महिला सफाई कर्मचारियों ने अपनी मासिक धर्म चक्र के दौरान छुट्टी या आराम लेने की मांग की।
- पीरियड लीव पर सवाल: यूनिवर्सिटी के कुछ अधिकारी कथित तौर पर महिला कर्मचारियों द्वारा ली गई ‘पीरियड लीव’ पर सवाल उठाने लगे।
- सबूत की मांग: आरोप है कि इन अधिकारियों ने महिला कर्मचारियों से कहा कि वे अपनी छुट्टी को सही साबित करने के लिए पीरियड्स से जुड़े ‘सबूत’ पेश करें। यह मांग कार्यस्थल पर महिलाओं के स्वास्थ्य और व्यक्तिगत गोपनीयता का सीधा हनन है।
- विरोध प्रदर्शन: इस फरमान से गुस्साए महिला सफाई कर्मचारियों ने एकजुट होकर यूनिवर्सिटी प्रशासन के खिलाफ कड़ा विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि यह एक अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार है।
क्यों है यह फरमान शर्मनाक?
यह घटना इसलिए भी अधिक गंभीर है क्योंकि यह एक शिक्षण संस्थान (Educational Institution) के परिसर में हुई है, जहाँ समाज को संवेदनशीलता और सम्मान सिखाया जाता है।
- गरिमा का हनन: पीरियड्स एक स्वाभाविक जैविक प्रक्रिया है। इसके लिए किसी महिला को सार्वजनिक रूप से ‘सबूत’ देने के लिए मजबूर करना उसकी निजी ज़िंदगी में अनावश्यक दखल और उसकी गरिमा के खिलाफ है।
- स्वास्थ्य और स्वच्छता: महिला कर्मचारियों को उनकी शारीरिक तकलीफ़ों के बावजूद सबूत के डर से काम पर आने के लिए मजबूर करना, उनके स्वास्थ्य और स्वच्छता को खतरे में डाल सकता है।
- मानवाधिकार उल्लंघन: कार्यस्थल पर महिला कर्मचारियों के साथ ऐसा व्यवहार करना बुनियादी मानवाधिकारों और लिंग समानता (Gender Equality) के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
इस घटना ने साफ कर दिया है कि भले ही देश में महिलाओं के लिए पीरियड लीव और वर्कप्लेस पर सम्मान की बातें होती हों, लेकिन ज़मीनी स्तर पर महिला कर्मचारियों को आज भी कितनी संकीर्ण मानसिकता का सामना करना पड़ता है। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने अभी तक इस मामले पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया है। सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या एमडीयू प्रशासन इस असंवेदनशील फरमान को वापस लेता है और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई करता है।












