बसपा का मुस्लिम वोट के लिए अंसारी बंधू का कार्ड – कितना फायदा कितना नुक्सान ?

जावेद अंसारी
बसपा सुप्रीमो मायावती प्रयोगों के लिए भी राजनिती में विख्यात है. याद है वर्ष 2012 का विधानसभा चुनाव जब सीधा मुकाबला प्रदेश में सपा से होने के बावजूद सपा को हाशिये पर रख आम जन को मुकाबला बसपा-कांग्रेस के बीच दर्शाने का प्रयास किया गया था. यह एक अलग सी बात है की इसमें सपा ने बाज़ी मारी थी और बसपा का यह प्रयोग विफल हुआ था. मगर आज भी देश में राजनीतिज्ञ इस समीकरण का उपयोग कर रहे है जिसका उदहारण पंजाब में देखने को मिल सकता है जहा सत्तारूढ़ दल इसी समीकरण पर वो तस्वीर दिखने की कोशिश कर रहा है जो वास्तविक नहीं है जबकि हकीकत का आईना कुछ और ही वह दिखा रहा है और राजनैतिक सर्वे को आधार माना जाय और उसकी रिपोर्ट को देखा जाए तो मुकाबला इस तस्वीर से एकदम उलट है.
एक बार फिर बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक प्रयोग के तहत अंसारी बंधुओ को साथ लिया है. अब बसपा सुप्रीमो मायावती का नया प्रयोग क्या गुल खिलाएगा, यह तो 15 मार्च के बाद पता चलेगा, लेकिन वे अपने नए प्रयोग दलित एवं मुस्लिम गठजोड़ के लिए अपने सिद्धांतों को भी ताख पर रखती हुई नजर आ रही है, इस गठजोड़ को पुख्ता करने के लिए मायावती को अब मुख्तार अंसारी को भी अपनी पार्टी मे शामिल कर लिया है, केवल पार्टी मे शामिल ही नहीं किया, भाई और पुत्र सहित उन्हे भी टिकट देकर सममानित भी कर दिया, 
ध्यान देने वाली बात यह है कि अंसारी बंधुओं का पूर्वाञ्चल मे प्रभाव है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है, करीब 25 सीटों के गणित को बनाने और बिगाड़ने की वे हैसियत रखते हैं, इसी कारण से राजनैतिक विशेषज्ञो द्वारा कौएद का विलय राजनैतिक आत्महत्या की की दृष्टि से भी देखा गया. पूर्वांचल एक एक वरिष्ट पत्रकार ने तो यहाँ तक कहा था कि अगर कौएद यह विलय नहीं करता और सिर्फ पूर्वांचल की सीटो पर वह लड़ता तो विधानसभा में 5-7 सीट उसकी निकलने की संभावना बलवती थी. 
उनकी इसी हैसियत और काबिलियत को देखते हुये तमाम झंझावातों को झेलते हुये भी शिवपाल ने उनकी पूरी पार्टी को समाजवादी पार्टी मे शामिल करवा दिया था, लेकिन आपसी लड़ाई मे जब उन्हे सम्मान नहीं मिला तो वे सभी सायकिल छोड़ हाथी पर चढ़ गए, अब देखना यह है कि उनको बसपा मे शामिल करने से मायावती को कितना लाभ होता है, यह तो समाजवादी पार्टी के विश्लेषक भी स्वीकार कर रहे हैं कि तीन सीटों का उन्हे तो फायदा होगा ही, मुलायम सिंह यादव ने मुख्तार अंसारी के भाई विधायक सिबगतुल्लाह अंसारी को मोहम्म्दाबाद से प्रत्याशी बनाया था। 31 दिसंबर को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद सीएम अखिलेश ने हाल में जो सूची जारी की उसमें सिबगतुल्लाह का नाम शामिल नहीं था। मुख्तार के परिवार के किसी सदस्य को टिकट न मिलने से विरोध साफ दिख रहा था। वहीं दूसरी तरफ सपा कांग्रेस के गठबंधन के बाद बसपा की परेशानी पूर्वांचल में बढ़ती दिख रही थी। मायावती ने सपा को चित करने के लिए बड़ा दाव चला है ऐसे में सबसे अधिक नुकसान सपा गठबंधन को होने वाला है, हालांकि अंसारी बंधुओं की इच्छा थी कि कुछ और सीटें उनके लिए छोड़ी जाएं लेकिन बताया गया कि अब देर हो चुकी है, जाहिर है कि अगर पहले अंसारी बंधु बसपा में गए होते तो संभव था कि वह सौदेबाजी की स्थिति में होते, पूर्वांचल की कई सीटें खाली थीं जहां उनकी पैरवी पर बसपा टिकट दे सकती थी, बसपा के कई नेताओं ने अंसारी बंधुओं को शुरू में ही आने की सलाह दी थी लेकिन तब अंसारी बंधुओं को सपा पर पूरा यकीन था,  आपको बता दे कि पूर्व मंत्री शादाब फातिमा और पुर्व  विधायक डॉ.राजकुमार गौतम अब बसपा के टिकट की कोशिश कर रहे हैं, सूत्रों से प्राप्त सूचनाओ को अगर आधार माना जाए तो शादाब फातिमा जल्द ही बसपा की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण कर सकती है. अगर ऐसा होता है तो इसका सारा श्रेय बलिया के कद्दावर नेता और सपा सरकार के पुर्व काबिना मंत्री अम्बिका चौधरी को जायेगा सूत्रों ने बताया कि दोनों नेता मंगलवार की रात लखनऊ के एक होटल में बसपा के जोनल कोआर्डिनेटर मुनकाद अली से मिले, दोनों नेताओं का मिलने का वक्त अलग-अलग था, जोनल कोआर्डिनेटर ने उन्हें क्या भरोसा दिया यह तो नहीं मालूम लेकिन होटल के कमरे से निकलने के बाद उनके चेहरे पर मायूसी के ही भाव थे, मालूम हो कि पूर्व मंत्री शादाब फातिमा जहूराबाद की मौजूदा विधायक हैं लेकिन सपा इस बार उनका टिकट काट दी है। 
अब अगर अंसारी बंधुओ के बसपा में आने के फायदे नुकसान को देखा जाय तो वह अलग कहानी बयान कर रहा है. अंसारी बंधुओ के बसपा में आने से गाजीपुर बसपा के एक दो बागी चेहरे भी सामने आने की संभावना बलवती है. वही मऊ सीट के पुर्व घोषित प्रत्याशी को कहा पार्टी एडजस्ट करे यह एक अलग ही समस्या है वही अगर नफे नुकसान की दृष्टि से देखा जाय तो पूर्वांचल की कई सीट बसपा फायदे की स्थिति में जोड़ सकती है. बलिया में मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण अंसारी बंधुओ के कारण हो सकता है और यह बसपा की तरफ पलट सकता है. वही गाजीपुर, जौनपुर, मऊ के मुस्लिम मतदाताओ को भी अंसारी बंधू लुभाने में कामयाब हो सकते है. इन सबके बीच सबसे बड़ा फायदा अंसारी बंधुओ का वाराणसी में होने की सम्भावनाये दिखाई दे रही है. वर्त्तमान में मोदी के संसदीय क्षेत्र में अंसारी बंधू मुस्लिम मतदाताओ पर अपनी अच्छी पकड़ रखते है. यह वही सीट है जहा से बाहुबली मुख़्तार अंसारी ने भाजपा के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी से पिछले लोकसभा में हार का मुह देखने के पहले नाको चने चबाने की स्थिति कर दिया था.इस सीट पर मुरली मनोहर जोशी जीत तो गए थे मगर मुख़्तार अंसारी से उनको कड़ी टक्कर मिली थी और स्थिति लगभग ऐसी हो गई थी की टक्कर कांटे की थी.

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *