आखिर क्यों 1962 की जंग में अपनी शहादत देने वाले सिपाही का परिवार खानाबदोश की जिंदगी जीने को हो रहा मजबूर

फारूख हुसैन

लखीमपुर खीरी//संम्पूर्णा नगर //बहुत से सवाल अधिकतर लोगों के दिमाग में उमड़ते घुमड़ते रहते है कि आखिर क्यों सीमा पर हमारी रक्षा करने के लिए केवल गरीब परिवार से ही अधिकतर लोग फौज में जाते हैं कोई राजनितिक या फिर अमीर लोग क्यों नहीं तो  शायद आप समझ गये होंगे कि हमारे यहाँ फौज में केवल  शहीदी का दर्जा तो मिल जाता है परंतु उसके परिवार को केवल आँसू और खाना बदोश की जिंदगी ही मिलती है और कुछ नहीं ।  

यदि हम डाॅक्टर, नेता फिर पुलिस बनते हैं  या फिर और कुछ और तो उसमें हमें सब कुछ मिलता है  हम यदि दुनियां में न भी रहें तो भी हमारा परिवार  शान से रहता है ,उसे कोई तकलीफ नही होती परतु एक फोजी का परिवार?ऐसा ही लखीमपुर खीरी जिले के सम्पूर्णा नगर क्षेत्र के ग्राम कमलापुर में एक शहीद का परिवार दर दर की ठोकरे खाने और खाना बदोश की जिंदगी जीने पर मजबूर हो रहा है परंतु कोई उनको देखने वाला नही । आपको बता दूँ कि सन् 1962 में भारत और  चीन के बीच हुइ जंग में अपनी शहादत देने वाले गुम रेज सिंह के परिवार की हालत बहुत ही दयनीय हो चुकी है उनका परिवार मेहनत मजदूरी करके जैसे तैसे अपना पेट पाल रहा है ।या फिर एक तरह से यह भी कह सकते हैं कि बस मजदूरी के सहारे ही इनके घर का चूल्हा जलता है और शासन  द्वारा  अभी तक पेंशन के सिवाय कोई भी सरकारी सहायता उनको नहीं दी गयी ।
शहीदों के परिवार का सिर अगर ऊंचा रखना है तो सरकार को दुश्मनों का मुंहतोड़ जवाब देना होगा ऐसा ही कुछ हमारे शहीद हुए सिपाही ने कहा था । पंजाब के अमृतसर जिले के लाया गांव के रहने वाले गुरमीत सिंह ने 20 साल की उम्र में फौज में  ज्वाइन की थी 1962 में चीन के खिलाफ हुई जंग में वह भारतीय फौज के सिपाही थे ।जिन्होंने जंग में दुश्मनो के छक्के छुड़ा दिये ।गुरमीत की पत्नी स्वर्णकार ने बताया कि गुरमीत सिंह जंग के मैदान में आखिरी पल तक डटे  रहे और  उसी दौरान और  शहीद हो गए गुरमीत की पत्नी स्वर्णकार बताती हैं फौजी की शहादत के बाद तमाम वादे किए गये थे और कहा गया था 10 एकड़ जमीन दी जाएगी पट्टा मिलेगा और इतना समय बीतने के बावजूद भी पेंशन के सिवाय उन्हे  कुछ नहीं मिला गुरमीत सिंह की शहादत के बाद सोनपुर की गोद में दो बेटे थे पिता की शहादत के वक्त बड़ा बेटा बलविंदर 1वर्ष  का और सुखविंदर तो पिता का चेहरा भी नहीं देख सकता था । 
परिवार के हालात बिगड़े तो स्वर्ण कौर बच्चों समेत पंजाब छोड़कर संपूर्णानगर के कमलापुर गांव में बस गई और वही की होकर रह गयी ।जिसमें  अभी तक ना उनको कोई पट्टा दिया गया है और न ही जमीन । तत्कालीन जिलाधिकारी ने उन्हें बुलाया था परंतु कब्जा आज तक नहीं मिला । शहीद की पत्नी के पास बीपीएल राशन कार्ड है परंतु  राशन नदारद । दोनों बेटे मजदूरी करके किसी तरह परिवार का भरण पोषण करते हैं और शहीद के दोनों बेटों के बच्चे बाहर प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं इन सब तंगहाली के बाद भी सहित परिवार का जज्बा मुल्क के लिए कम नहीं है स्वर्ण कौर को अफसोस है कि गरीबी होने के कारण अपने बेटों को फौज में नहीं भेज सकी परंतु उसके बच्चों के अंदर भी तो लहू तो एक फौजी का ही है ।इतना सब होने पर भी शहीद का परिवार सरकार से केवल इतनी मांग कर रहे हैं कि नापाक पाकिस्तान को करारा जवाब दे ।

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