हिम्मत हो तो महशर में पयंबर से भी कहना, हम जिन्दा-ए-जावेद का मातम नहीं करते, या हुसैन की सदा और अकीदत के अश्को संग निकला लुटे हुवे काफिले का जुलूस

ए जावेद/ईदुल अमीन

वाराणसी. कत्ले हुसैन असल में मरगे यजीद है, इस्लाम जिंदा होता है हर कर्बला के बाद। अशरे को भी शब्बीर का जो गम नहीं करते, वो पैरविये सरवरे आलम नहीं करते। हिम्मत हो तो महशर में पयंबर से भी कहना, हम जिंदये जावेद का मातम नहीं करते। इन कलामो की गूंज के साथ ही बुधवार को लुटे हुए काफिले का जुलूस उठाया गया। इसके साथ ही हुसैन की जीत का परचम लहराया।

बुधवार को पिछले डेढ़ सौ सालों की तरह लुटे हुए काफिले का जुलूस मशहूर शायर स्व. नाजिम जाफरी के निवास स्थान से डॉ. मुजतबा जाफरी व मुर्तजा जाफरी के संयोजन में उठाया गया। मजलिस के बाद दुलदुल व अलम का जुलूस उठाया गया। आगे-आगे ऊंट पर नगाड़े से हुसैन की जीत का एलान किया जा रहा था। जुलूस के पहले आयोजित मजलिस को डॉ. शफीक हैदर ने खिताब किया। सलमान हैदर काशिफ तथा जाकिर अली ने कलाम पेश किया।

काली महल, पितरकुंडा, नई पोखरी होते हुए जुलूस दरगाहे फातमान पहुंचा। फातमान में मौलाना नदीम असगर रिजवी ने मजलिस को खिताब किया। दोषीपुरा के मैदान में अंजुमन जफरिया के संयोजन में और दूसरी अंजुमनों के सहयोग से इमाम हुसैन के सगे संबंधियों का ताबूत उठाया गया।

मुर्तजा हुसैन के कच्ची सराय स्थित मकान पर मजलिसे अंजुमन हैदरी चौक ने मातम किया। सरफराज हुसैन, शुजात हुसैन, मजहर अब्बास, मुर्तजा शम्सी, समर बनारसी, प्रिंस रजा, बालक जैन, हसन अब्बास, अतश बनारसी, शम्सुलहक फैजाबादी, प्रो. अजीज हैदर, रेहान बनारसी, हसन जाफरी ने कलाम पेश किया।

इस दौरान जुलूस के बाद दालमंडी के ख्वातीनो (महिलाओं) की मजलिस को खिताब करते हुए डॉ. नुजहत फातमा ने कहा कि करबला में इमाम हुसैन की शहादत के बाद उनकी बहन जनाबे जैनब तथा अन्य औरतों ने करबला का पैगाम सारी दुनिया तक पहुंचाया। शाहिद बानो और डॉ. नसीम जाफरी ने ख्वातीन का इस्तकबाल किया।

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