तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – कानपुर के दरोगा जी जब आरोपी को नही पकड़ सके तो उठा ले गए उसके 7 साल के भाई को, रात भर अपनी बहन के गोद में बैठा रहा थाने पर मासूम

तारिक आज़मी

एक कहावत है जबरा मारे तो रोवे भी न दे, नहीं समझे आप। चलिये दूसरी कहावत सुनाता हु, धोबी से बस न चले तो गदहवा का कान उमेठे। ये भी नहीं समझ आया आपको। खैर तो फिर ठीक है समझ तो मेरे भी नहीं आया कि क्या कहावत इसके लिए लिखा जाये बहादुरी का परिचय चमनगंज पुलिस के एक दरोगा जी ने दे डाला है। एक आरोपी को दबिश देकर पकड़ने में नाकामयाब रहे दरोगा जी ने पूरी बहादुरी का परिचय देते हुवे उस आरोपी के 7 साल के भाई को ही ले जाकर थाने पर बैठा लिया। प्रकरण में वीडियो वायरल हु। पत्रकारों में बीच कानाफूसी शुरू हुई। फिर क्या था, मीडिया सेल ने अपना काम पैच रिपेयर का शुरू किया और सन्देश वायरल कर दिया कि खबर झूठी है।

मगर पत्रकार भी कम कहा थे। वो भी जुझारू प्रवित्ति के निकल पड़े। ऐसे तो थे नही जो पुलिस वाले साहब की जय कहते कहते सुबह और रात करे। उन्होंने भी मीडिया सेल के सन्देश को टैग करके रायता फैलाना शुरू कर दिया कि फिर वायरल वीडियो क्या फर्जी है ? इस प्रकरण को ट्वीटर पर पोस्ट करके पुलिस मुख्यालय तक में सन्देश पहुचाया गया। फिर क्या था ? दरोगा जी ने आखिर पुलिस की इज्ज़त को बचाते हुवे बच्चे के परिजनों को बुलाकर बच्चे को उनके हवाले कर दिया है।

इन सबके बीच खबर लिखे जाने तक दरोगा जी के इस बहादुरी का कोई इनाम घोषित नही हुआ है। शायद जल्द ही उनको कानपुर पुलिस बहादुरी के लिए प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित करे। क्योकि अपराधी न सही कम से कम अपराधी के भाई भले ही मासूम बच्चा है वो को उन्होंने हिरासत में ले लिया। वो तो बेडा गर्क हो उन निष्पक्ष पत्रकारों का कि ईमानदारी वाली पत्रकारिता करने का गलत काम करते है और मामले को तुल दे दिया, वरना दरोगा जी बहादुरी के साथ बच्चे को थाने पर तब तक बैठा कर रखते जब तक कि अपराधी सर के बल चलकर खुद आकर थाने में नाक न रगड़ देते।

शायद आपको मामले को सुनकर हंसी आ रही होगी, या फिर हमारा लहजा पत्तेचाटी करने वालो को बुरा लग रहा होगा और चेहरे पर बेहयाई की मुस्कराहट समेटे मन में सोच रहे होंगे कि आखिर ये कमबख्त तारिक्वा मरेगा कब, ससुरा जब देखो हर मामले में लिखे देता है। तो भैया पत्तेचाट आप कह सकते हो। क्योकि रोटी की बात है, मगर यहाँ उस मिशन का मामला है जिसको पत्रकारिता कहते है।

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चलिए आपको घटना से पूरी तरह से अवगत करवाते है। कानपुर थाना चमनगंज अंतर्गत सेंट्रल बैंक के पास हुई विगत दिनों फायरिंग के मामले चमनगंज पुलिस को सुफियान कनखड़े नामक युवक की जोरोशोर से तलाश थी। गिरफ्तारी के लिए चमनगंज पुलिस पूरा दम खम लगा रहा थी। लेकिन पुलिस के हाथ खाली ही थे, सुफियान कनखड़ा अभी भी चमनगंज पुलिस की गिरफ्त से दूर है। अपनी नाकामी को छुपाने के लिए चमनगंज पुलिस ने बुधवार-बृहस्पतिवार की रात को सुफियान कनखड़ा के घर पर दबिश मारी। लेकिन घर पर न सुफियान कनखड़ा मिला और न ही उसके पिता। जिसके चलते अपनी बहादुरी का परिचय देते दबिश में गए दरोगा जी ने 7 वर्षीय छात्र जो कक्षा 3 में पढ़ाई करता है, को ही उठा लिया।

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जिसके बाद 7 वर्षीय छात्र की बड़ी बहन भी भागते हुए थाने पहुंच गई और पुलिस से मिन्नते करने लगी कि उसका 7 वर्षीय भाई बेकसूर है, साहेब आप उसे क्यूँ बन्द कर रहे हो, लेकिन दरोगा जी पुरे जलाल में थे और उन्होंने उस बहन की मिन्नतें नहीं सुनी। आखिर सुनेगे भी क्यों ? दरोगा जी है। क्या मिन्नत सुनने के लिए बैठे है वो ? कमाल करते है लोग। जिसको देखो मिन्नते करने पहुच जाते है।

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उन्होंने इतना तो कम से कम तरस खाकर परमिशन जारी कर दिया कि देर रात उस मासूम की बहन अपने भाई को गोद में लेकर बैठा सकती थी। बहन भी मजबूर थी आखिर वह थाने पर ही मासूम भाई को गोद में लेकर बैठ गई। मगर बेडा गर्क हो उसका जिसने इसका वीडियो बना डाला और सोशल मीडिया पर वायरल कर डाला। बस यही से थोड़ी सी चुक हो गई आखिर वीडियो कैसे बन गया वरना एक दो दिन में तो नाक रगड़ता हुआ अपराधी खुद से थाने पर आकर कहता साहब हम ही आरोपी है। हमको पकड़ लो। मगर अफ़सोस कि दिल गड्ढे में और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।

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अब जब रायता पत्रकारों ने फैला डाला तो फिर एक बार मीडिया सेल प्रभारी ने मामले में अपना कर्त्तव्य निभाते हुवे पैच मैनेजमेंट का काम किया और तत्काल थाना प्रभारी निरिक्षक का बयान उपलब्ध कराया है और बताया है कि “प्र0नि0 चमनगंज द्वारा अवगत कराया गया कि सूफियान वांछित अभियुक्त है, उसकी तलाश पुलिस कर रही है, गिरफ्तारी हेतु सूफियान के घर पर दबिश दी गयी थी प्रकरण में किसी 7वर्षीय बच्चे की गिरफ्तारी नही की है।“ मगर पत्रकार भी कम न निकले मामले में पैच मैनेजमेंट फेल करते हुवे सवालो की झड़ी लगा डाली कि फिर वीडियो फर्जी है उसका खंडन किया जाए। मगर थाना प्रभारी साहब हकीकत तो जान रहे थे। वो कैसे भला मामले को पूरा फर्जी बता देते।

कुछ पत्तेचाट अपने अपने दोने पत्तो की चाहत में इधर उधर करने में लगे रहे कि इसी बीच किसी ने मामले को ट्वीटर पर पोस्ट करके बड़े सहबो को जानकारी दे डाली। मामले का ऊपर से संज्ञान होने पर कानपुर पुलिस ने ट्वीटर पर पोस्ट किया जो इस बात की सनद साबित करता है कि प्रभारी निरीक्षक चमनगंज ने पहले मीडिया सेल को गलत बयान दिया था। कानपुर पुलिस ने ट्वीटर पर लिखा है कि “उक्त प्रकरण मे जानकारी होने पर अभियुक्त सूफियान के भाई को तत्काल उसके परिवारीजन को सुपर्द किया गया।“

वही पत्ते दोने लेकर खड़े लोगो को इससे निराशा हाथ लगी होगी कि आज रात को मस्त पार्टी होती मगर कमबख्त किसने ये कर डाला और मामले में रायता फैला दिया, बहरहाल, वहीं 7वर्षीय छात्र की बहन ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि आधी रात को अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई। घर मे कोई मर्द न होने के कारण मेरी माँ ने दरवाज़ा नही खोला। जिसके बाद पुलिस ने दरवाज़ा तोड़कर बिना महिला पुलिस कर्मी के घर मे घुस आये और घर मे सुफियान और पिता के न मौजूद होने पर दरोगा मेरे 7वर्षीय भाई को बाल पकड़ कर उठा ले गए। जब हमने थाने पहुंचकर मिन्नते किया कि मेरे बेकसूर भाई को छोड़ दो तो दरोगा जी ने हमसे भी अभद्रता करने लगे।

वैसे प्रकरण में एक बात और बताते चले कि नियम वगैरह सब चमनगंज थाने के गेट के बाहर ही रहते है। उसको अन्दर आने की इजाजत नही है। नियमो को ताख भी नही दिया जाता। क्योकि पुलिस सूत्र बताते है कि (पत्रकार अपने सूत्र बताने के लिए बाध्य नही है – मा० सुप्रीम कोर्ट) जब युवती थाने में अपने 7 वर्षीय भाई को गोद मे लिए बैठी थी उस वक्त भी थाने कोई भी महिला पुलिस कर्मी मौजूद नही थी।

लेखक – तारिक आज़मी – प्रधान सम्पादक (PNN24 न्यूज़)

बहरहाल, खबर लिखे जाने तक दरोगा जी पर किसी प्रकार की कोई कार्यवाही नही हुई है। अपनी अपनी गाडियों पर बड़े बड़े मानवाधिकार का बोर्ड लगा कर पुलिस चेकिंग से बचने वाले लोग अभी सो रहे है शायद क्योकि अभी तक किसी मानवाधिकार कार्यकर्ता अथवा किसी सामाजिक कार्यकर्ता या फिर नेता जी लोगो का बयान सामने नहीं आया है। शायद फुर्सत के लम्हे मिले तब तो मानवाधिकार और महिलाओ के अधिकार के मुखालिफ हुवे इस कृत्य पर वह अपनी प्रतिक्रिया दे। और तो और मामला दरोगा जी से जुड़ा हुआ है। भला दरोगा जी से नाराजगी कौन मोल ले। मीडिया में मामला छाया रहे दो दिन में ख़ामोशी अपना दफ्तर फैला लेगी। तरिक्वा का क्या है ? एक दो बार मोरबतियाँ लिखेगा फिर चुपाये जायेगा। दरोगा जी का इकबाल कायम रहेगा तो काम आयेगे।

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