मास्टर साहब भी कायल हो गए थे मशहूर शायर इकबाल के जब उन्होंने स्कूल देर से आने पर कहा “इक़बाल हमेशा देर से आता है”, पढ़े उर्दू अदब के मशहुर शायर अल्लामा इक़बाल के चंद अश’आर

शाहीन बनारसी

उर्दू अदब के मशहूर शायर और पाकिस्तान के राष्ट्रकवि के रूप में ख्यात अल्लामा इक़बाल पाकिस्तान में पैदा हुए थे। इक़बाल का पूरा नाम सर मुहम्मद इक़बाल था। उर्दू और फ़ारसी में इक़बाल ने बहुत सारे कलाम लिखे है। कलाम ऐसे कि महफ़िल में मिठास घोल दे। इक़बाल के कलाम आज भी महफ़िलो की शान को बढ़ा देते है। इनके खुबसूरत कलामो ने ज़िन्दगी में भटके हुए लोगो के लिए हमेशा नए रास्ते ईजाद करती रही है।

यूँ तो आज इक़बाल हमारे बीच में नहीं है मगर अपने लिखे कलामो से वो आज भी युवा दिलो की धड़कन है। अल्लामा इक़बाल की ज़िन्दगी से जुड़े उनके कुछ ऐसे किस्से भी है, जो उन्हें सभी शायरों से बेहद अलग करती है। ऐसा ही एक किस्सा जो बेहद मशहूर है। जिसमे महज़ 11 बरस के अल्लामा इकबाल के जवाब से उनके मास्टर साहब भी कायल हो गए थे।

इस किस्से का तस्किरा कई किताबो में भी मिलता है। एक बार की बात है। इक़बाल की उम्र महज़ 11 साल की थी। एक रोज़ वह स्कूल पहुंचे तो उन्हें स्कूल पहुँचने में देर हो गई। इक़बाल से उनके मास्टर साहब ने पूछा, “इक़बाल तुम देर से आये हो।” तो इस सवाल पर नन्हे मुहम्मद इक़बाल ने बे-साख्ता जवाब दिया, “जी हाँ, इक़बाल हमेशा देर ही से आता है।” इकबाल के इस जवाब पर उनके मास्टर साहब भी कयाल हो गये थे।

  • सितारों से आगे जहां और भी हैं,
    अभी इश्क़ के इम्तिहां और भी हैं।
  • अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी,
    तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन।
  • दिल से जो बात निकलती है असर रखती है,
    पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है।
  • माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं,
    तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख।
  • असर करे न करे सुन तो ले मिरी फ़रियाद,
    नहीं है दाद का तालिब ये बंदा-ए-आज़ाद।
  • नशा पिला के गिराना तो सब को आता है,
    मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी।
  • तेरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ,
    मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ।
  • दिल की बस्ती अजीब बस्ती है,
    लूटने वाले को तरसती है।
  • दुनिया के ग़म का दिल से काँटा निकल गया हो,
    लज़्ज़त सरोद की हो चिड़ियों के चहचहों में।
  • भरी बज़्म में अपने आशिक़ को ताड़ा,
    तेरी आँख मस्ती में होश्यार क्या थी।
  • तही ज़िंदगी से नहीं ये फ़ज़ाएं,
    यहां सैकड़ों कारवां और भी हैं।
  • क़नाअत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर,
    चमन और भी आशियां और भी हैं।
  • अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़म,
    मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ां और भी हैं।
  • तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा,
    तिरे सामने आसमां और भी हैं।
  • इसी रोज़ ओ शब में उलझ कर न रह जा,
    कि तेरे ज़मान ओ मकां और भी हैं।
  • गए दिन कि तन्हा था मैं अंजुमन में,
    यहां अब मिरे राज़-दां और भी हैं।

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