पेगासस कथित जासूसी प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने शुरू किया सुनवाई, बोले सीजेआई – अगर मीडिया रिपोर्ट्स सही है तो मामला काफी गंभीर है

आदिल अहमद

नई दिल्ली: पेगासस कथित जासूसी प्रकरण में आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई चालु हो गई है। मामले की स्वतंत्र जांच कराने का अनुरोध करने वाली 9 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आज एक साथ सुनवाई शुरू किया है। इन याचिकाओं में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और वरिष्ठ पत्रकारों एन। राम तथा शशि कुमार द्वारा दी गई अर्जियां भी शामिल हैं। अदालत ने आज पहले ही दिन सख्त रुख दिखाते हुवे कहा है कि कि अगर मीडिया रिपोर्ट्स सही हैं तो ये आरोप काफी गंभीर हैं।

बताते चले कि एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने एक खबर में दावा किया कि 300 सत्यापित भारतीय मोबाइल फोन नंबर पेगासस स्पाईवेयर के जरिये जासूसी के संभावित निशाने वाली सूची में शामिल थे। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने अपनी अर्जी में अनुरोध किया है कि पत्रकारों और अन्य के सर्विलांस की जांच कराने के लिए विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया जाए।

इस बीच, उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री के दो अधिकारियों, भगोड़े हीरा कारोबारी नीरव मोदी के वकील और अगस्ता वेस्टलैंड मामले के कथित बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल के वकील के फोन नंबरों के साथ-साथ शीर्ष अदालत के अब सेवानिवृत्त न्यायाधीश के पुराने नंबर इजराइली स्पाईवेयर पेगासस के संभावित लक्ष्यों की सूची में थे। ‘द वायर’ द्वारा जारी नवीनतम नामों से यह जानकारी मिली है।

इसमें कहा गया है कि राजस्थान का एक मोबाइल नंबर जो पूर्व में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा के नाम पर पंजीकृत था, 2019 में संभावित लक्ष्यों के डेटाबेस में जोड़ा गया था। न्यायमूर्ति मिश्रा सितंबर 2020 में उच्चतम न्यायालय से सेवानिवृत्त हुए और अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष हैं। समाचार पोर्टल ने कहा कि इसके अलावा, 2019 के वसंत में किसी समय, उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री के दो अधिकारियों के टेलीफोन नंबर “गुप्त सूची” में शामिल किए गए थे, जिसमें सैकड़ों नंबर शामिल थे। इनमें से कुछ पेगासस स्पाईवेयर के साथ लक्षित होने के स्पष्ट सबूत दिखते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों अधिकारियों ने शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री के महत्वपूर्ण ”रिट” खंड में काम किया था, जब उनके नंबर डेटाबेस में जोड़े गए थे। ‘द वायर’ सहित एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम ने बताया है कि 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल फोन नंबर इजराइली कंपनी एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पाईवेयर का उपयोग कर निगरानी के लिए संभावित लक्ष्यों की सूची में थे। एनएसओ के लीक हुए डेटाबेस की सूची में नेता राहुल गांधी सहित विपक्षी नेता, केंद्रीय मंत्रियों प्रह्लाद सिंह पटेल और अश्विनी वैष्णव, उद्योगपति अनिल अंबानी, सीबीआई के एक पूर्व प्रमुख और कम से कम 40 पत्रकार शामिल थे। हालांकि, यह स्थापित नहीं हुआ है कि सभी फोन हैक किए गए थे।

क्या हुआ अदालत में

मामले में जनहित याचिका दाखिल करने वाले वकील एम एल शर्मा ने सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल को रोका तो सीजेआई ने इस पर आपत्ति जताई। सीजेआई रमना ने शर्मा से कहा, “आपकी याचिका में अखबारों की कटिंग के अलावा क्या डिटेल है? आप चाहते हैं कि सारी जांच हम करें और तथ्य जुटाएं। ये जनहित याचिका दाखिल करने का कोई तरीका नहीं है।” सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में विदेशी कंपनियां भी शामिल हैं। यह एक जटिल मसला है। नोटिस लेने के लिए केंद्र की ओर से किसी को पेश होना चाहिए था। मामले की अगली सुनवाई अब 10 अगस्त को होगी।

मामले की सुनवाई करते हुए अदालत में सीजेआई रमना ने कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि 2019 में पेगासस का मुद्दा सामने आया और किसी ने भी जासूसी के बारे में सत्यापन योग्य सामग्री एकत्र करने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया। उन्होंने कहा कि अधिकांश जनहित याचिकाएं राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के समाचार पत्रों की कटिंग पर आधारित हैं। हम ये नहीं कह सकते कि इस मामले में बिल्कुल कोई सामग्री नहीं है। हम सबको समाचार पत्रों की रिपोर्ट और प्रतिष्ठित पत्रकारों की सामग्री नहीं कहना चाहते हैं। जिन लोगों ने याचिका दायर की उनमें से कुछ ने दावा किया कि उनके फोन हैक हो गए हैं। आप आईटी और टेलीग्राफिक अधिनियम के प्रावधानों को अच्छी तरह जानते हैं। ऐसा लगता है कि उन्होंने शिकायत दर्ज करने का कोई प्रयास नहीं किया। ये चीजें हमें परेशान कर रही हैं।”

सीजेआई की दलील पर वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा, सूचना तक हमारी सीधी पहुंच नहीं है। एडिटर्स गिल्ड की याचिका में जासूसी  के 37 सत्यापित मामले हैं। जिस पर सीजेआई ने कहा कि “मैं यह भी नहीं कहना चाहता कि दलीलों में कुछ भी नहीं है। याचिका दायर करने वाली कुछ याचिकाएं प्रभावित नहीं होती हैं और कुछ का दावा है कि उनके फोन हैक हो गए हैं लेकिन उन्होंने आपराधिक शिकायत दर्ज करने का प्रयास नहीं किया है।” सीजेआई ने कहा कि जिन लोगों को याचिका करनी चाहिए थी वे अधिक जानकार और साधन संपन्न हैं। उन्हें अधिक सामग्री डालने के लिए अधिक मेहनत करनी चाहिए थी।

अदालत ने कहा कि हलफनामे के मुताबिक कुछ भारतीय पत्रकारों की भी जासूसी की गई है। ये कैलिफोर्निया कोर्ट ने भी कहा है लेकिन ये बयान गलत हैं। कैलिफोर्निया कोर्ट ने ऐसा कुछ नहीं कहा है। इसके बाद सीजेआई ने पूछा  कि अभी वहां कोर्ट का क्या स्टेटस है? इस पर सिब्बल ने कहा कि अभी केस चल रहा है। इसके अलावा सिब्बल ने कहा, हम भी यही कह रहे हैं कि सरकार सारी बातों का खुलासा करे। मसलन, किसने कांट्रेक्ट लिया, किसने पैसा दिया? सिब्बल ने कहा कि व्हाट्सएप के मुताबिक इजरायली एजेंसी ने इसे 1400 लोगों के लिए बनाया जिसमें 100 भारतीय हैं। उन्होंने कहा कि मंत्री ने भी बयान दिए हैं। उन्होंने पूछा कि लोकसभा के जवाब में नाम कैसे आए?

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