तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ : सच बताता हूँ साहब, मुहब्बत से ठगा जाता है बनारस का मासूम बुनकर

तारिक़ आज़मी

कल इतवार के रोज़ बनारस में मुर्रीबंद हुई थी। जिसके बाद दोपहर में बुनकर बिरादरान की एक बैठक हुई। बैठक में बुनकर बिरादरान के 3 तंजीम से सम्बंधित सरदारों ने शिरकत किया। वही पुरे बनारस का बुनकर समुदाय भी आया था। वैसे तो इस बैठक में 5 फैसले लिए गये मगर आज हम आपसे इस बैठक में लिए गये पांचवे फैसले पर तवज्जो दिलवाना चाहते है। इसमें पांचवा फैसला गद्दीदारो द्वारा बुनकरों से ठगी के सम्बन्ध में था। हम आपको बताते चले कि पिछले 6 सालो में कई गद्दीदारो के द्वारा बनारस के बुनकरों के करोड़ो रूपये ठग लिए गये। ये ठगी इतनी ज़बरदस्त थी कि पूंजी से बुनकरों की कमर ही टूट गई होती।

अपनी ज़िन्दगी में मस्त रहने वाला बनारस का बुनकर सच में बड़ा मासूम है। इसको थोडा सा झुनझुना थमा कर बड़े-बड़े काम दशको से लोग निकलवाते रहे है। ये सिलसिला आज से नहीं लम्बे समय से चल रहा है। मासूम बुनकरों को झांसे के जाल में फंसाना सबसे आसान काम हो जाता है क्योकि ये मासूम कौम दिमाग से नहीं दिल से रिश्ते निभाते है। बनारस की पहचान साड़ी के लिए अपना खून-पसीना एक करने वाले बुनकर बिरादरी को इसके लिए धोखे हाथ लगते रहे है। “बड़ी ठगी के लिए, बड़े ठाठ की जरुरत होती है।” के तर्ज पर खुलने वाली गद्दियाँ बुनकरों से माल खरीदती है और करोड़ो का घोटाला करके रात ही रात बंद हो जाती है।

बुनकर इस ठगी से परेशान हो जाता है लेकिन फिर भी वह हिम्मत नहीं हारता है और अपनी ज़िन्दगी उसी अल्हड़ मौज-मस्ती से चलाता रहता है। देर रात किसी भी बुनकर बाहुल्य इलाके में जाकर आप हमारे बात की तस्दीक कर सकते है। दुकाने खुली और गुलज़ार मिलेंगी। कुछ खोने का गम न रखने वाले बुनकर हर मुसीबतों से जूझता हुआ अपनी ज़िन्दगी चलाता रहता है। प्रख्यात साहित्यकार स्वर्गीय हाजी बिस्मिल्लाह ने अपनी किताब “झीनी झीनी सी बीनी चुनरिया” में बुनकरों की समस्याओं को बखूबी उठाया था। इनकी समस्याओं को समझने के लिए खुद बिस्मिल्लाह साहब ने अपनी ज़िन्दगी के 10 साल गुजार दिया।

कहा जाता है कि वरासत अगर संघर्ष की हो तो उसको आने वाली अगली पीड़ी के लिए छोड़ देना चाहिए। इसी तर्ज पर आज भी संघर्ष का जीवन जीने वाला बुनकर अपनी ज़िन्दगी बसर कर रहा है। मुनव्वर राणा ने कहा है कि “हँसते हुए चेहरे ने भरम रखा हमारा, वो देखने आया था कि किस हाल में हम है।” यह शेर बुनकरों पर बहुत सटीक बैठता है। इसीलिए शायद बुनकर अपने संघर्ष की इस वरासत को अपनी अगली पीड़ी को मुस्कुराते हुए सौंपते है। इसीलिए शायद दुनिया को बुनकरों का दर्द दिखाई नहीं देता। पूरी ज़िन्दगी संघर्ष में गुजारने वाले बुनकर के साथ ठगी का यह सिलसिला पिछले 6 सालो में बढ़ता ही जा रहा है।

अभी पिछले दिनों सिगरा पुलिस ने 5 ऐसे ठगों के ऊपर गैंगस्टर की कार्यवाही किया था। इन लोगो के द्वारा विभिन्न नामो से साड़ी की गद्दियाँ खोल कर बनारस के बुनकरों के साथ ज़बरदस्त ठगी किया गया था। एमएलसी अशोक धवन के पहल पर सिगरा पुलिस ने इन ठगों के खिलाफ मुक़दमे दर्ज किये थे, जिसमे गैर जनपद से आकर वाराणसी में अपना ठिकाना बनाकर इन लोगो के द्वारा ठगी किया गया था। ये कोई पहला मौका नहीं था, जब ऐसे बुनकर ठगे गये थे। इसके पहले भी बुनकर कई बार ठगे गये है। बस फर्क इतना पड़ा कि इस बार ये मामला पुलिस के चौखट तक पहुंचा और इससे पहले के मामलात पुलिस के चौखट तक नहीं पहुँचते थे।

दरअसल, ये कारोबार अधिकतर कच्चे रुक्के पर ही होता है। आज दिए हुए माल का भुगतान 6 महीने बाद मिलता है। सबसे ज़बरदस्त तो ये है कि आज दिए हुए माल का हिसाब 3 महीने बाद होता है और फिर 3 महीने की पोस्ट डेटेड चेक बुनकर को मिल जाती है। 6 महीने की उधारी का सीधा-सीधा कारोबार हुआ। इन 6 महीनो में ऐसे फर्जी गद्दीदार बुनकरों के करोड़ो का माल उठा लेते है और उसके बाद अचानक रात को गद्दी बंद कर फुर्र हो जाते है। बुनकर इसको अल्लाह की रज़ा मान कर “बीती ताही बिसार के, आगे की सुधलेही” सोचता हुआ अपनी ज़िन्दगी आगे बढ़ा देता है।

दरअसल, भोले बुनकरों के पास इस बात का कोई सबूत ही नहीं रहता है कि उन्होंने उस गद्दीदार को माल दिया है। दूसरी बात, बुनकर कोर्ट-कचहरी का चक्कर न पाल कर खुद के काम और खुद की दिहाड़ी पर ध्यान देने लग जाता है। यही बाते ऐसे ठगों का मनोबल और भी बढाने लगता है। उदहारण के तौर पर बनारस में कभी एक गद्दी खुली। गद्दीदार बलिया जनपद के सिकंदरपुर का निवासी था। किसी को चेक दिया तो किसी को रुक्का। करोडो का माल उठाया और रफू चक्कर हो गया। प्रशासनिक स्तर पर इसकी कभी कोई शिकायत ही नहीं हुई, तो मुकदमा अथवा कार्यवाही क्या होगी? अब सिगरा पुलिस ने उसी सिकंदरपुर के मूल निवासी एक युवक को बुनकरों से ठगी के मामले में गिरफ्तार किया। ये केवल मनोबल बढ़ने की बात थी।

Tariq Azmi
Chief Editor
PNN24 News

अगर रिंकू पर कार्यवाही होती तो राजू की हिम्मत ही न पड़ती, ठगी करने की। ये बुनकरों का भोलापन ही है जो ऐसे लोगो की हिम्मतें बढती जा रही है। बुनकरों से सम्बंधित समस्याओ को आवाज़ नहीं मिल पाती है। यह पहला मौका है जब अशोक धवन के द्वारा बुनकरों का साथ दिया गया अन्यथा 9 तंजीमें होने के बाद भी बनारस का बुनकर नेतृत्व विहीन ही दिखाई देता है। हम बुनकरों से सम्बंधित समस्याओं को अपनी सीरीज में उठाते रहेंगे। जुड़े रहे हमारे साथ।

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