जाने आखिर सभी यहूदी इसराइल के समर्थक क्यों नही, कौन यहूदी कर रहे इसराइल का विरोध, पढ़े धार्मिक पुस्तक तौराह जिसे मुस्लिम तौरात के नाम से जानते है में मसीहा, इसाई धर्म के यीशु मसीह और इस्लाम के ईसा अलैहिस्सलाम में समानता

तारिक़ आज़मी

डेस्क: इसराइल का जन्म ही यहूदियों के लिए अलग राष्ट्र के तौर पर हुवा था। या फिर यह भी कह सकते है कि यहूदियों के अस्तित्व और अधिकारों की पृष्ठभूमि में इसराइल का जन्म हुआ। मगर आज भी दुनिया में ऐसे यहूदी बहुतायत में है जो इसराइल का समर्थन नही करते है। बेशक ये जानकारी उनके लिए तो अचम्भे जैसे होगी जो यहूदियों का सम्बन्ध यादवो से होने का दावा करते आ रहे है और इस पुरे मामले को यहूदी बनाम मुसलमान बनने की अपनी टूलकिट का हिस्सा बनाये हुवे है।

Know why all the Jews are not supporters of Israel, which Jews are opposing Israel, read the religious book Torah, which Muslims know as Taurat, there is similarity between Messiah, Jesus Christ of Christianity and Isa Alaihissalam of Islam

इसराइल का दुनिया में सभी यहूदी समर्थन नही करते है। बल्कि ऐसा कहा जाए कि बहुतायत ऐसे यहूदियों की है जो इसराइल का समर्थन बतौर यहूदी राष्ट्र के नही करते तो कही से गलत नही होगा। इसके कई बड़े कारण है। जिसमे सबसे प्रमुख कारण यहूदियों के धर्म ग्रन्थ को माना जाता है। एक एक करके हर एक पहलू को हम आपके सामने लाते जायेगे तो लेख बेशक थोडा बड़ा होना है। इसीलिए ज्ञानप्रद इस लेख को अंत तक ज़रूर पढ़े।,

क्या ‘यहूदीवाद’ और ‘जायनवाद’ एक ही बात है? पढ़े क्या है जायनवाद और यहूदीवाद में फर्क

बात तब शुरू होती है जब उन्नीसवीं सदी के आख़िरी दौर में यहूदी विरोध के मुक़ाबले और फलस्तीनी इलाके में एक यहूदी राष्ट्र की स्थापना के मक़सद से यहूदी राष्ट्रीय आंदोलन ‘ज़ायनवाद’ का उदय हुआ था। यहाँ यह स्पष्ट करते चले कि ‘यहूदीवाद’ और ‘ज़ायनवाद’ एक समान बात या लफ्ज़ नही है। हिब्रू बाइबिल में जिउन शब्द से युरूशलम को समझाया जाता है और ‘ज़ायनवाद’ मुख्य रूप से इसराइल की वकालत है। इस समय यहूदी राष्ट्र के तौर पर इसराइल की सुरक्षा, विकास और विस्तार पर भरोसा करने वाले को भी ‘ज़ायोनिस्ट’ या ‘ज़ायनवादी’ कहा जाता है।

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अगर दूसरे धर्म का कोई भी व्यक्ति इस विचार में विश्वास करता है वह भी ‘ज़ायनवादी’ है। मगर आप ऐसे हर एक शख्स को ‘जायनवादी’ नही कह सकते है, जो यहूदियत में विश्वास रखता है। इसी कारण वाशिंगटन डीसी में काफी यहूदियों ने इसराइल के खिलाफ प्रदर्शन भी किया है। दूसरी ओर, इसराइली राष्ट्र का विरोध करने वाले को ‘एंटी-ज़ायोनिस्ट’ कहा जाता है। ये लोग इसराइल के हस्तक्षेप का विरोध करते हैं और वहां की सरकार की नीतियों की आलोचना करते हैं। ये लोग भले ही ‘एंटी-ज़ायोनिस्ट’ कहा जाता है और को कई बार यहूदी-विरोधी के तौर पर भी देखा जाता है। ख़ासकर इसराइल के राष्ट्रवाद और उस देश के समर्थन में रहने वाले अक्सर इसी तरीके से दिखाना चाहते हैं। मगर ऐसा है नही…..!

कौन यहूदी सरकारी हस्तक्षेप को पसंद नही करते है?

यहूदी-विरोधी नफरत फैलाने के मामले को यहूदी विरोधी भावना के नाम से जाना जाता है। ‘एंटी-सेमिटिज़्म’ सीधे यहूदी विरोध है और ‘एंटी-ज़ायोनिज़्म’ इसराइली राष्ट्र का विरोध। यहूदी-विरोध की पृष्ठभूमि में ही ‘जायनवाद’ आंदोलन शुरू हुआ था। कई लोग मानते हैं कि इसराइल सरकार अपने आलोचकों को ‘यहूदी-विरोधी’ या ‘एंटी-सेमिटिक’ के तौर पर पेश करना चाहती है। हालांकि राष्ट्र के विचार का विरोध और यहूदी धर्म के प्रति विद्वेष दोनों ही एक बात नहीं है। ‘ज़ायनवाद’ या यहूदी राष्ट्र की धारणा पर विश्वास करने वाले ऐसे यहूदी भी हैं जो सरकार के हस्तक्षेप की नीति को पसंद नही करते।

कौन है कट्टर यहूदीवादी और क्यों है वह इसराइल के विरोध में

यहूदियों में इसराइल का विरोध करने वाली विचारधारा के कई लोग हैं। इनमें वामपंथियों के अलावा कट्टर यहूदी विचारधारा को मानने वाले लोग भी हैं। मिसाल के तौर पर इसराइल-ग़ज़ा के बीच जारी युद्ध की पृष्ठभूमि में 18 अक्तूबर को हजारों यहूदियों ने अमेरिका में कैपिटल हिल के सामने फलस्तीनियों के उत्पीड़न के विरोध में प्रदर्शन किया। वहां हाथों में फलस्तीनी झंडे लेकर कुछ लोगों ने आरोप लगाया कि इसराइल ग़ज़ा में सामूहिक हत्याएं कर रहा है। उस दिन अमेरिकी पुलिस ने वहां कम से कम तीन सौ लोगों को गिरफ्तार किया था। ये सभी विरोध करने वालो में अधिकतर यहूदी समाज से थे। उस आंदोलन का नेतृत्व ‘ज्यूइश वॉयस फॉर पीस’ या ‘शांति के लिए यहूदी आवाज़’ नामक एक ‘ज़ायनवादी’ संगठन ने किया था।

जिस तरह से ‘ज़ायनवाद’ ने फलस्तीन के लोगों को नुकसान पहुँचाया है, वे उसके ख़िलाफ़ हैं। संगठन की वेबसाइट पर इस बात का जिक्र किया गया है कि ‘ज़ायनवाद’ असल में यहूदियों में नफ़रत और वैमनस्य पैदा करता है। ‘ज़ायनवाद’ के विरोधी हिंसा-विद्वेष और आक्रामकता के ख़िलाफ़ हैं। वे लोग फलस्तीन की ज़मीन पर इसराइल की सरकार के कब्ज़े को भी अच्छा नहीं मानते। उनका मानना है कि ‘ज़ायनवाद’ की धारणा एक ऐसी परिस्थिति पैदा करती है जिससे लगता है कि जो लोग इसराइल की आलोचना करते हैं वो ‘यहूदी-विरोधी’ हैं। हालांकि यहूदियों में इसराइल के प्रति समर्थन ही ज़्यादा है। मगर ताय्दात यहूदियों में उनकी भी कम नही है जो इसराइल का विरोध करते है।

यहूदी धर्म के रीति रिवाजों का सख्ती से पालन करने वाले ‘हरेदी समूह’

वामपंथियों के अलावा इसमें अति कट्टर यहूदी भी इसराइल राष्ट्र की धारणा से सहमत नहीं हैं। इसमें खासकर ‘हरेदी समूह’ शामिल हैं जो यहूदी धर्म के रीति-रिवाजों का सख़्ती से पालन करते हैं। कट्टर यहूदियों के एक तबके ने भले ही कुछ हद तक सामाजिक आधुनिकता को अपना लिया हो, मगर यह कट्टर यहूदी अपने प्राचीन धर्म का पालन करते हैं। नेतुरेई कार्टा ऐसा ही एक अति-कट्टर और ज़ायनवाद-विरोधी संगठन है। वर्ष 1938 में गठित यह संगठन अमेरिका में काफी मजबूत है। यह जर्मनी, ब्रिटेन और इसराइल में भी सक्रिय है। इस संगठन के फेसबुक पेज को देखने से पता चलता है कि यह इसराइल के हमले के ख़िलाफ़ और फलस्तीनियों के पक्ष में रोजाना प्रदर्शन कर रहा है।

उनके हाथों में फलस्तीनी झंडे हैं और इसराइल के झंडे के पोस्टर को लाल स्याही से क्रॉस कर दिया गया है। 10 नवंबर को न्यूयॉर्क से पोस्ट एक वीडियो में उनके एक रब्बी (पुजारी) को भाषण देते देखा जा सकता है। रब्बी वाइस अपने धर्मग्रंथ तोराहा जिसे मुसलमान तौरात के नाम से जानते हैं का जिक्र करते हुए कहते हैं कि निर्वासन से यहूदियों का लौटना वर्जित है। यहूदियों के मसीहा के आगमन के साथ ही उनका अपना देश और राजत्व लौटेगा। वही मसीहा उनकी जमीन को कब्ज़ा-मुक्त करेंगे और ईश्वर ही उनके आवास की स्थापना करेंगे। कैम्ब्रिज डिक्शनरी के अनुसार मसीहा का मतलब ईश्वर की ओर से भेजा गया एक यहूदी राजा है।

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अब इस धर्म के आस्था को अन्य धर्मो से देखे तो यह आगमन जिसको मसीहा कहा गया है वह इसाई धर्म के लिए यीशु मसीह है। उसके धर्मग्रन्थ बाईबिल (जिसको मुस्लिम इंजील) नाम से पुकारते है में इसका उल्लेख है कि ईशु मसीह वापस आयेगे। ईशु मसीह को मुस्लिम समुदाय इसा अलैहिस्सलाम के नाम से पुकारता है और उसका भी यह मानना है कि ईसा अलैहिस्सलाम आसमान से उतारे जायेगे। ऐसे में इन तीनो धर्मो की आस्था के अनुसार मसीहा का आना निश्चित है।

ज़ायनवाद-विरोधी कट्टर यहूदियों की दलील है कि मसीहा के आगमन से पहले अपने राष्ट्र की स्थापना की कोई जरूरत नहीं है। यहूदी धर्म कभी दूसरों को नुकसान पहुंचाने या रक्तपात का समर्थन नहीं करता। वाइस की बातों में बार-बार सह-अस्तित्व का जिक्र आता है। उनका कहना है कि महज डेढ़ सौ साल पहले आए ज़ायनवाद से लोकतंत्र की स्थापना हुई है। यह एक राजनीतिक स्थिति है, जो धर्म नहीं है। हालांकि इस सिद्धांत को ज्यादातर यहूदी अच्छी निगाहों से नहीं देखते। कई लोग यह सोच भी नहीं सकते कि यहूदी भी ज़ायनवाद-विरोधी हो सकते हैं। लेकिन वाइस मानते हैं कि अति धार्मिक यहूदी संशोधित या परिवर्तित यहूदीवाद और उसके साथ मौजूदा यहूदी राष्ट्र की अवधारणा का समर्थन नहीं कर सकते।

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