वाराणसी: दालमंडी के विकास की धारा बहाने की बात करने वाले भाजपा पार्षद जी, दुकानदार बता रहे है कि ये मुख्य मार्ग पर ‘पनारा’ महीनो से बह रहा है, तनिक इसके ऊपर भी ध्यान दे दे

शफी उस्मानी

वाराणसी: वाराणसी के आदिविशेश्वर यानि दालमंडी के पार्षद इंद्रेश कुमार के द्वारा चतुर्दिक विकास का दावा अपने चहीते गोदी मीडिया से अक्सर किया जाता है। कभी चौड़ीकरण तो कभी अतिक्रमण के नाम पर दालमंडी के अंदर कोई न कोई कार्यवाही चला करती है। इन सब के बीच विकास अब विनाश का मुद्दा बन गया है। अगर इसको विकास कहते हैं, तो दालमंडी वालो को विनाश को एक बार फिर से परिभाषित करवाना चाहिए।

दालमंडी में कभी तिरपाल हटवाते है तो कभी एक दो फूट आगे लगी हुई दुकान को हटवाते स्थानीय पार्षद इंद्रेश कुमार दालमंडी की मुलभुत समस्याओं से ध्यान भटकाने में सफल रहे हैं। अधिकतर मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र की गलियां बजबजाते सीवर का शिकार है। मगर स्थानीय पार्षद इलाके को सिंगापुर और धारावी जैसे शब्दों से परिभाषित करते हुए खुद की पीठ खुद से थापता कर वाहवाही ले लेते हैं। दालमंडी के मुख्य मार्ग पर स्थित नोमानी कटरे के बाहर ये बजबजता हुआ सीवर इस बात को चीख चीख कर कह रहा है कि दुकानदारों मै तुम्हारे कारोबार को बहा ले जाऊंगा।

दुकानदार चीख रहे हैं कि हमारा कारोबार इस सीवर से बर्बाद हो रहा है। मगर नगर निगम ने कसम खा रखी है कि हम नहीं सुनेंगे। स्थानीय पार्षद इसी में मस्त हैं कि ये सीवर नहीं बह रहा है, बल्कि चतुर्दिक विकास की धारा बह रही है। इससे उठती हुई बदबू को कही ऐसा न हो कि स्थानीय पार्षद कोई मुश्क करार दे दें, और कहे कि ये बदबू नहीं है बल्कि विकास की सुगंध है।

वैसे नगर निगम के जलकल के जीएम साहब कड़वी सच्चाई ये है कि आपके इस इलाके के अधिनस्त या तो आपकी आंखों में सहारा की रेगिस्तानों की धूल लाकर झोंक रहे हैं और कागज़ी घोड़े दौड़ा रहे हैं। या फिर सियासत के इशारे पर कठपुतली बने हैं। अगर वह सियासत के इशारे पर कठपुतली बने हैं, तो जीएम साहब उनको समझाइए की उनका वेतन आवाम के दिए हुए टैक्स से आता है न कि किसी नेता के इशारे पर कम से कम अब तो आप इस ‘दस्तूरी’ के लहराते परचम को पस्त कर दीजिए।

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